किसी ओर अगर आप मेहनत व निरंतरता को अपनी आदत का एक हिस्सा बना लेते हे, तो निश्चित ही कामयाबी आपका माथा चूमेगी | आपके जीवन की उन्नति के लिए कदम तो आपको ही बढ़ाना पड़ेगा, क्योंकि सिर्फ ख्यालो में सफर तय कर लेने से आपका सफर समाप्त नही होता | उसके लिए बढ़ना तो आपको ही पड़ेगे, लेकिन उस में भी आप बहाने बाजी नही कर सकते आपको बीना रूके चलते रहना होगा यानी निरंतर प्रयास करते रहना होगा | आपकी निरंतरता ही तो आपके रास्तें को सुलभता से पार करवा पाएगी |
जयपुर घराने की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली अद्भुत प्रतिभा की धनी है | उन्होंने पाँच वर्ष की उम्र में अपने जीवन के पहले स्टेज शॉ पर प्रस्तुति की थी | और तब से अब तक वह हर रोज अपनी नृत्यकला को निखारती आ रही | वें आज भी अपने अभ्यास या अध्यापन में कुछ नया खोजती रहती है |
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प्रेरणा श्रीमाली न केवल जयपुर घराने के जटिल व्याकरण और बारीकियों में सिद्ध हैं बल्कि वे कथक में कविता व संगीत के नए प्रयोगों तथा कल्पनाओं के माध्यम से अपने गुरु से भी आगे निकल गई है |
वे नृत्य व अभिनय में समान रूप से माहिर हैं | उन्होंने प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक संस्कृत, हिन्दी, उर्दू के कवियों – कालिदास, अमरू, मीरा, कबीर, पदमाकर, ग़ालिब यहाँ तक कि फ्रांसीसी कवि ‘ईव बॉनफुआ’ की कृतियों पर नृत्य-प्रस्तुतियाँ तैयार की हैं और सफलता पूर्वक उन्हें मंच पर प्रस्तुत की हैं |
प्रेरणा जी कविताओं और गीतों को नए व विलक्षण ढंग से अपने सघन अभिनय द्वारा नृत्य में ढालती हैं | वह कथक को एक भाषा मानती हैं |
प्रेरणा जी मानती हैं कि वक़्त के साथ शैली में बदलाव ज़रूरी है | उनका विश्वास है कि कथक में प्रयोगों की असीम संभावनाएँ होती हैं |
अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त प्रेरणा जी, विश्व के सभी प्रमुख संगीत-नृत्य समारोहों, मसलन भारत का खजुराहो संगीत समारोह, फ्रांस का फेस्टिवल द आविन्यॉ में अपनी उपस्थिति दर्ज करती रही हैं |
उन्हें वर्ष 2009 के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैं |
प्रेरणा जी को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और राजीव गांधी फाउंडेशन का राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |
कथक राजस्थान और उत्तर भारत की नृत्य शैली है जो कि काफ़ी पुरानी नृत्य शैली है | कथक नृत्य शैली में घुंघरू का महत्वपूर्ण स्थान है | इसमें तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर आदि की प्रस्तुति में घुंघरू सबसे अहम होते हैं |
प्रेरणा जी को टेनिस बेहद पसंद है | स्टेफ़ी ग्राफ़ उनकी पसंदीदा खिलाड़ी हैं | साहित्य और संगीत में भी उनकी गहन रुचि है |
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प्रेरणा जी नृत्य के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत में भी निपुण हैं | उन्होंने पखावज का भी विधिवत प्रशिक्षण पुरुषोत्तामदास जी से लिया है | उस वक्त के सबसे बड़े गुरु माने जाते थे |
वर्तमान में प्रेरणा जी, श्रीराम भारतीय कला केन्द्र दिल्ली में कथक की अतिथि गुरु हैं |
जीवन यात्रा
प्रेरणा श्रीमाली का जन्म 1959 में राजस्थान के बांसवाड़ा, जयपुर में हुआ | उनका परिवार जयपुर में जौहरी बाज़ार में रहता था |
