नोएडा की एक महिला उद्यमी रद्दी अखबार, कॉपी-किताब, गत्ते आदि का प्रयोग कर प्राकृतिक गोद से चिपकाकर तैयार करती हैं बोतल | बोतल का ढक्कन भी है बायोडिग्रेडेबल | यह बोतलें नौ महीने तक प्रयोग में लाई जा सकती हैं |
विश्व भर में सबसे अत्यधिक प्लास्टिक बोतलों का प्रयोग किया जाता है | प्लास्टिक सस्ता होने के कारण अधिकतर घरों में प्लास्टिक की बोतलें ही देखने को मिलती हैं | अन्य किसी धातु से बनी बोतलों का इस्तेमाल बहुत कम ही देखने को मिलता है |
हमारे घरों में पीने के पानी को आम तौर पर प्लास्टिक की बोतल में ही स्टोर किया जाता है | लोग कोल्ड्रिंक्स पीने के बाद भी उस बोतल को घर ले जाते हैं, ताकि पीने का पानी का भर सकें | लेकिन क्या आपको पता है आपकी इस तरह की आदत आपकी सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हो सकती है | ये बोतलें कई कैमिकल प्रक्रियाओं के बाद बनाई जाती हैं जिनका अपना रिसाइकिल का प्रॉसेस होता है |
यह बोतलें तापमान सेंसेटिव भी होती हैं जिस कारण इनको अगर पानी पीने या स्टोर करने के लिए काम में लिया जाता है तो ये हमारे स्वास्थ को कई तरह से नुकसान पहुँचा सकती हैं |
प्लास्टिक में हानिकारक रसायन ही नहीं होते, प्लास्टिक की बोतलों में जमा होने पर पानी में फ्लोराइड, आर्सेनिक और एल्यूमीनियम जैसे हानिकारक पदार्थ भी पैदा होते हैं, जो शरीर के लिए जहर हो सकते हैं |
तो, प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीने का मतलब होगा धीमा जहर पीना, जो धीरे-धीरे और लगातार आपके स्वास्थ्य को खराब करेगा |
प्लास्टिक की बोतलें सस्ती और बजट में भी फिट हो जाती है | पर हम यह भूल जाते है कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक होती है | यह न केवल पर्यावरण, धरती और जलीय जंतुओं के लिए नुकसानदेह है बल्कि मनुष्य के स्वास्थ के लिए भी खतरनाक है |
ऐसे में अगर कहा जाये कि आप कागज की बोतलों में पानी भर कर पी सकते हैं | यह तो बड़ी चौंकाने वाली बात लग रही होगी, है न | तुरंत मन में सवाल उठेगा कि भला कागज गल नहीं जाएगा और कागज की तो इतनी क्षमता भी नहीं होती कि वह पानी को ज्यादा देर तक रोक सके |
लेकिन यह कमाल नोएडा की एक महिला उद्यमी ने कर दिखाया है | हम बात कर रहें है, समीक्षा गनेरीवाल की जिन्होंने 2018 में अपना ‘कागजी बोतल’ नामक स्टार्ट – अप लॉन्च किया है | यह बोतलें बेहद खास है क्योंकि ये 100% कागज से बनाई जाती हैं |
अभी इन बोतलों का प्रयोग शैंपू, कंडिशनर व हैंडवाश पैक करने के लिए किया जा रहा है |
आपको बता दें, कागज की यह बोतल पानी या अन्य द्रव भरने पर गल नहीं जाती हैं और बाद में आसानी से नष्ट भी हो जाती है |
समीक्षा गनेरीवाल अब पानी और जूस के लिए ऐसी बोतल तैयार कर रही हैं | उन्होंने पेटेंट के लिए भी आवेदन कर दिया है | तीन खाद्य व पेय पदार्थ निर्माता कंपनियों ने भी उनसे अनुबंध करने की इच्छा प्रकट की है |
आइये जानते है, इस उद्यमी का यह कागजी बोतल का सफर…
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कैसे आया कागज की बोतल का विचार
समीक्षा गनेरीवाल नोएडा, उत्तर प्रदेश से हैं | उन्होंने वर्ष 2000 में विग्नना ज्योति इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एम.बीए. किया |
एम.बीए की पढ़ाई के दौरान प्लास्टिक से बनी चीजों के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहीं थी | और प्लास्टिक उपयोग होने वाली सभी चीजों का एक विकल्प तलाश कर रहीं थी | लेकिन उस समय उन्हें प्लास्टिक फ्री कुछ मिला ही नहीं |
