दादा साहब फाल्के अवार्ड भारतीय सिनेमा जगत का एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। सिनेमा जगत में उल्लेखनीय कार्य के लिए यह पुरस्कार हर साल भारत सरकार द्वारा भारतीय सिनेमा की प्रमुख हस्तियों को दिया जाता है।
इस साल यानी 2022 में दादा साहब फाल्के अवार्ड दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को फिल्म जगत में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया।
80 वर्षीय आशा पारेख को विज्ञान भवन में आयोजित 68वें फिल्म फेयर पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया।
आशा भोंसले, हेमा मालिनी, पूनम ढिल्लों, उदित नारायण और टीएस नागभरण की पांच सदस्यीय दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समिति ने इस सम्मान के लिए आशा पारेख का चयन किया।
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दादा साहेब फाल्के के नाम पर दिया जाता है जिन्होंने भारत की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ साल 1913 में बनाई थी। उनके इस योगदान के सम्मान में साल 1969 से भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की शुरुआत की गई।
यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा और फिल्म इंडस्ट्री में उत्कृष्ठ योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार फिल्म समारोह निदेशालय द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाता है।
साल 1969 में देविका रानी को इस सम्मान से सर्वप्रथम सम्मानित किया गया था।
आशा पारेख अपने समय की सबसे अधिक भुगतान पाने वाली अभिनेत्री थीं। साथ ही वह 1960 और 1970 के दशक की सबसे सफल अभिनेत्रियों में से एक थीं।
उन्होंने एक बाल कलाकार के रूप में 10 साल की उम्र में अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1952 में आई फिल्म माॅं से की थी।
फिर दो साल बाद उन्होंने बिमल रॉय निर्देशित फिल्म बाप बेटी में अभिनय किया। साल 1959 में आई नासिर हुसैन निर्देशित फिल्म दिल देके देखो में उन्होंने शम्मी कपूर के साथ एक प्रमुख अदाकारा के रूप में शुरुआत की।
कई सफल फिल्मों में काम करने के कारण इन्हें ‘जुबिली गर्ल’ का खिताब मिला था। उन्हें शक्ति सामंत की 1970 में आई फिल्म ‘कटी पतंग’ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए प्रतिष्ठित फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है।
आशा पारेख ने साल 1990 में एक निर्देशक और निर्माता के रूप में प्रशंसित टीवी नाटक कोरा कागज़ का निर्देशन किया है।
जिसके बाद उन्होंने साल 1995 में फिल्मों में एक्टिंग पूरी तरह से छोड़ दी। उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी “आकृति” बनाई जिसके तहत टेलीविजन के लिए कई सीरियल का निर्देशन और निर्माण किया।
अभिनय की दुनिया में उनके योगदान के लिए उन्हें साल 2002 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
वह केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की पहली महिला अध्यक्ष भी बनी। सीबीएफसी अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 1998-2001 तक सेवा दी।
अपने पांच दशकों से अधिक के करियर में, उन्होंने 95 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। दिल देके देखो, कटी पतंग, तीसरी मंजिल, बहारों के सपने, प्यार का मौसम और कारवां जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय का जादू बिखेरा हैं।
साल 1992 में आशा पारेख को देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था।
साल 2017 में उन्होंने फिल्म समीक्षक खालिद मोहम्मद द्वारा सह-लिखित अपनी आत्मकथा, द हिट गर्ल को प्रकाशित किया।
आइये जानते हैं आशा पारेख के बारे में…
प्रारंभिक जीवन
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 में मुंबई में हुआ था। वह एक गुजराती हैं।
