क्यों महिलाएं नही छोड़ पाती हिंसक साथी का साथ?

क्यों महिलाएं नही छोड़ पाती हिंसक साथी का साथ?

आपने अपने आस – पास कई ऐसी महिलाओं को देखा होगा जो, प्राय: अपने पार्टनर के हिंसक व्यवहार का शिकार होती हैं | साथी की रोज-रोज की हिंसा और प्रताड़ना के बावजूद भी वे उसका विरोध नहीं करती बल्कि मन में रोष होने के बाद भी उसी के साथ रहने को प्राथमिकता देती है |

ऐसी महिलाओं के चारों ओर डर व भय का माहौल रहता है | छोटी-छोटी बातों का भी बतंगड बना दिया जाता है | सामने वाला कब किस बात पर हाथ उठा दे इसका भी कुछ पता नही | इतना सब कुछ झेलने के बाद भी ये महिलाएं ऐसे पार्टनर का सहयोग करती हैं | कितनी ही बार तो उनका बचाव भी स्वयं ही करती हैं |

कोई उन्हें समझाना भी चाहे, तो उसका भी कोई खास प्रभाव उन पर नहीं पड़ता | अपने जीवन को अंधेरे और अविश्वास के जाल में ऐसा फंसा दिया है, जैसे उनके जीवन में कोई दिशा ही न बची हो |

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आखिर महिलाएं मानसिक और शारीरिक हिंसा की शिकार होने के बाद भी ऐसे रिश्ते को ढोने के लिए क्यों स्वयं को बाधित समझती है | आइये समझने की कोशिश करते हैं

क्यों हिंसक व्यवहार के बाद भी शादियां चलती रहती है?

भारतीय समाज में हिंसा की कहानियां आम है | छोटा-सा गाँव हो या महानगर हर कहीं घरेलू हिंसा की कहानियां तो मिल ही जाएंगी |

भारत में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा एक वास्तविकता है लेकिन सबसे दुखद यह है कि ज्यादातर मामलों में डर और परिवार वालों की इज्जत के कारण इसकी शिकायत भी दर्ज नहीं होती है |

हमारे देश में जहाँ शादी को सात जन्मों का पवित्र बंधन माना जाता है | ऐसे में परिवार घर-गृहस्थी संभालने का सारा भार महिलाओं के ही सर माथे रखा जाता है | 

गलत-सही, ऊँच-नीच सभी बातों को संभालने का जिम्मा क्या केवल महिलाओं का ही है? पुरूषों की इसमे कोई सहभागिता नहीं होनी चाहिए ?

जाने-अनजाने में ही अगर सिर्फ महिलाएं ही रिश्तों को चलाने के लिए सभी ऊँच-नीच को संतुलित करेगी, तो उसकी स्वयं की क्या स्थिति रह जाएगी? उसके खुद के मायने धीरे-धीरे अपना दम नहीं तोड़ देंगे क्या!

पार्टनर के हिंसक व्यवहार के साथ जीवन जीना किसी घुटन और हर रोज एक अलग तरह की मौत के समान है | 

ऐसे में क्या करें? यह एक बड़ा सवाल है, लेकिन उससे पहले यह भी समझना जरूरी है कि बत्तर स्थिति में हो कर भी अधिकतर महिलाएं क्यों ऐसे रिश्तों से बंधी रहती है?

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छोटी उम्र से लड़कियों को बताना कि वो लड़की है 

अब लड़की को तो लड़की ही कहेंगे | हाँ बिल्कुल, लेकिन उन्हें शुरू से ही अच्छी बेटी, बहु, पत्नी और माँ बनने के मापदंडो से परिचित कराने की एक अलग ही प्रथा है | जिन्हें गुण-दोष से जोड़ा जाता है | एक लड़की के गुणो की व्याख्या उसकी शालीनता, धैर्य, कोमलता, कर्तव्यनिष्ठा और सहनशीलता से जोड़ी जाती है |

परिवार बनाने और उसे जोड़े रखने के लिए कुछ बातों को सहन और नजरअंदाज करने की उन्हें सलाह दी जाती है | हंसने और बोलने तक के मापदंड सिखाये जाते हैं |

एक लड़की होने के नाते कैसे उठना, बैठना, चलना, पहनना-ओढ़ना और रहना है जैसी हदें बताई जाती है |

या यूँ कह सकते है की पितृसत्तात्मक समाज के लिए उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया जाता है |

एक ओर हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे है, दूसरी ओर आज भी परिवार का दायित्व केवल महिलाओं की ही जिम्मेदारी है |

महिलाएं हर रोज स्वयं को साबित कर रही है परंतु फिर भी उनके स्त्रीत्व की पहचान पत्नी और माँ होना ही माना जाता है | यह दवाब उन्हें स्वयं को एक अच्छी पत्नी और माँ साबित करने के लिए उनके अस्तित्व की पहचान को भी कहीं न कहीं गुम कर देता है |

किसी रिश्ते के टूटने या बिगड़ने पर समाज सबसे पहले अपनी तीखी नजरो से एक महिला की ओर ही देखता है | 

अपना घर भी न संभाल सकी | अरे इससे तो अपना पति ही न रिझा, ऐसी कैसी पत्नी है ये? अब आदमी को घर में सुख नहीं मिलेगा तो वो तो बाहर ढूढ़ेगा ही | जाने कैसे कैसे तंज एक महिला के ऊपर कस दिए जाते हैं |

आर्थिक रूप से निर्भरता

सबसे बड़ा और मुख्य कारण है, एक महिला का आर्थिक रूप से कमजोर होना | जब महिला पूर्ण रूप से अपनी निजी जरूरतों के लिए अपने पार्टनर पर निर्भर होती है, तो ऐसे में उसे छोड़ना भी मुश्किल हो जाता है | पार्टनर के हिंसक व्यवहार के बावजूद भी आर्थिक रूप से उस पर निर्भरता के कारण महिला को अपना आत्मसम्मान खोना पड़ता है | 

आर्थिक रूप से अनिश्चितता के कारण वो ऐसे रिश्ते में बंधी रहती है | उन महिलाओं को समझ ही नहीं आता कि अगर उन्होंने अपने पार्टनर को छोड़ा तो उनका और उनके बच्चों का क्या होगा? आखिर कैसे वो अपना जीवनयापन कर पाएगी? और ये बात अगर उनके साथी को पता है तो वह उन्हें ओर हल्के में लेता है |

आर्थिक अस्थिरता एक महिला को पार्टनर द्वारा प्रताड़ित स्थिति में रहने के लिए बाध्य बना देती है |

देश की हर बेटी व महिला का आर्थिक रूप से मजबूत होना उसके और एक विकसित समाज के लिए अति आवश्यक है | तो एक महिला का किसी की पत्नी बनने से पहले आर्थिक स्थिति का बेहतर होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है |

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विचारों की अस्पष्टता 

जो महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से अपने पार्टनर से प्रताड़ित होने के बाद भी उस रिश्ते से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाती, वे कहीं न कहीं एक असमंजस में रहती है और उनकी मुख्य समस्या अपने ही विचारों में अस्पष्टता है | 

उनके विचारों में ऐसी अस्तव्यस्ता आ जाती है कि वे स्वयं को ही हिंसा का दोषी समझने लगती है | उनके जीवन में हिंसा उनके रिश्ते का एक कड़वा सच बन जाता है | अपने रिश्ते के इस अनचाहे पहलू को वो अपने जीवन का एक हिस्सा मान लेती है | उन्हें समझ में ही नही आता कि उनके साथ हो क्या रहा है |

धीरे-धीरे हिंसा के शरीर पर लगने वाले निशान मस्तिष्क पर भी अपनी छाप छोड़ने लगते है | उनका आत्मविश्वास पूर्णतः समाप्त हो जाता है और वो स्वयं को मूल्यहीन समझने लगती है | उनका आत्मसम्मान तो मानो कहीं खो ही जाता है | वो खुद को समाज से विरक्त समझने लगती है | 

अपनी दबी कुचली भावनाओं को वो एक ऐसे विराने में बंद कर देती हैं, जहाँ से कभी निकला ही न जा सके |

अपने ऊपर होते उत्पीड़न को सामान्य मान केवल उसके निशानों को समाज से छुपाती रहती है और एक दोगली जिंदगी जीने लगती है, जिसमें उसका अस्तित्व कहीं नहीं है |

मनोवैज्ञानिक तौर पर हिंसा से दिमाग में नकारात्मकता अधिक पैदा होती है | साथ ही अपनी पुरानी जीवनशैली में दोबारा लौटने में भी कई साल लग जाते हैं | लगातार इस तरह की हिंसा से महिलाएं अपना संतुलन खो बैठती हैं या फिर अवसाद का शिकार हो जाती हैं | महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में सबसे ज्यादा दुख की बात यह है कि जिसके साथ उन्होंने अपना पूरा जीवन बिताने का फैसला किया होता है, जिन पर वे सबसे अधिक भरोसा करती है उनसे ही प्रताड़ित होती हैं |

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साथी के सुधरने की उम्मीद

शादी को जीवन भर साथ निभाने का एक अटूट रिश्ता माना गया है | ऐसे में पार्टनर की गलतियों को माफ कर उसे मौका देने की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है | 

ऐसे रिश्तों में पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं को भी फंसे देख आश्चर्य होता है | उनका साथी उनके प्यार और सहयोग से अपने विचारों में परिवर्तन ला जल्दी ही सुधर जायेगा, ये उम्मीद ऐसे रिश्तों की उम्र लम्बी कर देती है |

कई मामलों में पार्टनर भी अपनी गलती मानता है और कभी कभी तो गिड़गिड़ाता है | वो अपने आप को बहुत बुरा बताता है और  सुधरने का वादा भी करता है | भावनाओं और संस्कार की पट्टी आँखो पर बांधे महिला अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को भूल अपने पार्टनर को संभालने में लग जाती है | जिसका परिणाम कुछ नही निकलता बल्कि एक चक्र चलता रहता है : हिंसा-माफी-उम्मीद-हिंसा |