प्रोजेक्ट के दौरान विचार आया कि प्लास्टिक से पहले भी लोग खाने-पीने की चीजों को किसी न किसी चीज में रखते थे | बारिश में पत्तियों और घास पर पानी की बूंदे टिकी रहती हैं | यानी कि उनमें ऐसा तत्व है कि जो पानी का अवरोधक है |
एम.बीए. करने के बाद उन्होंने नोएडा और हैदराबाद की कई कंपनियों में काम किया |
लेकिन उन्होंने प्लास्टिक फ्री अपने सपने को छोड़ा नहीं था | वह लगातार अनेकों प्रयास करने में जुटी रहीं | कहते हैं न जब आप किसी काम को करने की ठान देते हैं, तो काम के प्रति समर्पण, लगन और मेहनत का परिणाम सकारात्मक ही निकलता है |
बाधाएँ भले ही आपको रोकने का प्रयास करें, लेकिन आपकी निरंतरता परिणाम तक पहुँचा ही देती है |
प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के खतरे को कम करने और एक स्थायी विकल्प तलाशने के लिए, उन्होंने 2018 में एक स्टार्टअप लॉन्च किया | उनकी कंपनी का दावा है कि ‘कागजी बोतल’ देश का पहला ऐसा स्टार्टअप है, जो इकोफ्रेंडली और 100% कम्पोस्टेबल कागज़ से बनी बोतलें बनाता है | यानी पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभदायक है |
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क्यों किया ‘कागजी बोतल’ को स्थापित
वर्ष 2018-19 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सालाना 33 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा निकलता है |
वर्ष 2016 में, समीक्षा गनेरीवाल पैकेजिंग से जुड़ी एक कंपनी की स्थापना की और उसी दौरान, उन्होंने प्लास्टिक की बोतलों के विकल्प तलाशने आरंभ कर दिए |
प्लास्टिक का विकल्प तलाशने की गहरी रुचि तो उनमें कॉलेज के समय से ही थी, लेकिन इस क्षेत्र में उन्होंने कोई शैक्षिक ट्रेनिंग नहीं ली थी |
उन्होंने ऐसे इको फ्रेंडली प्रोड्क्ट बनाने के लिए, कई डिजाइनर और वैज्ञानिकों से सलाह ली | अगले दो सालों तक, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा |
साल 2018 में, जब वह अपने किसी क्लाइंट के लिए एक इको फ्रेंडली पैकेजिंग प्रोजेक्ट पर काम कर रही थीं, तब उन्होंने एक ऐसी कंपनी बनाने का फैसला किया, जो पूरी तरह से 100% कम्पोस्टेबल कागज़ की बोतलें बनाने पर केंद्रित हो |
समीक्षा गनेरीवाल प्लास्टिक फ्री बोतल बनाने के लिए हर संभव प्रयास किए | और 100 प्रतिशत कागज की बोतल का निर्माण किया, जो इकोफ्रेंडली है |
इसमें बिल्कुल भी प्लास्टिक का प्रयोग नहीं किया गया है | यह गले नहीं इसके लिए इसमें स्टार्च मिलाकर बनाया जाता है जिससे यह पानी या कोई भी तरल पदार्थ डालने के बाद गलती नहीं है | यानी इनमें आप पानी व जूस आदि रख सकते है |
ये कागजी बोतल इस प्रकार बनाई गई है कि यह न तो गलती है और न ही खराब होती है |
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क्यों रखा ‘कागजी बोतल’ कंपनी का नाम
समीक्षा गनेरीवाल प्लास्टिक फ्री बोतल का नाम देसी स्टाइल में रखना चाहती थीं | क्योंकि यह बोतलें पूरी तरह कागज से बनती हैं, तो यही कारण है कि उन्होंने अपनी कंपनी का नाम कागजी बोतल रखा |
वह कागजी बोतल को एक भारतीय उत्पाद के रूप में पेश करना चाहती थीं और अपने ग्राहकों को अपनी भारतीय जड़ों से जोड़ना चाहती थीं |
12 लाख रुपये के शुरुआती निवेश के साथ, उनकी कंपनी ने पहले सिर्फ शैंपू, कंडीशनर और लोशन के लिए बोतलें बनाई | ये बोतलें प्लास्टिक की तुलना में सस्ती हैं, जिनकी कीमत 19 रुपये से 22 रुपये तक है |
