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एक महिला जिन्होंने बिना किसी मदद और सहारे के अपने दम पर दिशाहीन जीवन को दी नई दिशा। आज वो एक सफल टैरो कार्ड रीडर, स्क्रिप्‍ट राइटर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

महिलाओं के साथ क्रूरता व बर्बरता के किस्से तो आम है। आज से नही अनंत काल से। बस रूप भिन्न होते हैं। अब ये निर्भर सहने वाले पर करता है, कि कितनी क्षमता है सभी प्रकार की अवेहलना और हिंसा को बर्दाश्त करने की। अब क्या तो झेलो या विरोध करो ।

हां, मुश्किल है विरोध करना। किसी महायुद्ध से कम नहीं होगा। क्योंकि यह तो भाग्य ही होगा कि कोई आपका साथ दे, वरना तो अक्सर शुरूआती लड़ाई अकेले ही लड़नी होती है। 

सोचने वाली बात है न कि एक महिला जिनका साढ़े तीन साल का एक बेटा है, और उनका पति उन्हें केरोसिन तेल से जलाने की कोशिश करता है। जिसमें वह बुरी तरह झुलस गई। 

विडंबना तो देखो की उनके अपने माता-पिता ने भी कोई आवाज नहीं उठाई और न किसी प्रकार की शिकायत दर्ज करवाई।

तो क्या कहा जाए ऐसे रिश्तों और परिवार को। कौन जिम्मेदार है इस तरह की घटनाओं का। वह पति जिसे केवल दहेज से मतलब है या परिवार जो सब कुछ जानकर भी चुप है और फिर स्वयं वह महिला जो केवल सहे जा रही है।

हमारे समाज में सामाजिक रूढ़िवादिता और लैंगिकवाद ऐसे भयानक अपराधों को पालते-पोषते है, जहां केवल महिलाओं को वस्तु समतुल्य समझा जाता है।

जिसमें बहुत सी महिलाएं जीवन भर घुटती रहतीं हैं तो कई दम तोड़ देती हैं। 

वहीं कुछ ऐसी भी होती हैं जो अपनी जगह बनाने के लिए मजबूती से खड़ी होती हैं और समाज के खिलाफ लड़ती हैं।

कुछ ऐसी ही कहानी है स्नेहा जावाले की। उनका 70 फीसदी से ज्‍यादा चेहरा और शरीर जला हुआ है। 

स्‍नेहा जावाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए काम करती हैं।

तो आइये जानते हैं उनका दहेज पीड़िता से लेकर समाज में अपनी नई पहचान बनाने का सफर…

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वह भयानक दौर

शादी के बाद से ही स्‍नेहा जावाले के साथ यातनाओं का सिलसिला शुरू हो गया था। उनके पति और पति के भाई ने मिलकर उनके माता-पिता से बड़ा दहेज लेने के लिए उन्हें प्रताड़ना देना जारी रखा।

मानसिक और शारीरिक यातनाओं के बाद भी वह रिश्तों के बोझ ढोती रहीं। इसी बीच वह मां भी बन गईं लेकिन बावजूद इसके दहेज का ढोल पिटना बंद नहीं हुआ |

अब सावन के अंधे को तो हरा ही हरा दिखता है। मनुष्य की खाल में छुपे लोभी भेड़ियों को अपने लोभ के अतिरिक्त कहां कुछ समझ आता।

तो यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और क्रुरता अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई। 24 दिसंबर, 2000 को स्‍नेहा जावाले रसोईघर (किचन) में कुछ कम कर रही थी। उन्हें पेंटिंग का शौक था तो उन्होंने किचन में अपने पेंटिंग ब्रश केरोसिन तेल में डुबो कर रख रखे थे। 

उनका पति अजीब सी घृणा के साथ वहां आया और पहले जोर से एक थप्पड़ मारा। वह ब्रश उठाकर फेंक दिए और केरोसिन तेल भी फेला दिया और माचिस की तीली जला दी।

तेज आग की लपटें उठीं, जिसकी चपेट में स्‍नेहा जावाले आ गईं। यह सारा मंजर उनका साढ़े 3 साल का बेटा देख रहा था। वह चिल्लाया और कहने लगा कि आपने मम्मा को जलाया आपने मम्मा जी को जला दिया।