ऐसे रिश्तों में महिलाओं को अपने पार्टनर से हमदर्दी होती है और उसके सुधरने की उम्मीद को वो हॄदय से लगाए रहती है | उन्हें लगता है अगर वो अपने साथी को छोड़कर चली गई तो वह बिखर जाएगा, लेकिन उसकी मदद के चक्कर में खुद का अहित करती रहती हैं |

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परिवार का दबाव

रिश्तों में अलगाव की बात आते ही समाज के बुद्धिजीवी अपने अपने ज्ञान की पोटली बांधे आपके ऊपर ज्ञान की पूरी वर्षा ही कर देंगे |

हमारे समाज में माना जाता है कि रिश्तों को बनाना मुश्किल होता है और तोड़ना बहुत आसान | ऐसे में अगर आप अपने रिश्ते को तोड़ने की बात करेंगी तो अनगिनत लोग आपके ऊपर अपनी समझदारी की बौछार करने के लिए तत्पर खड़े होंगे | खासकर महिला के सगे संबंधी और परिवार वाले न जाने समाज, नाते-रिश्तों की ऐसी कथा वाचने लगेंगे कि न चाह कर भी महिला को उस अनचाहे रिश्ते में बंधकर रहना पड़ता है |

अधिकतर ऐसे रिश्तों में परिवार वाले प्यार या दबाव से एक महिला को उस रिश्ते में जुडे़ रहने के लिए मजबूर कर ही देते है | परिवार और समाज की दुहाई के पेचीदा जाल के कारण एक अनचाहे अंतहीन दुष्चक्र में फंस कर रह जाती है एक महिला |

बच्चे के भविष्य का सवाल

एकल अभिभावक के रूप में हमारे समाज में बच्चे की परवरिश करना बहुत मुश्किल काम है | उस पर एक महिला का अपने बच्चे को अकेले पालना तो और भी कठिन है | एक ओर बच्चे की आवश्यकताओं का ध्यान रखना दूसरी और समाज और विकृत लोगों की बूरी नजर का भय |

एक महिला के लिए अकेले अपने बच्चे की परवरिश करना किसी चुनौती से कम नहीं होता | ऐसे में एक महिला अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए स्वयं को असुरक्षित कर लेती है |

लेकिन सोचने वाली बात है कि कलह भरे माहौल में भला किसी बच्चे का मानसिक विकास हो पाना संभव है क्या? ऐसे तनाव भरे वातावरण में कोई बच्चा उच्च संस्कार कैसे प्राप्त कर सकता है | 

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इर्द-गिर्द पनपता डर

कई बार और ज्यादा उनके साथ बुरा होने का डर महिलाओं को इस कदर डराता है कि वे इस भय से ही भयभीत रहती हैं | घुट-घुट कर जीने का चुनाव कर हिंसा को अपनी किस्मत मान लेती है |

घरेलू हिंसा के डर से महिलाओं का बाहर आ पाना बहुत मुश्किल होता है |

पार्टनर उत्पीड़न का ऐसा डर उनमें बिठा देता है कि वो किसी और से तो क्या स्वयं को भी यह नही कहती कि उनके साथ कुछ बुरा होता है | अकेले होने का डर उनके मन में इस तरह घर कर जाता है कि वो अपने ऊपर होने वाली हर हिंसा को बरदाश्त करती रहती हैं |

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क्या करें अगर पार्टनर हिंसक है तो

सबसे पहली बात तो जब आपका साथी पहली बार आप पर हिंसा करने की कोशिश करे उसी वक्त उसका विरोध करें | पहली बार की गलती समझ कर छोड़ देना मूर्खता है क्योंकि पहली बार कब बार-बार बन जायेगा यह आपको भी नहीं पता चलेगा |

हर महिला की आर्थिक स्थिति का मजबूत होना बहुत आवश्यक है | अगर आप आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं तो बनें |

आस-पास के आपातकालीन आश्रय गृह का पता करके रखें |

अपने माता-पिता और सास-ससुर को अपनी परेशानी से अवगत करायें |

यदि आपकी कहीं कोई किसी भी रूप में कोई गलती नहीं है तो सबसे महत्वपूर्ण स्वयं को दोषी न समझें | अपने आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को खोने न दे |

अगर आपको लगता है कि चीजें नही सुधर सकती या परिस्थिति आपके काबू से बाहर है और किसी तरह का कोई उपाय या विकल्प काम नहीं आ रहा है तो पुलिस की सहायता लें और उनसे कानून विकल्प की जानकारी लें |

यह लेख समाज में जिन महिलाओं के ऊपर हो रहे शोषण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से लिखा गया है | इसका उद्देश्य किसी भी महिला को पुरुषों के प्रति किसी तरह से द्वेष या घृणा पैदा करना नहीं है | 

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