जानिये पहली भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री जिन्हें मिला है अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरूस्कार से सम्मान | Biography of Gitanjali Shree

जानिये पहली भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री जिन्हें मिला है अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरूस्कार से सम्मान | Biography of Gitanjali Shree

लेखिका गीतांजलि श्री अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी लेखिका बन गई है | ऐसा पहली बार हुआ है कि हिंदी में किसी को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया |

गीतांजलि श्री 2018 में प्रस्तुत अपने हिंदी भाषा के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय हैं | जिसका अंग्रेजी में डेज़ी रॉकवेल द्वारा टॉम्ब ऑफ सैंड (Tomb of Sand) के रूप में अनुवाद किया गया था | 

डेजी रॉकवेल एक पेंटर एवं लेखिका हैं और अमेरिका में रहती हैं | उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया है |

वर्ष 2022 में, टॉम्ब ऑफ सैंड को सबसे सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए चुना गया | यह सम्मान प्राप्त करने वाली यह पहली भारतीय पुस्तक बन गई | 

26 अप्रैल 2022, को गीतांजलि श्री और डेज़ी रॉकवेल को 50,000 पाउंड का साहित्यिक पुरस्कार मिला, जिसे उन्होंने समान रूप से विभाजित किया |

29 मई 2022 अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित 13 उपन्यासों की सूची में मार्च में गीतांजलि श्री के हिंदी उपन्यास ‘रेत समाधि’ की अनूदित रचना ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को शामिल किया गया | 

2022 के पुरस्कार के लिए चयनित पुस्तक की घोषणा 7 अप्रैल को लंदन बुक फेयर में की गई थी |

साहित्य जगत के बाहर हिंदी की इस लेखिका को जानने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी | लेकिन अब साहित्य जगत के प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद गीतांजलि श्री देश और दुनिया में चर्चा का केंद्र बन गई हैं |

उनकी इस उपलब्धि को 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि को मिली ख्याति से जोड़ा जा रहा है और कहा जा रहा है कि 110 साल बाद एक ओर गीतांजलि देश का गौरव बनी है |

यह थोड़ा अतिशयोक्ति लग सकता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी के लिए यह उत्सव का क्षण है | गीतांजलि श्री ने दुनिया में न केवल हिंदी का परचम फहराया है, बल्कि कई प्रतिमान गढ़े हैं |

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एक साक्षात्कार में गीतांजली श्री ने कहा, “यह हिंदी में लिखा गया उपन्यास है | उस भाषा का जिसमें अनेक लेखक हैं, जो अगर अनूदित होकर दुनिया के सामने आएं तो ओर पुरस्कारों के हकदार साबित होंगे |”

सम्मान मिलने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा कि उन्होंने जीवन में कभी कल्पना नहीं कि थी कि वो इस सम्मान को जीत पाएंगी | मैं हैरान हूँ, प्रसन्न हूं औऱ खुद को सम्मानित महसूस कर रही हूँ |

गीतांजलि श्री जिन्हें गीतांजलि पांडे के नाम से भी जाना जाता है, वे अपनी मां का पहला नाम श्री अपने अंतिम नाम के रूप में लेती हैं | 

गीतांजलि श्री भारत की एक हिंदी उपन्यासकार और लघु कथाकार हैं |

उन्होंने कई लघु कथाएं और पांच उपन्यासों की रचना की हैं | 

गीतांजलि श्री की कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी | उनकी रचनाओं में, ‘अनुगूंज’, ‘वैराग्य’, ‘मार्च’, ‘माँ’ और ‘साकूरा’ एव ‘यहाँ हाथी रहते थे’ कहानी संग्रह शामिल हैं | रेत समाधि से पहले उनके चार उपन्यास, ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ प्रकाशित हो चुके हैं |

उनके वर्ष 2000 के उपन्यास माई को क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड, 2001 के लिए चुना गया था | पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद नीता कुमार ने किया था |

अनूदित पुस्तक को 2017 में नियोगी बुक्स द्वारा पुनर्प्रकाशित किया गया था | 

आइये जानते है इस श्रेष्ठ लेखिका के बारे में…

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प्रारंभिक जीवन

गीतांजलि श्री का बनारस और गाजीपुर से गहरा नाता है | उनकी माता का पैतृक गांव जमुई, बनारस है तो पिता का गोडउर, गाजीपुर |