एक बार जयपुर घराने के प्रसिद्ध कथक गुरु कुंदनलाल गंगानी उनके दादा जी के पास कुंडली दिखाने आए थे | उनके दादा जी ज्योतिषी थे | वहाँ उन्होंने छोटी प्रेरणा जी को देख उनके दादा जी को उन्हें कथक सिखाने कि सलाह दी |
अब छोटी सी उम्र में नृत्य में प्रेरणा जी की दिलचस्पी देखते हुए उनकी माँ ने उन्हें कथक सीखने को कहा | बस फिर क्या कुंदनलाल गंगानी उनके गुरू बन गए | उन्होंने गण्डा बाँधा, पूजा हुई और फिर गुरुजी ने उन्हें सिखाना शुरू किया |
उस वक्त लोग अधिकतर ज़मीन पर ही बिस्तर लगा कर सोते थे | कई बार उनके गुरुजी अचानक रात में आ जाते और उनकी मम्मी बिस्तर हटातीं, जगह बनातीं फिर गुरुजी उन्हें नृत्य सिखाते | कभी-कभी सुबह-सुबह ही, मतलब छुट्टी का दिन और वे देर तक सो रही हैं, तब बच्चा मन प्रेरणा जी को इतना बुरा लगता था कि मन ही मन कहती – “क्या आ जाते हैं, कभी भी |”
पढ़ाई पूरी होने के बाद प्रेरणा जी को उनके गुरु ने दिल्ली आकर कथक केंद्र में प्रशिक्षण लेने को कहा |
लेकिन उनका परिवार बेटी को इतने बड़े शहर में अकेले भेजने को तैयार नहीं था | पुरजोर विरोधों के बाद भी प्रेरणा जी दिल्ली आईं, जहां से उनकी नृत्य यात्रा शुरू हुई और आज वह एक प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं |
यह तो तय है कि हर कला में आप गहराई में जाते रहिए, तभी आप ऊपर पहुँचते हैं |
कथक में पदसंचालन बहुत अधिक महत्वपूर्ण होता है | प्रेरणा जी ने ‘फ़्लैट फुट’ यानि पूरे पैर की तत्कार ही बचपन से सीखी थी | एड़ी लगाना तो उन्होंने बाद में जब वे 1978 में दिल्ली आई तब सीखना शुरू किया | एड़ी चलाना उन्हें थोड़ा मुश्किल लगा |
पूरे पैर की तत्कार से आपका पैर मजबूत हो जाता है और कथक में तो हर बोल पैर से निकालना ज़रूरी होता है |
प्रेरणा जी पदसंचालन यानी तत्कार को ही कथक की धड़कन मानती है |
उनके गुरुजी की आदत थी कि जब वे बंदिश सिखाते थे, तब कहते थे कि ये पूरी याद हो जानी चाहिए | उन्हें एक बंदिश को सीखना थोड़ा चुनौतीपूर्ण लगा था, वो थी ‘त्रिपल्ली’ जिसमें गत भी जुड़ी हुई थी | यानी वह गत से शुरू होती थी और ‘त्रिपल्ली’ में चली जाती थी | उस बीच में तिहाई भी आ रही थी, जो एक पूरा संयोजन बन गया था | उसकी तत्कार निकालने में उन्हें कष्ट हुआ था, क्योंकि वो धीमी थी | उन्होंने उसके बोलों को पैरों से पहले निकालना सीखा बाद में उनके गुरू जी उसका अंग सिखाया |
गुरूजी की अंतिम चुनौती पूरी की, जो उनकी उन्हें श्रद्धांजलि है |
अपने जीवन के अंतिम दिनों में उनके गुरुजी ने एक नक्कारे का छन्द तैयार किया था | और उन्होंने उसकी बन्दिश बनायी थी | जिसे वह अधूरा छोड़ गये, मतलब उसकी तिहाई नहीं बनी थी | उससे पहले वह प्रेरणा जी के घर आए थे जहाँ वे बंगाली मार्केट, दिल्ली में कमरा लेकर रहती थी | गुरुजी ने उन्हें अपने घर आने को कहा, और वहाँ पर, उन्होंने एक बन्दिश बनायी थी |
‘तड़ितदाम-तड़िदाम’ जिसमें ‘तड़ तड़ तड़’ ध्वनि आती थी नक्कारे की उसको उनके गुरूजी ने सिखाया नहीं था, सिर्फ उसका बोल दिया था | जिसे वे खोना बिल्कुल नहीं चाहती थी |
प्रेरणा जी और उनके गुरुजी के बेटे राजेन्द्रगंगानी दोनों ने दिमाग लगाया और उसे तैयार कर लिया,क्योंकि वह जिस स्तर की बनी हुई थी, उसी स्तर की उसकी तिहाई भी आनी चाहिए | फिर उन्होंने अपनी-अपनी तरह से उसका अंग निकाला |
