मेहनत और लगन से जटिल से जटिल संघर्ष को भी पार किया जा सकता | जिसके साथ ही आप अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते है | लेकिन निरंतरता की आपके उद्देश्य पथ को पार करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है | यदि निरंतरता नही है, तो शायद आप स्वयं ही अपनी मेहनत पर पानी फेर देंगे |
कवियित्री, उपन्यासकार, कहानीकार, संस्मरणकार, अलोचक, विमर्शकार और अनुवादक अनामिका जी जानी-मानी हिंदी की लेखिका है |
कविताएं लिखने का रूझान उनमें बचपन से ही था | साहित्य में उनकी पकड़ के कारण उन्हें स्कूल मैगजीन में छात्रा संपादक की उपाधि दी गई थी | समय के साथ उन्होंने कविताओं के साथ-साथ विभिन्न परिवेश पर कहानियां भी बुनना शुरू कर दिया |
महिलाओं के मुद्दे हमेशा से अनामिका जी को अधिक आकर्षित करते थे, जो उनके दिल के खासा करीब रहे | उन्होंने अपनी कविताओं में महिलाओं को एक अलग पहचान दी है | वे अपने आस-पास रहने वाली महिलाओं के दर्द और भाव को सुनती और समझती और फिर उन्हें शब्दों में पिरोह डालती | उन्होंने वात्सल्य पर भी अनेक कविताएं लिखी है |
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अनामिका जी ने अपनी कविताओं में घर की रसोई से लेकर दूसरों के खेतों में काम करने वाली महिलाओं तक के अनकहे अहसास लिखे हैं |
इनकी किताबों का रूसी, स्पेनिस, अंग्रेजी, जापानी और कोरियाई भाषाओं में अनुवाद किया गया है |
अब तक अनामिका जी की छ: कविता संग्रह, सात उपन्यास और तीन नारीवाद अलोचना की पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं |
उन्हें हिंदी कविता में अपने विशिष्ट योगदान के कारण राजभाषा परिषद् पुरस्कार, साहित्य सम्मान, गिरजा कुमार माथुर सम्मान, परंपरा सम्मान, भारतभूषण अग्रवाल एवं केदार सम्मान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है |
2021 में उन्हें उनके टोकरी में दिगन्त नामक काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुुुरस्कार से सम्मानित किया गया |
बिहार से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर तथा अरुण कमल के बाद अनामिका जी तीसरी साहित्यकार हैं, जिन्हें हिंदी साहित्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |
साहित्य अकादमी के इतिहास में पहली बार किसी महिला कवि को उनकी काव्य कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया |
इनसे पहले पांच लेखिकाओं को यह सम्मान मिल चुका है, लेकिन वह सब औपन्यासिक कृतियां थीं |
अनामिका जी से पहले 1980 में कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए, 2001 में अलका सरावगी को उनके उपन्यास ‘कलिकथा वाया बाईपास’ के लिए, 2013 में मृदुला गर्ग को और फिर 2016 और 2018 में नासिरा शर्मा और चित्रा मुद्गल को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था |
पुरस्कार मिलने के बाद आउटलुक मैगज़ीन को दिए गए साक्षात्कार में अनामिका जी ने कहा कि टोकरी में दिगंतः थेरीगाथा उन स्त्रियों की अभिव्यक्ति है, जो हर तबके, ग्रामीण, पिछड़ी जातियों, आदिवासी, समाज के अभावग्रस्त क्षेत्रों से संबंध रखती हैं | उनके संवाद में समूचा संसार, जिसमें उसकी अलग-अलग परतें खुलती हैं |
यह सम्मान उस स्त्री संसार को है, जहां स्त्रियां अपने अधिकार के लिए झगड़ती हैं, लेकिन कभी हिंसक नहीं होतीं क्योंकि उनका जिनसे सामना होता है, उनसे वे प्रेम भी करती हैं | उनका यह संघर्ष एक सम्यक दृष्टिसंपन्न समानता पर आधारित समाज के लिए होता है | नारीवाद विषय हमेशा सौम्यता, उदारता का पक्षपाती रहा है |
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जन्म और प्रारंभिक जीवन
