कोरोना की चपेट से जिंदगी की जंग जीतकर वापस आयी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की ऊषा गुप्ता अचार और चटनी का बिजनेस कर उससे होने वाले लाभ को गरीबों की मदद में खर्च करती हैं | कोरोना से वह खुद तो जीत गई पर पति को खो दिया लेकिन अपनी हिम्मत न खोई |
अब वह बाकी की बची हुई जिंदगी गरीब और जरूरतमंदों की सेवा में ही लगाने की इच्छा रखती हैं |
कठिनाइयां कमजोरी नहीं अपितु यह छुपे हुए सामर्थ्य और शक्तियों को बाहर निकलने में मदद करती हैं | कठिनाइयों को यह जानने दो की आप उससे भी ज्यादा कठिन हो |
संघर्ष ही परिवर्तन की सीढ़ी है, तो इससे डर कर ठहरिए तो बिल्कुल नहीं | अगर मिट्टी के घड़े को पकाया न जाए या वह पूर्ण रूप से तपा न हो तो क्या उसमें पानी ठहर सकता है? फिर सफलता आसानी से कैसे मिल सकती है | आसानी से मिल भी गई तो फिर परीक्षा होती है आपके सामर्थ्य की |
सपनों और इरादो की कोई उम्र होती भी है क्या भला? उम्र का नम्बर तो हर साल बढ़ता ही है | अब उम्र के किस पड़ाव पर आप चुनौतियों के लिये तैयार हैं यह तो आपको ही तय करना है |
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ऊषा गुप्ता ने 87 साल की उम्र में शायद अपने जीवन के सबसे कठीन दौर को जिया और जब उभरी तो मिशाल कायम कर दी |
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 जुलाई के महीने में ऊषा गुप्ता ने घर पर ही अचार और चटनी बनाने का काम शुरू किया | जिन्हें वे सोशल मीडिया के माध्यम से देशभर के लोगों को बेच रही हैं |
ऊषा गुप्ता के पति यूपी सरकार के लिए सरकारी इंजीनियर के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके थे | वर्तमान में उनकी तीन बेटियां हैं, जो डॉक्टर हैं और दिल्ली में रहती हैं |
ऊषा गुप्ता और उनके पति को जब हो गया कोरोना
2021 में कोविड की दूसरी लहर जब आई तो ऊषा गुप्ता और उनके पति इस महामारी की चपेट में आ गये | दोनों बुजुर्ग दंपति करीब एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे |
कोरोना से 27 दिनों की लड़ाई के बाद उनके पति हमेशा के लिए उन्हें छोड़ कर चले गए | 60 दशकों का साथ पल भर में ही मानो छूट गया |
अजब है कुदरत का खेल ऊषा गुप्ता कोरोना से जंग तो जीत गई पर अपने जीवनसाथी को हार गईं |
एक चैनल से बात करते हुए वह बताती हैं कि, “पति की मौत के बाद जिंदगी उदास सी हो गई थी | अब अपने लिए करने को कुछ बचा नहीं था | जब अस्पताल में एडमिट थी तो लोगों को कोविड से जूझते देखा था | कोई ऑक्सीजन के लिए तड़प रहा था तो कोई इलाज के लिए | कई लोगों के जीवन को कोरोना ने तबाह कर दिया था | मुझे लगा कि अब आगे का जीवन ऐसे जरूरतमंदों की मदद में करने में बिताना चाहिए | इसी सोच के साथ मैं आगे बढ़ी और फिर कभी हिम्मत नहीं हारी |”
ऊषा गुप्ता ने अस्पताल में देखा था कि कैसे महामारी उन परिवारों को प्रभावित कर रही थी जो आर्थिक रूप से मजबूत नहीं थे | अस्पताल में उन्होंने जो पीड़ा देखी, उसने उनके जीवन को एक नया अर्थ दिया | बस फिर क्या मिल गई दिशा और उन्होंने स्वादिष्ट घर का बना अचार बनाकर जरूरतमंदों की मदद करने का फैसला किया |
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कैसे आया अचार बनाने का ख्याल
ऊषा गुप्ता ने कोरोना के कारण लोगों की बेबसी की कहानियां तो सुनी ही थीं, वह लाचार और ज़रूरतमंदों की मदद करना चाहती थीं | उन्होंने अपने बच्चों को अपनी बचत के रूपयों को दान देने के लिए कहा लेकिन वह रूपये लेने से उनके बच्चों ने मना कर दिया |
वह उनका परिवार ही था, जिन्होंने उनकी इच्छा को दबने न दिया बल्कि जरूरतमंदो की मदद के लिए धन जुटाने के लिए उन्हें अचार बनाने के लिए प्रोत्साहित किया |
ऊषा की नातिन डॉ. राधिका बत्रा गरीबों की मदद के लिए एक एनजीओ चलाती हैं | उन्होंने उनसे बात की और जब अपनी इच्छा बताई तब उनकी नातिन ने ही आइडिया दिया कि वे अचार बहुत अच्छा बनाती है तो क्यों न इसकी ही मार्केटिंग की जाए |
इस विचार ने ऊषा गुप्ता को भी प्रभावित किया और नानी जी जुट गई अचार और चटनी बनाने मे |
हालांकि, इस उम्र में इतनी मेहनत वाला काम करना आसान तो नहीं था | लेकिन, अपनों के सहयोग और बेटियों के प्रोत्साहन से वे पूरे जोश और हौंसले के साथ अपने काम में रम गईं |