हर बोतल को बनाने में 2 दिन लगते हैं | उन्हें ज्यादा ऑर्डर मिलने लगे हैं, इसलिए कंपनी हर महीने दो लाख बोतलें बनाने लगी | और अब हर महीने 22 लाख कागजी बोतल का निर्माण किया जाता है |
पिछले कुछ सालों में, कोका-कोला कंपनी या लॉरियल जैसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां भी लोगों के वहनीयता की तरफ झुकाव और प्लास्टिक फ्री भावना बढ़ने के कारण, कागज़ की बोतलें बनाने के लिए काम कर रही हैं | हालांकि, इन बोतलों के अन्दर प्लास्टिक की एक पतली परत होती है, जो नमी और बाहरी वातावरण से इन्हें बचाती हैं, ये बोतलें पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री नहीं होती हैं | इसलिए, कागजी बोतल की बोतलें एक अनोखे उत्पाद के रूप में उभर कर आयी है |
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कैसे बनती है कागजी बोतल
ये बोतलें कागज की रद्दी का इस्तेमाल करके बनाई जाती हैं, जिन्हें फिलहाल बद्दी, हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी से मंगाया जा रहा है | जल्द ही नोएडा में भी इसकी इकाई स्थापिक की जाएगी |
इसके बाद, इन बेकार कागजों को पानी और रसायनों के साथ मिलाया जाता है, ताकि इनकी लुगदी बनाई जा सके | फिर इन्हें बोतल के एक जैसे शेप के दो हिस्सों में ढाल कर दोनों हिस्सों में एक सल्यूशन का स्प्रे किया जाता है, जिसमें केले के पत्ते के वॉटर रेजिस्टेंट गुण होते हैं | अंत में इन दोनों हिस्सों को ग्लू से जोड़ दिया जाता है |
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चुनौतियों का किया सामना
समीक्षा गनेरीवाल को प्लास्टिक फ्री बोतल का विकल्प ढूंढने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा |
सबसे पहले उन्हें वह मशीन ढूंढनी थी जो प्लास्टिक फ्री बोतल बना सके | परंतु वैसी मशीन बाजार में उपलब्ध नहीं थी जो प्लास्टिक फ्री बोतल का निर्माण कर सके इसलिए उन्होंने इस मशीन को खुद से बनाने के लिए इस क्षेत्र में विशेषज्ञों को ढूँढ उनकी मदद ली |
उन्होंने एक रिश्तेदार से संपर्क किया जिनकी फैक्ट्री में शैंपू व कंडिशनर रखने वाली बोतलों का उत्पादन होता था | फैक्ट्री में अत्याधुनिक मशीन होने से शोध में मदद मिली |
काफी संघर्ष के बाद उन्होंने प्लास्टिक फ्री बोतल को बनाने के लिए सभी तैयारी कर ली और इस पर काम करना शुरु कर दिया |
समीक्षा गनेरीवाल के लिए दूसरी चुनौती यह थी कि उनके उत्पाद को देखकर, ग्राहक कैसी धारणाएं देंगे | क्योंकि प्लास्टिक की बोतल की लोगों को लत लग गई है | बाजार में भी अधिकतर सामान प्लास्टिक में ही मिलता है | अब हम सब्जियां भी तो प्लास्टिक की थैलियों में ही लाते है | कहीं सफर करना है तब भी प्लास्टिक की बोतल में ही पानी ले जाते हैं |
जब कागजी बोतल का पहला प्रतिरूप तैयार हुआ, तो उन्होंने इसे अपने दोस्तों और परिवार को दिखाया | उनकी बोतल के आकार और रंग से काफी हैरान करने वाले थे, क्योंकि वह पूरी तरह से भूरा था और अक्सर लोग ट्रांसपेरेंट या पारदर्शी प्लास्टिक की बोतलों का ही प्रयोग करते हैं | लेकिन, उनकी कागजी बोतल को लोगों ने पसंद किया और उनके काम से भी वे काफी प्रभावित हुऐ |
धीरे- धीरे इन बायोडिग्रेडेबल बोतल की माँग बढ़ी और ग्राहक इन्हें खरीदने लगे |
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क्यों प्लास्टिक फ्री बोतल आवश्यक है?