उनकी माँ, सुधा उर्फ सलमा पारेख, एक बोहरा मुस्लिम थीं और उनके पिता, बचूभाई पारेख, हिंदू गुजराती थे।
उनकी माँ ने उन्हें कम उम्र में नृत्यकला सिखाने के लिए भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में दाखिला दिलाया।
उन्होंने पंडित बंसीलाल भारती सहित कई शिक्षकों से नृत्यकला का प्रशिक्षण लिया।
करियर
आशा पारेख ने अपने करियर की शुरुआत स्क्रीन नाम बेबी आशा पारेख एक बाल कलाकार के रूप में की थी।
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने एक मंच समारोह में उनका नृत्य देखा और दस साल की उम्र में उन्हें फिल्म माँ (1952) में कास्ट किया। फिर वे बाप बेटी (1954) में नजर आईं।
फिर बाद की फिल्म की असफलताओं ने उन्हें निराश कर दिया। भले ही उन्होंने कुछ और बाल भूमिकाएँ की, लेकिन अपनी स्कूली शिक्षा दोबारा शुरू करने के लिए उन्होंने फिल्मों में काम करना छोड़ दिया।
16 साल की उम्र में उन्होंने फिर से अभिनय करने और नायिका के रूप में अपनी शुरुआत करने का फैसला किया।
लेकिन विजय भट्ट की फिल्म गूंज उठी शहनाई (1959) में अभिनेत्री अमीता को अदाकारा की भूमिका मिली और उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। क्योंकि फिल्म निर्माता का मानना था कि आशा पारेख एक स्टार बनने लायक नहीं थीं।
ठीक आठ दिन बाद, फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के साथ दिल देके देखो (1959) में नायिका के रूप में कास्ट किया, जिसने उन्हें एक बहुत बड़ा स्टार बना दिया।
नासिर हुसैन के साथ उनका एक लंबा जुड़ाव रहा, जिन्होंने उन्हें ओर छः फिल्मों में अपनी नायिका के रूप में कास्ट किया। वे फिल्में हैं: जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूं (1963), तीसरी मंजिल (1966), बहारों के सपने (1967) , प्यार का मौसम (1969), और कारवां (1971)।
उन्होंने नासिर हुसैन की फिल्म मंजिल मंजिल (1984) में भी एक कैमियो किया था।
नासिर हुसैन ने उन्हें बहारों के सपने (1967) से शुरू होने वाली 21 फिल्मों के वितरण में भी शामिल किया।
आशा पारेख को मुख्य रूप से उनकी अधिकांश फिल्मों में एक ग्लैमर गर्ल/उत्कृष्ट डांसर/खिलाड़ी लड़की के रूप में जाना जाता था।
फिर उन्होंने निर्देशक राज खोसला की फिल्मों, दो बदन (1966), चिराग (1969) और मैं तुलसी तेरे आंगन की (1978) में त्रासदीपूर्ण भूमिकाएं निभा एक गंभीर छवि को प्रर्दशित किया।
निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्मों पगला कहीं का (1970) और कटी पतंग (1970) में उन्होंने नाटकीय भूमिकाएँ निभाई। कटी पतंग के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
विजय आनंद और मोहन सहगल सहित कई महत्वपूर्ण निर्देशकों ने उन्हें अपनी कई फिल्मों में बार-बार कास्ट किया।
आशा पारेख ने हिंदी फिल्मों में अपनी प्रसिद्धि के चरम पर तीन गुजराती फिल्मों में अभिनय करके अपनी मातृभाषा में अभिनय किया। उनकी पहली गुजराती फिल्म अखंड सौभाग्यवती (1963) थी, जो एक बड़ी हिट बन गई।
उन्होंने कुछ पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया, जैसे कि कंकण दे ओहले (1971) धर्मेंद्र के साथ और लम्बरदारनी (1976) दारा सिंह के साथ। साथ ही हिट कन्नड़ फिल्म शारवेगड़ा सारदरा (1989) में भी अभिनय किया।
एक प्रमुख नायिका के रूप में, उन्होंने देव आनंद, शम्मी कपूर और राजेश खन्ना जैसे अभिनेताओं के साथ लोकप्रिय ऑनस्क्रीन जोड़ी बनाई।
अभिनेत्री से निर्देशक व निर्माता बनी
जब नायिका के रूप में फिल्में मिलनी बंद हो गई तो फिर आशा पारेख ने भाभी और माँ के रूप में सहायक अभिनेत्री की भूमिकाएँ निभाईं। एक उल्लेखनीय फिल्म जिसमें उन्होंने ऐसी भूमिका निभाई, वह है कालिया (1981), जो एकमात्र ऐसी फिल्म है जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ स्क्रीन साझा की।
