women reservation uttrakhand

उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी की सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले दिन ही सदन में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण सुरक्षित करने वाला बिल पेश किया और उसी दिन यह सदन में पास भी हो गया।

संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने शून्यकाल में सदन में उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) विधेयक 2022 प्रस्तुत किया। हालांकि विधानसभा की कार्यसूची में इस विधेयक को पेश करने का कोई जिक्र नहीं था, लेकिन सरकार की तरफ से इसे अचानक पेश किया गया।

प्रस्तुत विधेयक में कहा गया है कि राज्याधीन सेवाओं में आरक्षित पदों पर महिला अभ्यर्थी उपलब्ध न होने पर उन पदों को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा, बल्कि सामान्य श्रेणी के प्रवीणता क्रम में आने वाले योग्य पुरुष अभ्यर्थी को अवसर मिलेगा। 

यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने में कोई कठिनाई आती है तो सरकार ऐसी व्यवस्था कर सकेगी जो कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक होगी।

ऐसा कर सरकार ने क्षैतिज आरक्षण के आधार पर हुई महिला कर्मियों की नियुक्तियों को सुरक्षित रखने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

अब प्रदेश की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 30 फीसदी सीटें सुरक्षित होंगी। 

जुलाई, 2006 तक था 20% क्षैतिज आरक्षण

18 जुलाई, 2001 से उत्तराखंड में स्थानीय महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल रहा था। नित्यानंद स्वामी सरकार ने 20 फीसदी क्षैतिज आरक्षण शुरू किया था।

24 जुलाई 2006 में एनडी तिवारी सरकार ने इसमें परिवर्तन कर 30% कर दिया था। तब से एक जीओ के आधार पर महिलाओं को नौकरियों में आरक्षण मिल रहा था।

सरकार ने महिलाओं का सामाजिक व आर्थिक स्तर बढ़ाने के लिए इन्हें सरकारी सेवाओं में आरक्षण देेने का निर्णय लेते हुए शासनादेश जारी किया था। इसी आधार पर महिलाओं को राज्याधीन सेवाओं, निगम, सार्वजनिक उपक्रम व स्वायत्तशासी संस्थाओं में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा था।

क्यों लगा दी थी हाईकोर्ट ने आरक्षण पर रोक?

उत्तराखंड सम्मिलत राज्य सिविल एवं प्रवर अधीनस्थ सेवा प्री परीक्षा में इसी साल हरियाणा की पवित्रा चौहान और अन्नया अत्री व अन्य प्रदेशों की महिलाओं को जब क्षैतिज आरक्षण का लाभ नहीं मिला तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

ये महिलाएं उत्‍तराखंड की निवासी नहीं थी और यह राज्य की सिविल परीक्षा में शामिल हुई थीं। उस परीक्षा में आरक्षण के चलते स्‍थानीय महिलाओं को कट-ऑफ अंक आने पर भी बाहरी राज्‍य की महिलाओं की तुलना में प्राथमिकता दी गई। 

अंक ज्‍यादा होने के बावजूद उन्‍हें मुख्‍य परीक्षा में बैठने का अवसर नहीं मिला क्‍योंकि राज्‍य की निवासी महिलाओं के लिए कानून लागू था। इस भेदभाव को लेकर वे अभ्यर्थी कोर्ट पहुंच गईं।

हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था, कि उत्तराखंड की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में जनरल कोटे (अनारक्षित श्रेणी) से 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है। जिस कारण वे आयोग की परीक्षा से बाहर हो गई हैं। 

उन्होंने सरकार के 2001 एवं 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया कि यह आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16,19 और 21 विपरीत है।

कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकती। याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी।

उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलेक्टर समेत अन्य पदों के लिए हुई उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है।

24 अगस्त,2022 को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा (UKPSC Exam) में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30% क्षैतिज आरक्षण दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी। 

मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी।

और उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में उत्तराखंड की महिला अभ्यर्थियों के 30% क्षैतिज आरक्षण पर नैनीताल हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। 

अब आरक्षण पर चुनौती देना होगा मुश्किल

हाईकोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। साथ ही सरकार ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी।

कोर्ट में सरकार का प्रतिनिधित्‍व कर रहे वकील का तर्क था, कि उत्‍तराखंड की विशेष भौगोलिक स्थितियों और वहां की महिलाओं के अन्‍य राज्‍यों के मुकाबले पिछड़े प्रतिनिधित्‍व को देखते हुए राज्‍य की महिलाओं को प्राथमिकता दिया जाना जरूरी है। वकील ने तर्क दिया कि राज्‍य में नौकरी के अवसर न मिलने के कारण लोग आजीविका की तलाश में पलायन के लिए मजबूर हुए हैं। 

महिलाएं पीछे अकेली छूट गई हैं और राज्‍य में उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और वी. रामासुब्रमण्यन की पीठ ने हाईकोर्ट के स्टे को हटा दिया। 

4 नबंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाकर आरक्षण को बरकरार रखा। 

अब सरकार ने विधेयक पेश कर इसे कानून का जामा पहना दिया। इसके बाद आरक्षण को चुनौती देना मुश्किल होगा।

महिला आरक्षण बिल क्‍यों ? 

इस बिल के उद्देश्यों और इसे लागू करने के कारणों के बारे में सरकार का कहना है, कि उत्तराखंड की जटिल भौगोलिक संरचना के कारण यहां दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों का जीवन बहुत कठिन है, खासतौर पर महिलाओं का। 

पुरुष तो नौकरी करने के लिए मैदानी इलाकों में चले जाते हैं, लेकिन महिलाएं नहीं जा पातीं। इस कारण से उनकी आर्थिक स्थितियां और जीवन स्‍तर भी अन्‍य राज्‍यों की महिलाओं के मुकाबले काफी नीचे है। 

राज्य की सरकारी नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। इन तथ्‍यों पर गौर करते हुए महिलाओं के प्रतिनिधित्‍व को बढ़ाने के लिए आरक्षण जरूरी है। 

Jagdisha हमारा उद्देश्य केवल जानकारी देना है। किसी भी अन्य जानकारी के लिए उत्तराखंड राज्य सरकार की अधिकारिक वेबसाइट पर जाएं। 

हमारे साथ अपनी राय अवश्य सांझा करें। धन्यवाद!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *