जानिये वर्ल्ड चैम्पियन मुक्केबाज मैरी कॉम के जीवन का उल्लेखनीय सफर

जानिये वर्ल्ड चैम्पियन मुक्केबाज मैरी कॉम के जीवन का उल्लेखनीय सफर

अपने खेल के बल पर कई महान उपलब्धियां हासिल कर, देश को गौरवान्वित कर चुकी हैं यह भारतीय महिला मुक्केबाज |

महिला मुक्केबाज नाम आते ही सबसे पहला नाम कोई आता है, तो वो है एम.सी. मैरी कॉम | वह छ: बार की वर्ल्ड चैम्पियन रह चुकी है, 2018 के विश्व चैंपियनशिप खेलो में उन्होंने छठा गोल्ड मेडल जीता था |

मैरी कॉम 8 बार ‍विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं | 2012 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में उन्होंने कांस्य पदक जीता | ओलंपिक में महिला मुक्केबाजी में कोई भी पदक हासिल करने वाली वे पहल महिला बॉक्सर हैं | 

2010 के ऐशियाई खेलों में काँस्य तथा 2014 के एशियाई खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया | 

2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर, ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज़ बन उन्होंने इतिहास रचा | 

इनका मूल नाम मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है | वे मणिपुर, भारत की मूल निवासी हैं | 

मुक्केबाजी में देश को गौरवान्वित करने वाली मैरी कॉम को भारत सरकार ने वर्ष 2003 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया | 

वर्ष 2006 में पद्मश्री और 2009 में उन्हें देश के सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया | 

वर्ष 2013 में देश के तीसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण और 2020 में देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित हुईं |

बॉक्सिंग यानी मुक्केबाजी की दुनिया में अपनी उपलब्धियों और सफलताओं के कारण मैरी कॉम आज हर भारतीय महिला के लिए प्रेरणा हैं |

उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनी जिसका प्रदर्शन 2014 मे हुआ | ओमंग कुमार द्वारा निर्देशित इस फिल्म में उनकी भूमिका प्रसिद्द नायिका प्रियंका चोपड़ा ने निभाई | 

वर्ष 2016 में मैरी कॉम राज्सभा की सदस्य बनीं |

वे मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी के नाम से भी जानी जाती हैं |

आइये जानते है मैरी कॉम की संघर्ष यात्रा…

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प्रारंभिक जीवन

मैरी कॉम का जन्म 1 मार्च 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिला में हुआ था | उनके पिता मांगते तोनपा कॉम एक गरीब किसान थे | उनकी माँ का नाम मांगते अक्हम कॉम है | उनका परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं था | 

लेकिन मेहनत और लगन ऐसे शस्त्र है जिनका निरंतर अभ्यास किया जाए तो लक्ष्य पर विजय प्राप्त की जा सकती है | मैरी कॉम ने भी अपनी इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास और निरंतर संघर्ष के पथ पर चलते हुए कई उपलब्धियां प्राप्त की |

उनकी प्रारंभिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल में कक्षा 6 तक और सेंट जेविएर स्कूल में कक्षा 8 तक हुई | इसके बाद उन्होंने कक्षा 9 और 10 की पढाई के लिए इम्फाल के आदिमजाति हाई स्कूल में दाखिला लिया लेकिन वह प्रवेश परीक्षा पास नहीं कर सकीं |

वह इस स्कूल की परीक्षा में दोबारा नहीं बैठना चाहती थीं, अत: उन्होंने स्कूल न जाने का निर्णय लिया और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से परीक्षा देने का निर्णय लिया |

उन्होंने स्नातक कि परीक्षा राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से पूर्ण की और चुराचांदपुर कॉलेज से वह ग्रेजुएट हुई |

मैरी कॉम का रुझान खेलकूद की ओर अधिक था और एथलेटिक्स में जाने पर उन्हें बॉक्सिंग की ओर आकर्षण हुआ |

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बॉक्सिंग में पहचान बनाने का विचार कैसे आया?

मैरी कॉम की रूचि बचपन से ही खेलकूद में बहुत अधिक रही | उनकी रूची भाला चलाने और 400 मीटर की दौड़ में थी | बॉक्सिंक भले ही उनकी पहला चुनाव नहीं था लेकिन एक बार जब ठान लिया तो फिर उन्हें कौन रोक पाता | उन्होंने घर के सदस्यों से छुपकर अपनी ट्रेनिंग प्रारम्भ कर दी थी और अपने माता पिता को बताये बिना अपनी ट्रेनिंग को जारी रखा |

मुक्केबाजी की ओर उनका रुझान तब बढ़ा जब 1998 में मणिपुर राज्य के ही डिंगो सिंह ने बॉक्सिंग में सफलता हासिल की | डिंगो सिंह ने एशियाई खेलों, बैंकॉक में मुक्केबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता था | उनकी जीत का बड़े जोर-शोर से उत्सव मनाया गया था |  इससे मैरीकॉम बहुत ज्यादा प्रभावित हुईं और उन्हें बॉक्सिंग के क्षेत्र में, आने की प्रेरणा मिली | 

मैरी कॉम ने 15 साल की उम्र में ही, यह निश्चय कर लिया कि उन्हें बॉक्सिंक के क्षेत्र में अपना करियर बनाना है | उन्होंने प्रशिक्षण के लिए, इंफाल शहर की एक खेल अकादमी में प्रवेश लिया और के कोसाना मेइती के सानिध्य में अपनी ट्रेनिंग शुरू की |

ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने एक बार ‘खुमान लम्पक स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स’ में लड़कियों को लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते हुए देखा और वो आश्चर्यचकित रह गईं | यह देखकर उनका निर्णय और कठोर हो गया और उन्होंने बॉक्सिंग चैम्पियन बनने की ठान ली |

इसके बाद मैरी कॉम ने अपने सपने को सच करने के लिए मणिपुर राज्य के इम्फाल में बॉक्सिंग कोच एम नरजीत सिंह से ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया |

ट्रेनिंग के दौरान जब सभी प्रशिक्षु सीखकर चले जाते थे तब भी मैरी कॉम रात में भी काफी काफी देर तक अपना अभ्यास किया करती थीं | उनकी लगन और कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि वे एक बॉक्सिंग के गुर में निखरती गईं |

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बॉक्सिंग करियर

मैरी कॉम का करियर वर्ष 2000 में शुरू हुआ जब उन्होंने मणिपुर राज्य महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय चैम्पियनशिप में जीत हासिल की |

तब उनकी उपलब्धि को अखबारों और टीवी चैनल पर दिखाया गया | जिसके कारण घर वालों को भी मैरी कॉम के बॉक्सिंग के बारे में पता चल गया | भले ही आरंभ में उन्हें परिवार का सहयोग न मिला लेकिन उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए, उनके परिवार के सदस्यों ने उनका प्रोत्साहन करना शुरू कर दिया |

वर्ष 2001 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा आरंभ की | वह केवल 18 साल की थी जब उन्होंने पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में अंतरराष्ट्रीय पदार्पण किया, और 48 किलो भार वर्ग में रजत पदक जीता |

एक साक्षात्कार में मैरी कॉम ने बताया है कि ओलंपिक से ज्यादा मुश्किल महिला चैंपियनशिप या एशियाई चैंपियनशिप होती है | क्योंकि इसमें हर कोई भाग लेता है और विश्व भर की टीम भाग लेती हैं | 

निरंतर अभ्यास और लगन से वर्ष 2002 में, उन्होंने तुर्की में द्वितीय एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में 45 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक अपने नाम किया |

उसी वर्ष उन्होंने हंगरी, विश्व कप में 45 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता |

वर्ष 2003 में मैरी कॉम ने भारत में एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में 46 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता |

वर्ष 2004 में उन्होंने नॉर्वे में महिला मुक्केबाजी के विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता | वर्ष 2005 में,उन्होंने फिर से 46 किलो वजन वर्ग में ताइवान में एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप और रूस में एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप दोनों में स्वर्ण पदक पर दाव मारा और जीता |

वर्ष 2006 में, उन्होंने डेनमार्क में महिला विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता और भारत में एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया |

इस तरह उन्होंने लगातार, तीन बार वर्ल्ड चैंपियनशिप अपने नाम की |

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माँ बनने के बाद बॉक्सिंग में वापसी

2007 में मैरी कॉम ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया |

माँ बनने के बाद, मैरीकॉम ने 1 साल का विराम लिया | उनका यह दौर बहुत मुश्किल रहा | इस समय, इन्होंने अपनी बॉक्सिंग पूरी तरह से छोड़ दी थी और अपना पूरा समय, अपने घर-परिवार को दिया | 

इसके बाद दोबारा बॉक्सिंग में आना बहुत ही कठिन काम था | लेकिन पति के सहयोग और प्रोत्साहन के बल ने उन्हें फिर से मजबूती दी और एक बार फिर से उन्होंने अपनी मुक्केबाजी की कमान थामी |  

मैरी कॉम को उनके पति ने दोबारा बॉक्सिंग की ट्रेनिंग के लिए तैयार किया | इस दौरान, वह अपने बच्चों से दूर रहती थी |

मैरी कॉम ने 2008 में वापसी की और भारत में आयोजित एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में 46 किलो भार वर्ग में रजत पदक जीता | 46 किलो भार वर्ग में ही उन्होंने चीन में एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में लगातार चौथा स्वर्ण पदक जीता |

वर्ष 2009 में उन्होंने 46 किलो भार वर्ग में वियतनाम में एशियाई इंडोर खेलों में स्वर्ण पदक जीता |

वर्ष 2010 में, मैरी कॉम ने कजाकिस्तान में आयोजित एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता |

इसी वर्ष बारबाडोस में एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में लगातार पांचवा स्वर्ण पदक जीता | उन्होंने 48 किलो भार वर्ग में हिस्सा लिया क्योंकि एआईबीए ने 46 किलो भार वर्ग को बंद कर दिया था |

वर्ष 2010 में आयोजित एशियाई खेलों में उन्होंने 51 किलो भार वर्ग में भी भाग लिया और जहाँ उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा |

दिल्ली में आयोजित 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में उन्हें विजेंदर सिंह के साथ स्टेडियम में उद्घाटन समारोह के दौरान क्वींस बैटन पकड़ने का सम्मान मिला था | हालांकि, उन्होंने प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं लिया था क्योंकि महिलाओं की मुक्केबाजी स्पर्धा को खेलों में शामिल नहीं किया गया था |

वर्ष 2011 में, चीन में एशियाई वुमेन कप में 48 किलो भार वर्ग में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता | 2012 में, उन्होंने मंगोलिया में एशियाई महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में 51 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक अपने नाम किया |

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वर्ष 2012 लंदन ओलंपिक के बाद उनकी ख्याति में चार चांद लगा दिए जब वह ओलिंपिक में क्वालीफाई करने और कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज बन गईं | उन्होंने 51 किलो भार वर्ग में भाग लिया और साथ ही ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय महिला बनी |

मैरी कॉम ने वर्ष 2014 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत भारत के लिए इतिहास रच दिया | वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं | 

26 अप्रैल 2016 को उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में संसद सदस्य के रूप में नामित किया गया था |

8 नवंबर 2017 को, उन्होंने वियतनाम में हो ची मिन्ह में आयोजित एएसबीसी एशियाई परिसंघ की महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 48 किलो भार वर्ग में शान से पाँचवाँ स्वर्ण पदक हासिल किया।

24 नवंबर 2018 को, उन्होंने भारत के नई दिल्ली में आयोजित 10वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 6 विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली उपलब्धि अपने नाम कर इतिहास रच दिया |

वर्ष 2019 में उन्होंने एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में 51 किलो भार वर्ग में कांस्य पदक जीता |

अक्टूबर 2019 में, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने उन्हें 2020 टोक्यो ओलंपिक खेलों के लिए मुक्केबाजी के एथलीट राजदूत समूह की महिला प्रतिनिधि के रूप में नामित किया |

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व्यक्तिगत जीवन

लगभग 4 साल की दोस्ती और फिर प्यार के अनुभव के के बाद मैरी कॉम ने वर्ष 2005 में फुटबॉल खिलाडी करंग ऑनलर के साथ शादी की | 

वर्ष 2001 में मैरी कॉम जब पंजाब में नेशनल गेम्स खेलने के लिए जा रही थी, तभी उनकी मुलाकात ऑनलर से हुई थी | उस समय वह दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई कर रहे थे |

इनका पहली बार मिलना वर्ष 2001 में बैंगलोर जाते समय हुआ था | इस खूबसूरत जोड़े के तीन बच्चे भी है जिनका नाम रेचुंगवर कॉम, खुपनैवर कॉम व प्रिंस कॉम है | रेचुंगवर कॉम और खुपनैवर कॉम दोनों जुड़वाँ बच्चे हैं जिनका जन्म 2007 में हुआ था और प्रिंस कॉम का जन्म 2013 में हुआ था |

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पुरस्कार और उपलब्धियां

  • भारत सरकार ने वर्ष 2003 में मैरी कॉम को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया |
  • वर्ष 2006 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया |
  • 29 जुलाई, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए मुक्केबाज़ विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ संयुक्त रूप से चुनीं गयीं |
  • वर्ष 2013 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया |
  • मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्त्रीत्व को नई परिभाषा देकर अपने शौर्य बल से नए प्रतिमान गढ़ने वाली विश्व प्रसिद्ध मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम को 17 जून 2018 को वीरांगना सम्मान से विभूषित किया गया |
  • उन्होंने 2019 के प्रेसिडेंसीयल कप इंडोनेशिया में 51 किग्रा भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता |
  • नई दिल्ली में आयोजित 10 वीं एआईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप 24 नवंबर, 2018 को उन्होंने 6 विश्व चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला बनकर इतिहास बनाया |
  • वर्ष 2007 पीपल ऑफ द ईयर – लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम |
  • वर्ष 2008 सीएनएन-आइबीएन और रिलायंस इंडस्ट्री का रियल हीरोज अवार्ड
  • वर्ष 2008 पेप्सी एमटीवी यूथ आइकॉन
  • वर्ष 2008 में एआईबीए द्वारा मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी संबोधन |
  • वर्ष 2009 महिला मुक्केबाजी के लिए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ की राजदूत |
  • वर्ष 2010 स्पोर्ट्स वुमेन ऑफ द ईयर सहारा स्पोर्ट्स अवॉर्ड |
  • वर्ष 2016 में नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी द्वारा आनरेरी डॉक्टरेट डिग्री (D.Litt) की उपाधि |
  • वर्ष 2016 एआईबीए की ब्रांड एम्बेसडर बनीं |
  • वर्ष 2019 में काजीरंगा यूनिवर्सिटी के द्वारा डीफिल (DPhill) की उपाधि |
  • वर्ष 2020 पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित हुईं |
  • वर्ष 2001 में एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2002 में एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स सीनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2002 में उन्होंने हंगरी में विश्व कप में 45 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता |
  • वर्ष 2003 में एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया |
  • वर्ष 2004 में ताईवान में आयोजित एशियन वुमन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2005 में एआईबीए वुमन्स व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2005 में एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2006 में एआईबीए व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2006 में डेनमार्क में महिला विश्व कप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2008 में एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में रजत पदक |
  • वर्ष 2008 में चीन में आयोजित व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2009 में एशियन इंडोर गेम्स में स्वर्ण पदक |
  • वर्ष 2010 में एआईबीए व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • वर्ष 2010 एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक
  • वर्ष 2011 एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • वर्ष 2012 एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • वर्ष 2012 लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक
  • वर्ष 2014 एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • वर्ष 2017 एशियन वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक
  • वर्ष 2018 में एआईबीए व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक |

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एम सी मैरी कॉम का सफर सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है, जिनसे निरंतर अभ्यास, लगन और आत्मविश्वास की महत्ता पता चलती है | व्यक्तिगत प्रलोभन से हटकर और अपने सुविधा क्षेत्र से अलग, एक बार दृढ़ निश्चय कर अगर कुछ भी करने की ठान ली जाए तो उस मनुष्य को कोई डिगा नहीं सकता |

Jagdisha मैरी कॉम को हमारा सहृदय प्रणाम | हम आपके स्वस्थ जीवन की कामना करते है |

पाठकों से अनुरोध है कि आप हमारे साथ अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य सांझा करें | और इस प्रेरणादायक कहानी को अपने बच्चों और उन सभी के साथ जरूर साझा करें जिन्हें जीवन में कोई लक्ष्य नहीं मिल रहा | आशा है कि वे बच्चे इस कहानी को पढ़कर एक नया लक्ष्य बनाएंगे और सफल होकर भारत देश का नाम रोशन भी करेंगे |

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