यह सब करने के बाद उस दुर्बुद्धी को होश आया कहीं फंस न जाए तो पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया और उनके माता-पिता को बुलाया। उनके परिवार से उसने क्षमा याचना की और रिपोर्ट दर्ज न करवाने का अनुरोध किया।

क्या दोगले रिश्तों का परिचय हुआ सभी मान भी गए। और उस व्यक्ति के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करवाई।

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पति ने दे दिया तलाक

ढ़ाई महीने के बाद स्‍नेहा जावाले अस्पताल से आईं लेकिन अब बहुत कुछ बदल चुका था।

हर किसी के चेहरे पर एक ऐंठन दिखाई दे रही थी जो बता रही थी कि वे उनसे कितने शर्मिंदा हैं। यानी कोई उनका चेहरा ही नहीं देखना चाहता था। वह चेहरा और शरीर जो उनके लालच और आक्रोश का परिणाम था। 

उनके लिए अपने स्वयं के आत्मविश्वास को अर्जित करने की तुलना में उनके प्रति परिवार का व्यवहार और भी कठिन चुनौती बन गया।

उस दौरान उनके घर का माहौल कुछ ऐसा था कि अगर दरवाजे की घंटी बजी और वह कहीं सामने है, तो उन्हें दूसरे कमरे में जाने और दरवाजा बंद करने के लिए कहा जाता। 

यहां तक कि उनके बेटे को भी उनके पास नही आने देते। वह अपने बेटे को देखना, बात करना और छूना चाहती थीं। 

उनका बेटा चोरी-छिपे उनके पास आता, और उनके दागों पर विक्स रगड़ता। वह उन्हें फ्रिज से फल लाकर देता। उनका बेटा ही उनकी ताकत का स्तंभ था।

उनके परिवार वालों ने उनके किचन व बेडरूम में भी जाने पर रोक लगा दी थी। और उन्हें किसी भी मौके या उत्सव से दूर रखा जाता। यह सब उनके लिए ओर भी कठिन हो गया जब उसके पति ने तलाक के लिए अर्जी दी जो मंजूर हो गई। 

उस घटना के 2 साल 8 महिने बाद, 2003 में उनका तलाक हो गया और उनका पति बेटे को अपने साथ ले गया। उन्हें कभी उनके बेटे से भी नहीं मिलने दिया गया। और उन्होंने तब से अब तक अपने बेटे को नहीं देखा।

पति के अलगाव ने उन्हें लगातार मनोवैज्ञानिक आघात में दबा दिया। और शुरू हुई उनके जीवन की एक नई यात्रा।

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अपने जीवन को दी नई दिशा

लंबे समय तक खुद को दुनिया से दूर रखने के बाद, स्नेहा जावाले ने अपनी छाया से बाहर कदम रखा और सवाल किया कि उनके जैसे लोगों को अलगाव क्यों नसीब होता है। 

उत्तर खोजने के लिए, उन्होंने भाग्य और नियति का व्यापक अध्ययन शुरू किया। और ज्योतिष शास्त्र की ओर आगे बढ़ीं। 

अपने स्वयं के भविष्य में गहराई तक जाने के प्रयास में, उन्होंने ज्योतिषियों के पास जाना शुरू किया। यहाँ तक कि उन्हें इस अभ्यास की गतिशीलता सिखाने के लिए राजी भी किया।

आज, वह स्वयं ज्योतिषविद्या का अभ्यास करती हैं, और टैरो कार्ड और भाग्य पढ़ने में भी विशेषज्ञता प्राप्त की। 

उन्होंने टैरो कार्ड रीडिंग, अंक ज्योतिष, रेकी, सम्मोहन, वास्तु, फेंग शुई और चाय और कॉफी कप में अवशेषों को पढ़ने का भी अध्ययन किया।

उन्होंने मराठी फिल्मों और टीवी श्रृंखलाओं के लिए संवाद लिखकर लेखन और कहानी कहने के अपने जुनून को भी दिशा दी। 

