मानव कंप्यूटर कही जाने वाली शकुंतला देवी की जीवनी | Biography of Shakuntala Devi

मानव कंप्यूटर कही जाने वाली शकुंतला देवी की जीवनी | Biography of Shakuntala Devi

शकुंतला देवी एक गणितज्ञ (Mathematician),  ज्योतिषशास्त्रज्ञ (Astronomer), सामाजिक कार्यकर्ता (Social worker) व लेखिका (Writer) थी | 

वह बचपन से ही अद्भूत प्रतिभा की धनी और मानव कैलकुलेटर थी | उन्होंने अपने समय के सबसे तेज माने जाने वाले कंप्यूटरों को भी अपनी तीव्र कैलकुलेशन से मात दी थी |

शकुंतला देवी पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन क्षण भर में बताने की क्षमता रखती थीं |

जब दुनिया में कंप्यूटर के बारे में कोई ज्यादा कुछ नहीं जानता था और ना ही ऐसे कैलकुलेटर आए थे जो बड़ी से बड़ी संख्या का गणना कर सके | उस समय शकुंतला देवी ने गणित की अद्भुत लड़की के रूप में हलचल मचा दी थी |

उन्होंने समलैंगिकता पर भी लिखी थी किताब | उनके पति समलैंगिक थे और उनकी किताब उनके निजी अनुभवों के शोध का परिणाम था |

समलैंगिक व्यक्तियों की चर्चा तो दूर इस शब्द को मुख से निकालना ही जिस दौर में अपराध या अभिशाप की श्रेणी में आता था, उस दौरान शकुंतला देवी ने इस समुदाय के प्रति समाज को मानवीय नज़रिया दिया |

अलग होने में कोई अनैतिकता नहीं है | दूसरों को अलग होने की इजाज़त न देना अनैतिकता है | अगर किसी के यौन संबंध समाज के कायदों के मुताबिक नहीं हैं, तो वह अनैतिक नहीं है… बल्कि अनैतिक वो हैं, जो उसे अलग होने के कारण सज़ा देते हैं |

— शकुंतला देवी, द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल्स

उनके द्वारा लिखी गई मुख्य किताबें ‘फिगरिंग: द जॉय ऑफ नंबर्स’, ‘एस्ट्रोलॉजी फॉर यू’, ‘परफेक्ट मर्डर’ और ‘द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल्स’ उनकी बुद्धिमता की साक्षात्कार हैं | उनके द्वारा लिखी किताबों में कुकबुक और नोवेल्स भी शामिल है | 

1982 में  उनका नाम गिनीज बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में शामिल किया गया था |

उनके 84वें जन्मदिवस पर 4 नवंबर 2013 को गूगल ने उनके सम्मान में गूगल डूडल समर्पित किया था |

एक गणित विश्वविद्यालय और शोध एवं विकास केंद्र खोलना आपका सबसे बड़ा सपना था | जिसमें परिवर्तनात्मक तकनीकी के माध्यम से जन-जन को पेचीदा गणित के सवालों के हल करने के शोर्टकट्स और प्रभावशाली तरीकों में प्रवीण बनाया जा सके | 

यह भी पढ़ें- भारतीय संस्कृति को अपनाने वाली स्विस मूल की वह महिला जिन्होंने डिज़ाइन किया परमवीर चक्र

टाइम्स आफ इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था : “मैं अपनी क्षमता तो लोगों को अंतरित नहीं कर सकती लेकिन एक संख्यात्मक रुझान तेज़ी से विकसित कर लेने में मैं जनसामान्य की मदद ज़रूर कर सकती हूँ | बड़ी संख्या है ऐसे लोगों की जिनकी तर्क शक्ति का दोहन नहीं किया जा सका है | ” 

शकुंतला देवी ने एक बहुत बड़े मिथक को तोड़ दिया था कि लड़कियों का हाथ गणित में जरा तंग ही होता है |