ट्रेडमिल रिव्यूज ने एक रिसर्च के अनुसार प्लास्टिक की बोतलों पर टॉयलेट सीट से ज्यादा कीटाणु होते हैं | जो इंसान को गंभीर रूप से बीमार बना सकते है |
रिपोर्ट में बताया गया कि एक सप्ताह तक बिना धुले जिन प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल किया गया उसपर सिर्फ एक स्क्वायर सेंटीमीटर हिस्से में ही 3 लाख से ज्यादा बैक्टीरिया थे | इससे आप समझ सकते हैं कि जिस प्लास्टिक की बोतल का आप बार-बार इस्तेमाल करते हैं, वह स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर कर सकती है |
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कागजी बोतल की उम्र
कागज की बनी यह बोतलें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं | कागज के कई हिस्सों को जोड़कर तैयार की जानी वाली बोतल को प्राकृतिक गोंद से चिपकाया जाता है | इसमें लगने वाला ढक्कन भी कागज और मिट्टी में घुलने वाले प्राकृतिक तत्व से ही बनता है |
कागजी बोतल की उम्र 9 महीने होती है | और अगर यह खराब भी हो जाए तो आप इसे अपने घर के गमले व क्यारी की मिट्टी में दबा सकते हैं |
अगर इनकी कीमत की बात की जाए तो यह एक बोतल 19 रुपए में बनकर तैयार होती है | इतने में ही प्लास्टिक की बोतल भी तैयार होती है | हालांकि समीक्षा गनेरीवाल इनकी कीमत को ओर कम करने की कोशिशों में लगी हैं |
समीक्षा गनेरीवाल का मानना है कि इन कम्पोस्टेबल बोतलों को भविष्य में प्लास्टिक की जगह, पैकेजिंग मटेरियल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है |
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वह कहती हैं, “एक व्यक्ति हर महीने औसतन सात प्लास्टिक की बोतलों जितने प्लास्टिक का इस्तेमाल सिर्फ टॉयलेटरीज़ जैसे- डियो, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट आदि के लिए करता है | कागजी बोतल की बोतलें न सिर्फ टॉयलेटरीज़, बल्कि बेवरेजेज़, लिक्विड और पाउडर की पैकेजिंग के लिए भी एक अच्छा विकल्प हो सकती हैं |”
यह कंपनी फ़ूड और बेवरेजेज़ के लिए भी बोतलें बनाने की दिशा में काम कर रही है | साथ ही, देशभर के चार शहरों में मैन्युफैक्चरिंग इकाई लगाने की भी योजना बना रही है |
Jagdisha समीक्षा गनेरीवाल आपके प्लास्टिक फ्री प्रयासों की जितनी सराहना की जाएं वह कम है | प्लास्टिक फ्री उत्पाद निर्माण की जानकारी न होने के बाद भी आपने निरंतर प्रयास किए और विकल्प तलाशे | आपके प्रयासों और मेहनत का ही परिणाम है, कागजी बोतल |
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