लेकिन उन्होंने इन भूमिकाओं को अपने करियर का “अजीब दौर” कहा। इसलिए उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना बंद कर दिया। तब उनके दोस्तों ने उन्हें टेलीविजन निर्देशक बनने की सलाह दी।
उन्होंने उनकी सलाह मान ली और 1990 के दशक की शुरुआत में गुजराती धारावाहिक ज्योति के साथ एक टेलीविजन निर्देशक बन गईं। उन्होंने एक प्रोडक्शन कंपनी ‘आकृति’ बनाई।
उन्होंने पलाश के फूल, बाजे पायल, कोरा कागज़ और एक कॉमेडी, दाल में काला जैसे धारावाहिकों का निर्माण किया।
आशा पारेख 1994 से 2000 तक सिने आर्टिस्ट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष रहीं। साथ ही वह भारत के केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष थीं। वह 1998 से 2001 तक इस पद पर रहीं, जिसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिला।
फिल्मों को सेंसर करने और शेखर कपूर की एलिजाबेथ को मंजूरी नहीं देने के लिए काफी विवाद हुआ। बाद में, वह सिने एंड टेलीविज़न आर्टिस्ट एसोसिएशन (CINTAA) की कोषाध्यक्ष बनीं और बाद में इसके पदाधिकारियों में से एक के रूप में चुनी गईं।
टेलीविजन धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण करने के लिए आशा पारेख ने 1995 में अभिनय करना बंद कर दिया।
व्यक्तिगत जीवन
आशा पारेख ने शादी नहीं की। अपने संस्मरण “द हिट गर्ल” में, उन्होंने अफवाहों की पुष्टि की कि वह निर्देशक नासिर हुसैन के साथ प्रेम संबंध में थीं, जो पहले से ही शादीशुदा थे। लेकिन वह उनकी पारिवारिक संबंध में बाधा नहीं बनना चाहती थी और उनके दोनों परिवारों के सम्मान में, उनसे शादी नहीं कर सकीं।
आशा पारेख बतातीं है, नासिर हुसैन के जीवन के अंतिम वर्षों के दौरान उन्होंनेे, उन्हें नहीं देखा था, क्योंकि वह अपनी पत्नी की मृत्यु के कारण एकांतप्रिय हो गये थे। लेकिन उन्होंने 2002 में उनकी मृत्यु से एक दिन पहले उनसे बात की थी।
आशा पारेख की शादी अमेरिका में रहने वाले एक भारतीय प्रोफेसर से लगभग होने ही वाली थी। लेकिन वह अपनी प्रेमिका को छोड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए वह प्रोफेसर के साथ शादी के बंधन में नहीं बंधी।
उन्होंने एक बच्चे को गोद लेने की भी कोशिश की थी, लेकिन उसे जन्म दोष था, और डॉक्टरों ने उन्हें उसे गोद लेने से मना कर दिया।
अब, आशा पारेख अपनी नृत्य अकादमी कारा भवन और सांताक्रूज़, मुंबई में आशा पारेख अस्पताल पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। जिसका नाम उनके कई मानवीय योगदानों के कारण उनके सम्मान में रखा गया है।
रीमिक्स कल्चर को बताया भयानक
आशा पारेख ने बॉस्टन में कनेक्ट एफएम कनाडा से बात की और कहा- ‘हम अपने डांस ट्रेडिशन को भूल गए हैं और हम वेस्टर्न डांस की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे लगता है कि मेरी इस बात से आप सहमत होंगे कि, जिस तरह का डांस हम इन दिनों देख रहे हैं, वह हमारा स्टाइल नहीं है। हमारे डांस की इतनी समृद्ध परंपरा है कि हर राज्य की अपनी एक नृत्य शैली है और हम क्या कर रहे हैं? हम वेस्टर्न डांस की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि हम एरोबिक्स कर रहे हैं, हम डांस नहीं कर रहे हैं। यह देखकर मेरा दिल दुखता है।’
वहीं, गानों के रीमिक्स कल्चर के बारे में भी आशा पारेख ने इस कार्यक्रम में बात की। उन्होंने कहा कि, उन्हें अपने गाने के रीमिक्स भयानक लगते हैं। इसमें ऑरिजिनल गानों की मिठास लाउड ड्रम और बीट्स में गुम जाती है और शब्द खो जाते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
- अखंड सौभाग्यवती के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का गुजरात राज्य पुरस्कार (1963)
- चिराग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार नामांकन (1969)
- कटी पतंग के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार (1971)
- उधार का सिंदूर (1976) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार नामांकन
