रोशन कुमारी फकीर मोहम्मद, कथक में अपने अलग अंदाज़ के लिए जानी जाती हैं। अपनी कला के माध्यम से उन्होंने भारतीय कला जगत और शास्त्रीय नृत्य की परंपरा को बहुत धनी किया है।
आज के दौर में शास्त्रीय संगीत और नृत्य कला, मानो पश्चिमी सभ्यता का चलन बढ़ने के कारण कम होती जा रही है। जो भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय कला जगत के लिए एक बड़ी हानि है।
भारत में कथक की एक पूरी पीढ़ी को तैयार करने में रोशन कुमारी का बहुत बड़ा योगदान है ।
रोशन कुमारी एक भारतीय अदाकारा, शास्त्रीय नृत्यांगना और कोरियोग्राफर हैं। वह भारत की सबसे प्रसिद्ध कथक कलाकारों में से एक हैं। वह कथक के जयपुर घराने से ताल्लुक रखती हैं।
वह कथक को प्रचारित करनेवाली अकादमी नृत्य कला केंद्र, मुंबई की स्थापक भी हैं। कला में अतुल्य योगदान के लिए वह कई सम्मान भी अपने नाम कर चुकी हैं।
रोशन कुमारी, 1975 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित की गईं। उन्हें 1984 में भारत सरकार की ओर से पद्म श्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
रोशन कुमारी उस दौर से संबंध रखतीं हैं, जब नृत्य प्रस्तुत करना बहुत अच्छा नहीं माना जाता था। यह एक सम्मानित काम नहीं समझा जाता था। लेकिन अपनी कला और अलग अंदाज से रोशन कुमारी कथक को नई ऊंचाईयों तक ले गईं।
तो आइये जानते हैं प्रसिद्ध नृत्यांगना की कहानी…
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प्रारंभिक जीवन
रोशन कुमारी का जन्म क्रिसमस की पूर्व संध्या पर उत्तर भारतीय राज्य हरियाणा के अंबाला में (तत्कालीन पंजाब) में हुआ। उनके पिता चौधरी फकीर मोहम्मद, एक प्रसिद्ध तबला वादक और माॅं ज़ोहराबाई अम्बालेवाली, प्रसिद्ध शास्त्रीय और पार्श्व गायिका थीं।
रोशन कुमारी अपने पिता के बहुत करीब थीं। संगीत से संबंध रखनेवाले परिवार में जन्मी रोशन कुमारी का बचपन से ही सुर और ताल से परिचय हो गया था।
उनकी माँ उन्हें गायक बनाना चाहती थीं और उन्हें संगीत की शिक्षा देना चाहती थी। लेकिन उन्होंने नृत्य को चुना और कथक की शिक्षा ली।
रोशन कुमारी ने बहुत छोटी उम्र में कथक सीखना शुरू कर दिया था। उन्होंने प्रारंभिक कथक की शिक्षा के.एस. मोरे से ली थी। के.एस. मोरे हिंदी फिल्मों में डांस डॉयरेक्टर थे।
उसके बाद उन्होंने मुम्बई के महाराज बिंदादीन स्कूल में अभ्यास जारी रखा। उन्होंने सुंदर प्रसाद से भी कथक के गुर सीखे। उन्होंने गुलाम हुसैन खान और हनुमान प्रसाद से भी प्रशिक्षण लिया।
कथक के अलावा उन्होंने गोविंद पिल्लई और महालिंगम पिल्लैई से भरतनाट्यम का भी प्रशिक्षण लिया।
रोशन कुमारी अपने पिता के साथ कथक का अभ्यास किया करती थीं। उनके पिता तबला बजाते थे और वह नाचती थी।
उन दिनों महिलाओं के डांस करने को सम्मान की नज़रों से नहीं देखा जाता था लेकिन उनके पिता ने उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया। समाज के नज़रिये से अलग वह अपनी बेटी को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा उनके सहयोग में खड़े रहे।
रोशन कुमारी ने बहुत छोटी उम्र में पहली बार एक बड़े मंच पर अपनी कला की प्रस्तुति दी थी। उन्होंने इसके बाद देश के कई अलग-अलग राज्यों में जाकर कथक की प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी।
वह जल्द ही अपनी कला के बल पर प्रसिद्ध हो गईं।
रोशन कुमारी ने देश के कोने-कोने में जाकर कथक की प्रस्तुति दी है। वह राष्ट्रपति भवन में भी कई बार कथक की प्रस्तुति दे चुकी हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, निकिता ख़्रुश्चेव, मिल्टन ओबोटे, जॉर्डन के हुसैन और नेपाल के राजा जैसी हस्तियों के सामने भी प्रदर्शन किया है।
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फिल्मी करियर
साल 1953 में बिमल रॉय ने रोशन कुमारी को अपनी फिल्म ‘परणीता’ में काम करने के लिए चुना। इसके बाद तो फिल्मों में काम करने का सिलसिला शुरू हो गया।
जिसके बाद रोशन कुमारी को एक के बाद एक फिल्मों में काम करने का न्यौता मिला।
‘परणीता’ के बाद अगले साल उन्हें नितिन बोस निर्देशित ‘वारिस’ में काम करने का मौका मिला।
फिर उन्होंने सोराब मोदी की ‘मिर्ज़ा गालिब’ में भी प्रस्तुति दी । 1956 में उन्होंने राजा नवाथे की फिल्म ‘बसंत बहार’ में भी अपनी नृत्यकला का प्रर्दशन किया।
रोशन कुमारी का फिल्मों में बतौर डांसर करियर तेजी से बढ़ रहा था। साल 1958 में उन्होंने सत्यजीत रे की निर्देशित फिल्म ‘जलसाघर’ में कथक की एक प्रस्तुति दी थी।
रोशन कुमारी ने हिंदी फिल्मों में बतौर कोरियोग्राफर भी काम किया है।
उन्होंने चेताली (1975), सरदारी बेगम (1996), लेकिन (1990) जैसी फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप में काम किया।
1970 में भारत सरकार के फिल्म डिवीजन ने भारत में कथक के इतिहास और चलन पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। जिसमें देश के मशहूर कथक कलाकारों ने प्रस्तुति दी थी। इस डॉक्यूमेंट्री में दमयंती जोशी, उमा शर्मा, शंभू महाराज और रोशन कुमारी की भी प्रस्तुति थी।
1971 में उन्होंने बांद्रा, मुंबई में नृत्य कला केंद्र, स्थापित किया। जहां उन्होंने बहुत से विद्यार्थियों को कथक सिखाया। उन्होंने कथक को नई पीढ़ी तक प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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सम्मान
रोशन कुमारी को कथक की कला में योगदान देने के लिए अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका हैं।
- साल 1963 में रोशन कुमारी को 12वें ऑल इंडिया म्यूज़िक कॉन्फ्रेंस में प्रयाग संगीत समिति द्वारा ‘नृत्य शिरोमणि’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
- साल 1976 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया था।
- साल 1984 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था।
- साल 1989 में वह बंगाल सरकार की ओर से ‘विश्व उन्नयन पुरस्कार’ प्राप्त कर चुकी हैं।
- साल 1990 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
- साल 1993 में उन्हें जयपुर के कथक केंद्र ने ‘मान पत्र’ प्रदान किया।
रोशन कुमारी भारत सरकार की ओर से ‘एमेरिटस फेलो’ भी रह चुकी हैं।
भारतीय कला और संस्कृति का विस्तार बहुत विशाल है। रोशन कुमारी जैसे कलाकारों के कारण ही शास्त्रीय कला आज भी भारत वर्ष में अपनी पहचान बनाएं हुए हैं।
वरना पाश्चत्य संस्कृति की होड़ के चलते शास्त्रीय संगीत और नृत्य कला तो अपने दम तोड़ती जा रही है।
भारत कला और संस्कृति से जुड़ा देश है, जो भारत को दूसरे देशों से भिन्न करता है। तो अपनी कला और संस्कृति की विरासत को संभालने का कार्यभार समस्त देशवासियों का है। हमें शास्त्रीय कला का सम्मान करना चाहिए।
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Jagdisha शास्त्रीय नृत्य कला कथक की परंपरा को बढ़ावा देने के लिए रोशन कुमारी आपको हमारा धन्यवाद। हम आपके स्वस्थ जीवन की कामना करते है।
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