उनके पिता अनिरुद्ध पांडेय भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और उनका स्थानांतरण मैनपुरी, उत्तर प्रदेश में हुआ था | वहीं गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून 1957 को हुआ था |

उनके पिता अनिरुद्ध पांडेय एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ एक लेखक भी थे | उनकी माँ श्री कुमारी पांडेय गृहणी थी |

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शिक्षा

पिता आईएएस अधिकारी थे, इसलिए उत्तर प्रदेश के छोटे-बड़े शहरों में उनकी तैनाती रही और इन्हीं शहरों में गीतांजलि श्री पली-बढ़ी और प्रारंभिक शिक्षा ली |  

उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से इतिहास से बी.ए. में अपनी स्नातक शिक्षा पूरी की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास से एम.ए. किया |

उन्होंने डॉक्टरेट के लिए इतिहास को छोड़ हिंदी को चुना | उन्होंने पीएच.डी. मानक के लिए 1980 के दशक में एमएस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा के प्रसिद्ध हिंदी लेखक प्रेमचंद और महाराज सयाजी राव विवि और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध किया |

कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन के बाद उन्होंने सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च की | वहीं रहते हुए उन्होंने साहित्य सृजन की भी शुरूआत की |

गीतांजली श्री को साहित्य की साहचर्य परिवार से ही मिला | उनकी मां साहित्य अनुरागी रही हैं | 

एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “मां अब 95 वर्ष की हैं, शरीर से कमजोर हैं, लेकिन खूब पढ़ती हैं | कृष्णा सोबती का ‘जिंदगीनामा’ वह तीन बार पढ़ चुकी हैं | मेरी रचनाओं को पढ़ती हैं, प्रतिक्रिया देती हैं | मेरा उपन्यास ‘खाली जगह’ उन्हें पसंद नहीं आया, लेकिन ‘माई’ और ‘रेत समाधि’ उन्हें खूब भाया |”

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करियर

डॉक्टरेट की डिग्री लेने के बाद वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया और ज़ाकिर हुसैन, नई दिल्ली में व्याख्याता पद पर शामिल हुईं | लेकिन अपने लेखन और अध्यापक पद के बीच स्वयं को उलझा हुआ महसूस करती थीं |

उन्हें व्याख्याता के रूप अंग्रेजी में पढ़ाना होता और लेखिका के रूप में हिंदी में उपन्यास लिखती तो ताल-मेल बिठाने में मुश्किल होती थी |

उनके पति ने उनका समर्थन करते हुए उन्हें सलाह दी कि वह अपने लेखन प्रेम की ओर ही अग्रसर रहे और जॉब से त्याग पत्र दे दें | उन्होंने ऐसा ही किया और अपना पूर्ण जीवन हिंदी साहित्य के नाम कर दिया |

एक उपन्यासकार और लघु-कथा लेखक, गीतांजलि श्री ने 1987 में अपनी पहली कहानी ‘बेल पत्र’ लिखी थी | 

वे अपने पहले उपन्यास, माई के साथ सुर्खियों में आईं, जिसका अंग्रेजी अनुवाद 2001 में क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए चुना गया था | उपन्यास का अंग्रेजी में अनुवाद नीता कुमार ने किया था, जिन्होंने इसके लिए साहित्य अकादमी अनुवाद पुरस्कार अर्जित किया |

गीतांजलि श्री का पहला उपन्यास ‘माई’ महिलाओं के लिए काली पब्लिशर द्वारा प्रकाशित, उपन्यास पाठकों को एक उत्तर भारतीय मध्यवर्गीय परिवार में तीन पीढ़ियों की महिलाओं और उनके आसपास के पुरुषों के जीवन और चेतना की एक झलक देता है | 

माई का सर्बियाई, उर्दू, फ्रेंच, जर्मन और कोरियाई सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है |

उनका दूसरा उपन्यास ‘हमारा शहर उस बरस’ उस समय के आसपास केंद्रित है जब अयोध्या बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद सांप्रदायिक हिंसा से त्रस्त था |