- मैं तुलसी तेरे आंगन की (1978) के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार नामांकन
- 1992 में पद्म श्री से सम्मानित
- फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2002)
- इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (आईएमपीपीए) ने आशा पारेख को भारतीय फिल्म उद्योग में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया (2003)
- कलाकर अवार्ड्स – लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2004)
- भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी पुरस्कार (2006)
- सप्तरंग के सप्तशी पुरस्कार (2006)
- गुजराती एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (GANA) का पहला अंतर्राष्ट्रीय गुजराती सम्मेलन- लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2006)
- पुणे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल-लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2007)
- बॉलीवुड अवार्ड- लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2007)
- फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) की ओर से लिविंग लीजेंड अवार्ड
- फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने अपने गोल्डन जुबली समारोह (2008) में आशा पारेख को सम्मानित किया
- सह्याद्री नवरत्न पुरस्कार, उन्हें “वुमन ऑफ सब्सटांस” होने के लिए दिया गया (2008)
- एबीएन एमरो सॉलिटेयर डिज़ाइन अवार्ड्स शो (2008) से सॉलिटेयर फॉर लाइफ अवार्ड
- नासिक इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल-लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2009)
- नृत्य और अभिनय में पारेख के योगदान के लिए ‘लच्छू महाराज पुरस्कार’ पुरस्कार (2009)
- भारत के 40वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ने पारेख को हिंदी सिनेमा में 50 वर्ष पूरे करने पर सम्मानित किया (2009)
- अमर यादें कार्यक्रम (2009) से ‘लीजेंड्स लाइव फॉरएवर अवार्ड’
- गोल्डन लॉरेल अवार्ड-नौवीं ग्रेड 8 वीमेन अचीवर्स अवार्ड्स (2010)
- प्रकृति रतन पुरस्कार (2010)
- जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल-लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2011)
- आश्रम कला अकादमी द्वारा भीष्म पुरस्कार (2012)
- कलाकर अवार्ड्स – लिविंग लीजेंड अवार्ड (2018)
- “वॉक ऑफ द स्टार्स” सम्मान, जहां एक टाइल पर उसके हाथ की छाप ली गईं (2013)
- स्टारडस्ट-लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2015)
- मोस्ट स्टाइलिश लाइफटाइम स्टाइल आइकन अवार्ड- हिंदुस्तान टाइम्स मोस्ट स्टाइलिश अवार्ड्स (2017)
- 5वें वार्षिक पुणे अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव (PILF) (2017) में उनके संस्मरण “द हिट गर्ल” के लिए दूसरा सर्वश्रेष्ठ पुस्तक पुरस्कार
- बिमल रॉय मेमोरियल लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2019)
- ग्लोबल सिनेमा फेस्टिवल-लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2020)
- “फिल्म उद्योग में उत्कृष्ट योगदान” के लिए दादासाहेब फाल्के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव पुरस्कार (2022)
- “सिनेमा के क्षेत्र में समर्पित सेवाओं” के लिए मास्टर दीनानाथ पुरस्कार पुरस्कार (2022)
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2020 के लिए प्रदान किया गया दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2022)
आशा पारेख इस उद्योग में आने वाले युवाओं को दृढ़ता, दृढ़ संकल्प, अनुशासन और जमीन से जुड़े रहने का सुझाव देतीं हैं।
Jagdisha दिग्गज अभिनेत्री को हमारी ओर से ढेरों शुभकामनाएं। हम आपके स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।
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