मराठी फिल्म और टेलीविजन सितारे निजी परामर्श के लिए उनके घर आते हैं। जिस कारण वह अपने पड़ोसियों के बीच लोकप्रिय हो गई। लेकिन हां उनका झुलसा हुआ चेहरा अभी भी चर्चा का विषय होता है।

उन्हें थिएटर प्ले ‘निर्भया’ में अभिनय करने के लिए कहा गया था, जिसका नाम 2012 के दिल्ली गैंगरेप पीड़िता के नाम पर रखा गया था, जो हिंसा से बचे लोगों के अनुभवों पर आधारित था। दुनिया भर के दर्शकों के सामने प्रदर्शन करने से उन्हें काफी बढ़ावा मिला और अपनी मनोदशा से उबरने में मदद मिली।

आज स्नेहा जावाले एक सफल टैरो कार्ड रीडर, स्क्रिप्‍ट राइटर हैं।

स्नेहा जावाले, अब एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं और एसिड अटैक सर्वाइवर की मदद करतीं हैं। और उन्हें प्रोत्साहित करती है। 

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BBC की प्रभावशाली महिलाओं कि सूची में शामिल

BBC की वर्ष 2022 की विश्‍व की प्रभावशाली और ताकतवर महिलाओं की सूची में स्‍नेहा जावाले ने भी स्थान प्राप्त किया है।

BBC (ब्रिटिश ब्रॉडकास्टस्टिंग कॉरपोरेशन) ने वर्ष 2022 की विश्‍व की प्रभावशाली और ताकतवर महिलाओं की एक सूची जारी की है। इस सूची में दुनिया भर से महिलाओं को चुना गया है। इस लिस्ट में एक नाम स्‍नेहा जावाले का भी शामिल है।

बीबीसी हर साल दुनिया भर से ऐसी महिलाओं को चुनता है, जिन्‍होंने उस वर्ष अपने काम और उपलब्धियों से कोई खास पहचान बनाई हो। जिन्‍होंने समाज में बदलाव लाने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया हो। 

इसमें सफल बिजनेस वुमन से लेकर, लेखक, कलाकार, वैज्ञानिक और जमीनी स्‍तर पर काम करने वाली एक्टिविस्‍ट महिलाओं के नाम शामिल किए जाते हैं।

इस लिस्‍ट में भारत की भी चार महिलाएं हैं। जिसमें अभिनेत्री और फिल्म निर्माता प्रियंका चोपड़ा जोनस (Priyanka Chopra Jonas), बुकर अवार्ड विनर हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree), एविएशन इंजीनियर सिरिशा बांदला (Sirisha Bandla) और सामाजिक कार्यकर्ता स्‍नेहा जावाले (Sneha Jawale) के नाम शामिल है।

जिस समाज में महिलाओं के शारीरिक रूप रंग से सुंदरता को परिभाषित किया गया है, वहां जिस चेहरे को किसी ने अपनी क्रुरता के कारण एसिड व केरोसिन तेल से जला कर कुरूप कर दिया है उनका तो स्थान ही नहीं है। उनके लिए जगह कहां है जो अच्छे विचारों और भावों के साथ पैदा हुई हैं? 

क्या चेहरे का सुंदर न होना किसी को अयोग्य बना देता है?

"क्या मैं सुंदर दिखूंगी? जब मुझे पता है कि यह संभव नहीं है, तो ऐसा क्यों करूं और पैसे बर्बाद करती रहूं जो मुझे उधार लेने पड़ते है? मैं अपने चेहरे से खुश हूं। यह मेरा चेहरा है और अगर किसी को इसे देखने में दिक्कत हो तो न देखें।” ~स्नेहा जावाले

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Jagdisha रूप रंग किसी को भी सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकता, स्नेहा जावाले ने इसे साबित कर दिया। वह अब न केवल एक स्थानीय प्रसिद्ध ज्योतिषी हैं बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं जो कई लोगों को जीवन से हार न मानने के लिए प्रेरित करती हैं।

सभी पाठकों से अनुरोध है कि हमारे साथ अपनी राय अवश्य सांझा करें। धन्यवाद!

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