साल 2006 में, उन्होंने ‘खाली जगह’ उपन्यास प्रकाशित किया, जो हिंसा, हानि और समकालीन दुनिया में पहचान की खोज जैसे विषयों पर केंद्रित है |

खाली जगह उपन्यास 2018 में प्रकाशित फ्रेंच अनुवाद का शीर्षक ‘यून प्लेस वीडे’ रखा गया और 2011 में प्रकाशित अंग्रेजी अनुवाद को ‘द एम्प्टी स्पेस’ कहा जाता है |

वर्ष 2018 में, उन्होंने ‘रेत समाधि’ उपन्यास लिखा, जो धर्मों, देशों और लिंगों के बीच सीमाओं के विनाशकारी प्रभाव के बारे में बात करता है | उपन्यास हास्य रूप से एक 80 वर्षीय भारतीय महिला की अपने पति की मृत्यु के बाद पाकिस्तान की यात्रा को प्रस्तुत करता है |

यह महिला पाकिस्तान जाती है और विभाजन के वक्त की अपनी पीड़ाओं का हल तलाशने की कोशिश करती है | वह इस बात का मूल्यांकन करती है कि एक मां, बेटी, महिला और नारीवादी होने के क्या मायने हैं |

गीतांजलि श्री ने बेहद मार्मिक और संवेदनशील भाषा में इस महिला की मन:स्थिति को तराशा है और डेजी रॉकवेल ने इसके अंग्रेजी अनुवाद में भी इसकी मूल आत्मा को बरकरार रखते हुए इसे सुंदर शब्दों में ढाला है |

डेज़ी रॉकवेल द्वारा अनुवादित टॉम्ब ऑफ सैंड उपन्यास के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली, जो उनके उपन्यास ‘रेत समाधि’ (2018) का अंग्रेजी अनुवाद है | 

उनके उपन्यासों और कहानियों का गुजराती, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच, साइबेरियन और कोरियाई सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है |

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बुकर सम्मान ने बढ़ाई प्रतिष्ठा

गीतांजलि श्री हिंदी की पहली लेखिका हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार मिला और उनकी इस उपलब्धि से न केवल हिंदी व हिंदी साहित्य के लिए नए अवसरों के द्वार खुलेंगे, साथ ही वैश्वक साहित्य भी और समृद्ध होगा | 

पुरस्कार ग्रहण करने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा, “मेरे इस उपन्यास के अलावा हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं में बहुत समृद्ध साहित्य मौजूद है | इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों के बारे में जानकर वैश्विक साहित्य और समृद्ध हो जाएगा | इस प्रकार के मेलजोल से जीवन के आयाम बढ़ेंगे |”

हिंदी साहित्यकार भी मानते हैं कि गीतांजलि श्री की उपलब्धि हिंदी को वैश्विक स्तर पर नया पड़ाव दिलाने में अहम भूमिका निभाएगी | साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता हिंदी उपन्यासकार अल्का सरावगी ने कहा, “गीतांजलि श्री की कृति के अनुवाद को बुकर पुरस्कार मिलने से हिंदी लेखन के लिए अवसर के नये द्वार खुल गये हैं |”

‘रेत समाधि’ की पहली समीक्षा लिखने का दावा करने वाले प्रख्यात हिंदी लेखक प्रयाग शुक्ल ने कहा कि हिंदी साहित्य वैश्विक स्तर पर अपना उचित स्थान पाने की ओर बढ़ रहा है | उन्होंने कहा, “आप देखेंगे कि हिंदी साहित्य का अनुवाद पहले की तुलना में 20 गुना तेजी से बढ़ेगा |”

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पुरस्कार और सम्मान

  • हिंदी अकादमी ने गीतांजली श्री को 2000-2001 के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित किया |  
  • उन्हें वर्ष 1994 में उनकी कहानी संग्रह अनुगूँज के लिए यूके कथा सम्मान से सम्मानित किया गया था |  
  • उन्हें इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान भी प्राप्त है | 
  • गीतांजली श्री जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वॉलेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं |
  • वर्ष 2022 के अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |

Jagdisha महान लेखिका को ढ़ेरों शुभकामनाएं | अपने हिंदी साहित्य जगत में नया किर्तिमान रच दिया |

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