जन्म और प्रारंभिक जीवन

पल भर में गणनाएं कर लेने वाली शकुंतला देवी का जन्म 4 नवंबर 1929 को बैंगलौर (कर्नाटक) में एक गरीब परिवार में हुआ था | वह एक रूढ़िवादी कन्नड़ ब्राह्मण परिवार से आती हैं |

परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह औपचारिक शिक्षा भी नहीं ले पाई थीं |

युवा अवस्था में इनके पिता सी. वी. सुंदरराज राव ने मंदिर का पुजारी बनने की वजाए एक मदारी जैसे खेल दिखाने वाली तनी हुई रस्सी पर चलकर लोगों का मनोरंजन करना पसंद करते थे |

बाद में उनके पिता सर्कस के एक कलाकार बन गए और वहाँ अपना करतब दिखाते थे | शकुंतला देवी जब केवल 3 वर्ष की थीं तब ताश खेलते हुए उन्होंने कई बार अपने पिता को हराया | उनके पिता भी अचंभित थे की कैसे कोई इतनी कम उम्र में ताश के क्रम को याद रखकर आगे की चाल समझ सकता है |

पिता को जब अपनी बेटी की मानसिक प्रतिभा की इस क्षमता के बारे में पता चला तो उन्होंने सर्कस छोड़ शकुंतला देवी पर सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित करना शुरु कर दिए और उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया | इनकी क्षमता को सबसे पहले उन्होंने स्थानीय स्तर पर प्रदर्शित किया |

अपनी प्रतिभा को अपने पिता के माध्यम से रोड शो करने वाली शकुंतला देवी को अभी तक कोई ख्याति नहीं मिली थी |

यह भी पढ़ें- भारत की सबसे युवा मानव कैलकुलेटर जिसने 11 साल की उम्र में ही तोड दिए थे रिकॉर्ड

कैसे हुई मीडिया में चर्चित?

6 साल की उम्र में शकुंतला देवी ने मैसूर विश्वविद्यालय में अपनी अंकगणितीय क्षमताओं का प्रदर्शन किया |

बाद में 2 साल बाद उन्होंने अन्नामलाई विश्वविद्यालय में प्रदर्शन किया था | फिर वे प्रदर्शन करने के लिए ओस्मानिया विश्वविद्यालय और हैदराबाद और विशाखापट्टनम गयी | शकुंतला देवी बचपन में ही वहावाही बटोर रही थीं |

उन्होंने कई शहरों में प्रदर्शन किया | वह हमेशा 10 से 30 सेकंड में जवाब दे देती थी |

1944 में, वह लंदन, यूनाइटेड किंगडम चली गईं |

अब उनके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया | उन्हें न केवल राष्ट्रीय मीडिया बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी पहचान मिली |

बीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम के दौरान उनसे अंकगणित का एक जटिल सवाल पूछा गया और तुरंत सही जवाब देकर शकुंतला देवी उस समय पहली बार खबरों की सुर्खियों में आईं |

यह घटना ज्यादा इसलिए भी प्रचलित हुई क्योंकि उन्होंने जो जवाब दिया था वह सही था जबकि रेडियो प्रस्तोता का जवाब गलत निकला |

क्यों कहलाईं मानव कंप्यूटर?

शकुंतला देवी की इस अद्भुत क्षमता को हर कोई समय-समय पर जांचने के इच्छुक रहता | 

उन्होंने अपनी अंकगणितीय प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए दुनिया भर के कई देशों की यात्रा की |

शकुंतला देवी द्वारा प्रस्तुत समस्याओं के उदाहरणों में 61,629,875 के घनमूल और 170,859,375 के सातवें मूल की गणना शामिल है |

1950 तक, शकुंतला देवी यूरोप का दौरा कर रही थीं | वहां, 5 अक्टूबर, 1950 को, फेमस ब्रॉडकास्ट जौर्नालिस्ट लेस्ली मिशेल ने उनके साथ बीबीसी पर एक विशेष कार्यक्रम को होस्ट किया, जहाँ उन्होंने गणितीय और कैलेंड्रिक समस्याओं को हल किया | जब उनका और कंप्यूटर का एक गणितीय समस्या का जवाब अलग आया तो पाया गया की शकुंतला देवी का जवाब सही था | 

फिर 1977 में शकुंतला देवी को अमेरिका जाने का मौका मिला | यहां डलास की एक युनिवर्सिटी में उनका मुकाबला आधुनिक तकनीकों से लैस एक कंप्यूटर ‘यूनीवैक’ के साथ था |

 इस प्रतियोगिता में शकुंतला को मानसिक गणना से 201 अंकों की एक संख्या का 23वां वर्ग मूल निकालना था | यह सवाल हल करने में उन्हें 50 सेकंड लगे, सबको हैरान करते हुए शकुंतला देवी ने डिजिट बाय डिजिट उत्तर 546,372,891 का जवाब दिया |

उनका उत्तर UNIVAC 1101 कंप्यूटर में देखने के लिये US ब्यूरो ऑफ़ स्टैण्डर्ड को विशेष प्रोग्राम तैयार करना पड़ा था |

‘यूनीवैक’ नाम के कंप्यूटर ने इस जवाब के लिए 62 सेकंड का समय लिया | यानि कंप्यूटर से भी 12 सेकंड पहले ही उन्होंने सही जवाब दे दिया था | इस घटना के तुरंत बाद ही दुनिया भर में शकुंतला देवी का नाम भारतीय मानव कंप्यूटर के रूप में प्रसिद्धि की ऊँचाईयों तक पहुँच गया |

शकुंतला देवी ने अपनी 1977 की किताब फिगरिंग: द जॉय ऑफ नंबर्स में मानसिक गणना करने के लिए प्रयोग की जाने वाली कई विधियों के बारे में बताया |

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में है नाम

शकुंतला देवी की प्रतिभा को 1982 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी स्थान प्राप्त है | उन्हें यह जगह इसलिए मिली क्यूंकि उन्होंने बिना किसी कंप्यूटर की मदद के केवल 28 सेकंड में दो 13 अंकों की संख्या के गुणनफल का उत्तर बता दिया था |

18 जून 1980 को, उन्होंने दो 13-अंकीय संख्याओं  7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779

के गुणनफल को प्रदर्शित किया |

इन नंबरों को इंपीरियल कॉलेज लंदन में कंप्यूटिंग विभाग द्वारा एकाएक चुना गया था | उन्होंने केवल 28 सेकंड में ही अपने सवाल का सही उत्तर 18,947,668,177,995,426,462,773,730 दे दिया |

यह भी पढ़ें- भारत की पहली महिला पायलट जिन्होंने 21 साल की उम्र में 1000 घंटे तक उड़ाया प्लेन

व्यक्तिगत जीवन

1950 के एक इंटरव्यू में, शकुंतला देवी ने कहा था कि “मैं किसी भी आदमी को यह कहने का अवसर नहीं देना चाहती कि अगर मैंने नाम कमाया तो उसकी मदद की वजह से ही ऐसा हुआ |” 

जब उन्होंने शादी की, तो उन्होंने अपने पति के उपनाम को अपनाने से साफ मना कर दिया | उन्होंने इसकी वजय बताई कि “मैं चाहती हूं कि राशन कार्ड मेरे ही नाम से बनाया जाए |“

शकुंतला देवी 1960 के दशक के मध्य में भारत लौट आईं और उन्होंने उसी वर्ष कोलकाता के आईएएस अधिकारी, परितोष बनर्जी से शादी की | उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम अनुपमा बनर्जी रखा गया |

वैवाहिक सम्बन्ध बहुत दिनों तक नहीं चल सका, उनके पति की होमोसेक्सुअलिटी यानी समलैंगिकता का खुलासा होने पर जल्द ही उनकी शादी खत्म हो गई | परिणामस्वरूप 1979 में उनका तलाक हो गया |

उस दौर के अनुसार यह सच जानना किसी के भी गुस्से का कारण बन सकता है, लेकिन शकुंतला देवी के लिए, यह किसी इंसानों के बारे में और अच्छे से जानने का मौका बना | और इस बार, वह अपनी गणना के लिए नहीं, अपितु अपनी सहानुभूति की वजह से चर्चा में आईं | वह पहली समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता (Gay Rights Activist) थीं, और उनके द्वारा लिखी पुस्तक ‘द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल्स’ भारत में समलैंगिक को भी समाज में स्थान देनी की मांग करने वाली पहली पुस्तक है |

1980 में, उन्होंने मुंबई दक्षिण और आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना में ) में मेडक के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा |  मेदक में वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़ी हुईं, यह कहते हुए कि वह “मेदक के लोगों को श्रीमती गांधी द्वारा मूर्ख बनाए जाने से बचाना चाहती थी |”  वह 6,514 मतों (1.47% मतों) के साथ नौवें स्थान पर रहीं |

शकुंतला देवी अपनी बेटी के साथ 1980 के दशक की शुरुआत में बैंगलोर लौट आईं | यहां वे सेलिब्रिटीज और राजनीतिज्ञों को ज्योतिष का परामर्श देने लगीं |

उन्होंने अपने बाद के वर्षों में कई किताबें लिखीं, जिनमें उपन्यास के साथ-साथ गणित, पहेली और ज्योतिष के बारे में ग्रंथ शामिल हैं |

उनकी बेटी अनुपमा बनर्जी की शादी अजय अभय कुमार से हुई है, उनकी दो बेटियाँ हैं, और वे लंदन में रहती हैं |

मृत्यु

शकुंतला देवी लंबी बीमारी के बाद हृदय गति रुक जाने और गुर्दे की समस्या के कारण 21 अप्रैल, 2013 को बंगलौर में 83 वर्ष की उम्र में मृत्यु की गोद में हमेशा के लिए सो गईं |

पुरस्कार एवं सम्मान

शकुंतला देवी को फिलिपिंस विश्वविद्यालय ने वर्ष 1969 में ‘वर्ष की विशेष महिला’ की उपाधि और गोल्ड मेडल प्रदान किया |

वर्ष 1988 में इन्हें वाशिंगटन डी.सी. में ‘रामानुजन मैथमेटिकल जीनियस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया |

इनकी प्रतिभा को देखते हुए इनका नाम वर्ष 1982 में ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया |

वर्ष 2013 में उन्हें मुम्बई में ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया |

इनके 84वें जन्मदिन पर 4 नवम्बर, 2013 को गूगल ने उनके सम्मान में ‘गूगल डूडल’ समर्पित किया |

मई 2019 में शकुंतला देवी नामक उनके जीवन पर एक फिल्म की घोषणा की गई थी | फिल्म में विद्या बालन मुख्य भूमिका में हैं और सहायक भूमिकाओं में सान्या मल्होत्रा, अमित साध और जिशु सेनगुप्ता हैं | सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित, फिल्म 31 जुलाई 2020 को अमेज़न प्राइम वीडियो पर दुनिया भर में प्रकाशित की गई |

कैसी लगी आपको शकुंतला देवी की जीवनी? हमे कमेंट बॉक्स में बताना न भूले |

दिमाग का आंकलन लिंग के आधार पर करना न केवल गलत है बल्कि अत्याचार भी हैं | भला आपका महिला होना या पुरूष होना आपकी बुद्धिमता की क्षमता कैसे निर्धारित कर सकता है | 

हर महिला को आपनी प्रतिभा और सामर्थ पहचान अपने जीवन को सही दिशा देने की आवश्यकता है | किसी के भी लिए आर्थिक स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण होती है | इसलिए हर महिला को अपनी स्वावलंबता के लिए आवश्य ही संघर्ष करना चाहिए और स्वयं को मजबूत करना चाहिए |

Jagdisha का अद्भुत प्रतिभा और मानसिक गणनायक को सहृदय नमन |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