जिन्हें स्वयं की माँ ने त्याग दिया या परिस्थिति की मार से हुए अनाथ बच्चों की माँ बनी सिंधुताई सपकाल| उन्होंने उन बच्चों के भरण-पोषण के लिए रेलवे स्टेशन पर और ट्रेनों में गाना गा कर भीख भी मांगी हैं| यही नही कही वह बच्चों से कोई भेदभाव न कर दे इसलिये अपनी बेटी को किसी ओर को गोद दे दिया| 1500 से ज्यादा बच्चों को अपना चुकी पद्मश्री सम्मानित सिन्धुताई सपकाल ने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों को समर्पित किया हैं| इसलिए उन्हें माई कहा जाता हैं|
सिंधुताई सपकाल एक भारतीय समाजिक कार्यकर्ता थी| उन्हें अनाथ बच्चों की माँ के रूप में जाना जाता है| वें महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से भी प्रचलित हैं| वर्ष 2016 में उन्हें समाज सेवा के कार्यों के लिए डी वाई पाटिल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च द्वारा साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था|
वह महान आत्मा 74 वर्ष की उम्र में पुणे (महाराष्ट्र) में 4 जनवरी 2022 को दिल का दौरा पड़ने से परमात्मा में विलीन हो गईं|
समाज की कुछ रूढिवादी प्रथाओं और समाजिक पाखंड के कारण महिलाओं पर अनेको अंकुश लगाये जाते रहे हैं| हालांकि अब महिलाओं ने हर निरंकुशता का मुँह तोड जवाब दिया हैं|
यह समझना अति आवश्यक है कि अपने जीवन को सफल और सक्षम बनाने का उत्तरदायित्व हमारा स्वयं का होता हैं| हमारी स्थिति हमारे चुनावों का परिणाम होती हैं| विपरीत परिस्थिति में भी बिना डरे संघर्ष का सटीक उदाहरण हैं, ‘डां० सिंधुताई सपकाल’|
जीवनी
डां० सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवम्बर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गाँव मे हुआ था| उनके पिताजी का नाम ‘अभिमान साठे’ है, जो कि एक चरवाह थे। लैंगिक भेदभाव यानी बेटी होने के कारण उन्हें घर में चिंधी (कपड़े का फटा टुकड़ा) नाम से पुकारा जाता था| उनके पिता उनकी शिक्षा के पक्ष में थे इसलिए उनकी माँ के विरोध के बाद भी उन्होंने सिंधुताई को स्कूल भेजा|
माँ के विरोध, आर्थिक समस्याओं के चलते उनकी शिक्षा में बाधाएँ आती रही और फिर घरेलू जिम्मेदारी और बाल विवाह के कारण वें चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाई|
सिंधुताई का विवाह केवल 10 वर्ष की आयु में 30 वर्षीय श्रीहरी सपकाल से कर दिया गया| 20 वर्ष की आयु तक वह 3 बेटों को जन्म दे चुकी थीं| वें बाल विवाह जैसी कुप्रथा के जाल में फँसने के बाद भी जीवन के प्रति आशावादी विचारों से युक्त थीं| विवाह के बाद, वह जमींदारों और वन अधिकारियों द्वारा महिलाओं के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने से कभी नही कतराती थी|
सिन्धुताई हमेशा दुर्व्यवहार के प्रति सजगता और दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहती थीं| इस व्यवहार ने ही उनके आने वाले संघर्ष को गढ़ा|
सिन्धुताई ने जिला अधिकारी से गाँव वालों को उनकी मजदूरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया की शिकायत की थी| अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने श्रीहरी को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए धमकाया|
उस मुखिया ने 20 वर्षीय और 9 महिने की गर्भवती सिन्धुताई पर अवैध यौन संबंधों की घृणित अफवाह फैला दी| और उनके पति ने चरित्रहीनता का आरोप लगाकर उन्हें पीटकर घर से निकाल दिया|
उसी रात उन्होंने गौशाला में अर्धचेतन अवस्था में एक बेटी को जन्म दिया| अपनी गर्भनाल को उन्होंने पत्थर से मार मार कर काटा था|
बेसुध और निराश सिन्धुताई जैसे-तैसे अपनी माँ के घर पहुँची परन्तु उनकी माँ ने उन्हें आसरा नही दिया| उनके पिताजी का निधन हो चुका था संभवतः वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते|
सिन्धुताई अपनी नवजात बेटी को लिए रेलवे स्टेशन और सड़को पर पेट भरने के लिए भीख माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने हेतु श्मशान में जा कर रहती| वहाँ पर फेंके हुए कपड़े पहनती और श्मशान की जलती चिताओ पर रोटी बना कर खाती| फिर कुछ आदिवासियों से उनकी पहचान हो गयी|
चिखलदरा में बाघ संरक्षण परियोजना के तहत 24 आदिवासी गांवों को खाली कराया गया था| सिन्धुताई ने असहाय आदिवासी लोगों की इस गंभीर स्थिति के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला लिया| उनके लगातार प्रयासों के परिणामस्वरूप वन मंत्री ने मान्यता दी, और आदिवासी ग्रामीणों के लिए प्रासंगिक वैकल्पिक पुनर्वास व्यवस्था बनाने का आदेश दिया|
उनके इस संघर्षमय काल में उन्होंने अनुभव किया कि देश में कितने सारे अनाथ बच्चे है जिनको एक माँ की आवश्यकता है| इस विचार ने उन्हें झंझोड़ दिया और इस तरह उन्होंने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ बच्चा उन्हें मिलेगा वें उनकी माँ बनेंगी| रेलवे स्टेशन पर उन्हें एक बच्चा मिला, जिसे उन्हें गोद ले लिया| इसी तरह ओर भी बच्चों को गोद लिया| उनके भरण-पोषण के लिये भीख माँगती| धीरे-धीरे लोग सिंधुताई को माई के नाम से जानने लगे और स्वेच्छा से उनके अपनाये बच्चों के लिए दान देने लगे|
उन्होंने अपनी खुद की बेटी ममता को ‘श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र’ ट्रस्ट में गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके और उनसे अनजाने में भी कोई भेदभाव न हो|
कई वर्षों के संघर्ष के बाद सिन्धुताई ने पुणे में अपने पहले आश्रम सनमति बाल निकेतन संस्था की स्थापना की| उन्होंने आश्रम के लिए धन जुटाने हेतु कई शहरों और गांवों का दौरा किया| उन्होंने 1500 से ज्यादा बच्चों को गोद लिया है, वे सभी प्यार से उन्हें माई कहकर बुलाते हैं|
उनकी अपनी बेटी वकील है और उनके गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर, अभियन्ता, वकील हैं और उनमे से बहुत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते हैं|
सिन्धुताई ने महाराष्ट्र में अनाथ बच्चों के लिए 6 अनाथालय बनाए, उन्हें भोजन, शिक्षा और आश्रय प्रदान किया और साथ ही उनके द्वारा चलाए जा रहे संगठनों ने असहाय और बेघर महिलाओं को भी सहायता दी|
उनके परिवार में आज 1500 से अधिक बेटे-बेटियाँ, 382 दामाद और 49 बहुएं और 1000 से अधिक पोते-पोतियाँ हैं|
अपने अनाथालयों को चलाने के लिए सिंधुताई ने सार्वजनिक मंचों पर प्रेरक भाषण दिए और समाज के वंचितों और उपेक्षित वर्गों की मदद के लिए सार्वजनिक समर्थन मांगा| विदेशी अनुदान आसानी पूर्वक मिले इस उद्देश से उन्होंने मदर ग्लोबल फाउंडेशन संस्था की स्थापना की|
सिन्धुताई के पति 80 वर्ष की उम्र में उनके साथ रहने के लिए आए| अब वे सिर्फ एक माँ है, ये कहते हुए सिन्धुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप में स्वीकार किया|
सभी बच्चों को वे अपना बेटा या बेटी मानती थी और उनके लिए किसी में कोई भेद नहीं| रेलवे स्टेशन पर मिला वह पहला बच्चा आज उनका सबसे बड़ा बेटा है| और आश्रमों का प्रबंधन कार्य उसके कंधों पर हैं|
सिंधुताई को उनके सामाजिक उत्थान के उत्कृष्ट कार्यों के लिये 750 से ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया| जिनमें “अहिल्याबाई होलकर” पुरस्कार है जो स्त्रियों और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजसेवियों को महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिया जाता है| 2021 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था| उन्होंने हमेशा पुरस्कार राशि का प्रयोग अनाथालयों के खर्चो के लिये किया|
2010 में मराठी भाषा में उनकी बायोपिक ‘मी सिंधुताई सपकाल’ बनी थी| ये बायोपिक 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल के वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी चुनी गई थी|
सिन्धुताई कविता भी लिखती थी| उनकी कविताओं में जीवन का सार मिलता है| वे अपनी माँ के प्रति आभारी रही क्योंकि अगर उनकी माँ ने उनको पति द्वारा घर से निकालने के बाद अपने घर में सहारा दिया होता तो वें इतने सारे बच्चों की माँ नहीं बन पाती|
सिंधुताई द्वारा स्थापित अन्य समकक्ष संस्थाएं
• बाल निकेतन हडपसर, पुणे
• सावित्रीबाई फुले लडकियों का वसतिगृह, चिखलदरा
• अभिमान बाल भवन, वर्धा
• गोपिका गाईरक्षण केंद्र, वर्धा (गोपालन)
• ममता बाल सदन, सासवड
• सप्तसिंधु महिला आधार बालसंगोपन व शिक्षणसंस्था, पुणे
जीवन यात्रा में कई बार जीवन उद्देश्यों में हार का सामना करना पड़ता हैं, किंतु हार को हताशा में परिवर्तित कर स्वयं को असहाय और कमजोर बनाने के बजाय संघर्ष यात्रा को दृढ़ करना अति आवश्यक हैं|
Jagdisha का सिन्धुताई को सहृदय प्रणाम और श्रद्धांजली| आपके जीवन का संघर्ष हताश और निराश व्यक्ति में भी उत्साह भरने वाला हैं|