अनामिका जी का जन्म 17 अगस्त 1961, मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ | उनके पिता डॉ श्यामनंदन किशोर, राष्ट्रकवि दिनकर तथा गोपाल सिंह नेपाली के दौर के जाने माने हिंदी गीतकार व कवि थे | उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था |
उनकी माँ आशा किशोर हिंदी की प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थी | अनामिका जी को पिता से कविता का गुण मिला तो मां से अध्यापन का | कविताएं लिखने के गुर उन्होंने अपने पिता से ही सीखे, वही उनके पहले गुरु थे |
उनके भाई महाराष्ट्र कैडर में IAS अधिकारी हैं |
बचपन से ही उन्हें किताबे पढ़ने का बहुत शौक था | वह अधिकतर अपने पिता की लाइब्रेरी में रखी हुई किताबें पढ़ती थीं | वह उन किताबों को पढ़ते हुए अपनी एक काल्पनिक दुनिया में मंग्न रहती थी | बहुत कम उम्र में ही अनामिका जी ने कई प्रसिद्ध कवयित्रियों को पढ़ लिया था |
उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बिहार के एंग्लो इंडियन स्कूल से प्राप्त की | बाद में अपनी पढ़ाई के लिए उन्होंने कुछ समय लखनऊ में बिताया और उसके बाद वह दिल्ली चली गईं |
दिल्ली यूनिवर्सिटी से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया | इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही डी.लेट तथा पीएचडी की डिग्री प्राप्त की | पढ़ाई पूरी करने के बाद अनामिका जी दिल्ली की ही हो कर रह गईं |
इन दिनों वह दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में अंग्रेजी की प्राध्यापक है |
साहित्य जीवन
अनामिका जी आधुनिक समय में हिन्दी भाषा की प्रमुख कवियित्री, कहानीकार, उपन्यासकार और आलोचक हैं | अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका होने के बाद भी उन्होंने हिन्दी कविता कोश को समृद्ध करने का भरपूर यत्न किया और जिसके लिए उन्होंने तनिक मात्र भी कसर बाकी नहीं छोड़ी है |
प्रख्यात आलोचक डॉ॰ मैनेजर पांडेय के अनुसार “भारतीय समाज एवं जनजीवन में जो घटित हो रहा है और घटित होने की प्रक्रिया में जो कुछ गुम हो रहा है, अनामिका जी की कविता में उसकी प्रभावी पहचान और अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।”
वहीं दिविक रमेश के कथनानुसार “अनामिका जी की बिंबधर्मिता पर पकड़ तो अच्छी है ही, दृश्य बंधों को सजीव करने की उनकी भाषा भी बेहद सशक्त है।”
उनकी रचनाएं
कविता संग्रह : गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, अनुष्टुप, समय के शहर में, खुरदुरी हथेलियाँ, दूब धान, टोकरी में दिगंतः थेरीगाथा |
आलोचना : पोस्ट-एलियट पोएट्री, स्त्रीत्व का मानचित्र, तिरियाचरित्रम, उत्तरकाण्ड, मन मांजने की जरुरत, पानी जो पत्थर पीता है |
शहरगाथा : एक ठो शहर, एक गो लड़की |
कहानी संग्रह : प्रतिनायक |
उपन्यास : अवांतरकथा, पर कौन सुनेगा, दस द्वारे का पिंजरा, तिनका तिनके पास |
अनुवाद : नागमंडल (गिरीश कर्नाड), रिल्के की कवितायें, एफ्रो-इंग्लिश पोएम्स, अटलांट के आर-पार (समकालीन अंग्रेजी कविता), कहती हैं औरतें ( विश्व साहित्य की स्त्रीवादी कविताएँ ) |
महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से कम नही है | वह हर उस क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही ही जहा पुरूषों के वर्चस्व का इतिहास बहुत लंबा है | साहित्य जगत में भी महिलाएं अपना अनोखा स्थान बना रही है |
Jagdisha का महान कवियित्री, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक को सहृदय प्रणाम | हम आपके स्वस्थ जीवन और अनेक प्रसिद्धिओं की कामना करते है |