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प्रेरणा जी मानती है कि अगर आप कथक नृत्यांगना या नर्तक हैं और आप इसका सम्पूर्ण शास्त्रीय ज्ञान रखते हैं तो जिस भी कविता को आप कथक के ढंग से रचते हैं, वह कथक का हिस्सा हो जाएगा | किसी भाषा पर पकड़ आपकी कितनी है, यह इससे साबित होता है |
प्रेरणा देश-विदेश के कई मंचों पर अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर चुकी हैं |
प्रेरणा जी एक बहुमुखी नृत्यांगना है, उन्होंने अपनी प्रस्तुति में एक व्यक्तिगत शैली विकसित की है |
उन्होंने दोसरो ना कोई – मीरा के छंद, अवतार, विस्तार, विवृति और आरती सहित कई प्रस्तुतियों को कोरियोग्राफ किया है | उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय नृत्य संगोष्ठियों और सम्मेलनों में भाग लिया है | उन्होंने यूके में भारत महोत्सव, जापान में एशियाई प्रदर्शन कला महोत्सव, फ्रांस में एविग्नन महोत्सव और स्विट्जरलैंड में नृत्य महोत्सव में कथक प्रस्तुत किया है |
उन्होंने अमेरिका में कार्नेगी हॉल, न्यूयॉर्क, जॉर्डन, सीरिया और मस्कट में कई प्रदर्शन प्रस्तुत किए हैं |
उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय और श्रीराम भारतीय कला केंद्र जैसे प्रसिद्ध संस्थानों में युवा नर्तकियों को प्रशिक्षण भी दिया है |
उन्होंने कथक केंद्र, दिल्ली के रिपर्टरी (प्रदर्शको की सूची) प्रमुख के रूप में भी कार्य किया है |
उनके नृत्य को बीबीसी द्वारा निर्मित फिल्म द फार पवेलियन में दिखाया गया है |
उन्होंने दूरदर्शन के लिए एक फिल्म पथराई आंखों के सपने का निर्देशन किया है |
प्रेरणा जी को कविता लिखने का भी बहुत शौक है | उनके द्वारा लिखी गई पहली किताब तत्कार कथक की अंतर यात्रा, जो कथक नृत्य पर आधारित है जल्द ही बाजार में आने वाली है |
पुरस्कार और सम्मान
- श्रृंगारमणि सुरसिंगार संसद, बॉम्बे (1981)
- कलाश्री श्री संगीत भारती, बीकानेर, (1986)
- युवा रत्न जयपुर जायसीज, जयपुर (1988)
- राजस्थान युवा रत्न राजस्थान युवाजन प्रवरती समाज, जयपुर (1989)
- श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार भारतीय कल्याण परिषद, नई दिल्ली (1989)
- प्रशस्ति ताम्रपत्र राजस्थान समरोह, जयपुर (1990)
- राजस्थान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार राजस्थान संगीत नाटक अकादमी (1993)
- आधारशिला पुरस्कार पत्रकारों, लेखकों और कलाकारों का समूह, दिल्ली (1996)
- राष्ट्रीय एकता पुरस्कार राजीव गांधी की 57वीं जयंती (2001)
- रज़ा पुरस्कार रज़ा फाउंडेशन, दिल्ली (2004)
- केशव स्मृति पुरस्कार कलाधर्मी, दिल्ली (2008)
- 10वां विमला देवी सम्मान विमला देवी फाउंडेशन, अयोध्या (2010)
अगर आप प्रयत्नशील है, तो आपकी कामयाबी की उड़ान को कोई भी नही रोक सकता | आपकी हर एक मंजिल की राह केवल और केवल आप ही निर्धारित कर सकते हैं | जब तक अपने उद्देश्य के प्रति सजग नही होगे तब तक परिस्थितियां अड़चन ही लगेगी |
शुरूआत करो छोड़दो, फिर उत्तेजना भरो और फिर से शुरू करो और दोबारा दम दोड़ दो और कुछ समय बाद फिर उत्तेजित हो जाओ | यह केवल और केवल मज़ाक होगा आपका खुद से क्योंकि बिना जीवन लक्ष्यों और उद्देश्यों में निरंतरता लाए सफलता संभव ही नही है |
Jagdisha का सुप्रसिद्ध और अद्भुत प्रतिभा की महारानी को दंडवत प्रणाम | हम आपके स्वस्थ जीवन और कथक नृत्य कला में नए प्रयोगों द्वारा आपकी बढ़ती ख्याति की कामना करते है |