उन्होंने अपने बिजनेस का नाम पिकल विद लव (Pickle With Love) रखा | मार्केटिंग और अचार बनाने के लिए हर आवश्यक सामान को लाने और बनने के बाद पैकेजिंग का काम उनकी नातिन और बेटियाँ संभालती हैं |
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महीने भर में ही 200 से ज्यादा आर्डर मिले
अचार बनाना शुरू करने के एक महीने के अंदर ही उन्होंने 200 से ज्यादा अचार की बोतलें बेच दी थीं | यह उनके बनाएं अचार का स्वाद ही था जो उनके आर्डर बढ़ते गए और कोई ग्राहक टूटा नहीं |
शुरूआत में रिश्तेदारों और दोस्तों को अपना ग्राहक बनाया और धीरे-धीरे सोशल मिडीया (इंस्टाग्राम) पर भी आर्डर मिलने लगे |
और अपनी इच्छा के अनुसार इससे होने वाली कमाई को उन्होंने कोविड मरीजों व अन्य जरूरतमंदों के लिए दान कर दिया |
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65 हजार गरीबों को अब तक कराया भोजन
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ऊषा गुप्ता ने अचार की बिक्री से होने वाली बचत से अब तक लगभग 65 हजार गरीबों को भोजन कराया है |
ऊषा गुप्ता के अनुसार, इसके अलावा अभी भी वे देश के कई राज्यों में ऐसे लोगों की पहचान करने के प्रयत्नशील हैं, जिन्हें मदद की जरूरत है, जो भूख से लड़ रहे हैं | इस काम में कुछ बाहरी संस्थाएं भी उनकी मदद करती हैं |
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दर्द की दवा ले कर किया काम
87-88 वर्ष की आयु बहुत होती है | आज कल के खान पान और प्रदूषित पर्यावरण में बहुत से इस उम्र तक तो पहुँच भी नही पाते | ऊपर से शरीर से मेहनत कोई करना नही चाहता | कूलर, पंखे व एसी की हवा में बैठे-बैठे ही सब काम करने है | कहीं न कहीं मशीनीकरण ने मानव को आलसी बना दिया है | क्योंकि सच तो यही है कि पौष्टिक आहार और चलायमान शरीर ही लंबा चलता है वरना एक्सपायरी डेट तो हर किसी की है |
लेकिन दाद देनी चाहिए इन नानी की हिम्मत की, जिन्होंने अब अपने जीवन के अंतिम समय तक ज़रूरतमंदों की सहायता करने का प्रण ले लिया है |
कई बार काम करते-करते ऊषा गुप्ता काफी थक जाती हैं | शरीर में दर्द होने के कारण हिम्मत जवाब देने भी लगे तब भी वे काम में लगी रहती है |
एक रिपोर्ट की मानें तो कई बार उन्होंने दर्द की दवा लेकर भी काम किया है | ऐसा इसलिए क्योंकि उनका मानना है कि यह सब एक बिजनेस मात्र नहीं है | इससे कई लोगों की उम्मीदें जुडी़ हैं | और उनकी कोशिशों से अगर भला हो रहा है तो इससे बेहतर क्या हो सकता है |
यही कारण है कि जब तक शरीर में जान है तब तक ये नानी तो जरूरतमंद लोगों की मदद करती रहेंगी |
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महिला सशक्तीकरण की भी चुनी राह
ऊषा गुप्ता पैसे का मूल्य समझती हैं उनके लिए छोटी से छोटी राशि का भी महत्व है | कहते हैं न बूंद बूंद से घड़ा भर जाता है उसी प्रकार छोटी-छोटी सफलताएँ बड़ी बनती जाती हैं |
ऊषा गुप्ता इस बात से खुश हैं कि वे छोटे स्तर पर भी कुछ अलग कर पाईं | उनके द्वारा तैयार किये गए 200 ग्राम अचार या चटनी की एक बोतल की कीमत 150 रुपये है |
अब ऊषा गुप्ता वंचित महिलाओं को सशक्त बनाना चाहती हैं और उन्हें खुद के छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहती हैं | एक मिडिया रिपोर्ट के अनुसार वे इच्छुक व जरूरतमंद महिलाओं को प्रशिक्षित करने और उन्हें आजीविका कमाने के लिए खाना पकाने की कला सिखाने के लिए तैयार हैं |
ऊषा गुप्ता अपने पति को याद करते हुए कहती हैं कि “वे हमेशा कहते थे कि जो भी करो पूरे मन और लगन से करो |”
“खुशी और सफलता आपके साथ-साथ चलती रहें” नानी ऐसा संदेश लिखकर भी अपने ग्राहकों को भेजती है |
ऊषा गुप्ता ने ‘इंडियन वेजिटेरियन कुजीन’ नाम की एक किताब भी लिखी है | जिसे वे अक्सर आर्डर के साथ भेजती हैं |
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कैसी लगी आपको हौसले से भरी और परिस्थितियों को अवसर में बदलती नानी की कहानी? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बतायें |
Jagdisha का नानी को सहृदय प्रणाम | आप नए मील के पत्थर स्थापित करें | हम आपके स्वस्थ जीवन की कामना करते है |
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