bula chaudhary swimmer

बुला चौधरी लम्बी दूरी की एक अद्भुत महिला तैराक हैं। उन्होंने पांचों महाद्वीपों के सातों समुंद्र तैर कर पार किए हैं। 

लेकिन बुला चौधरी के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि उन्हें समुद्र के पानी से एलर्जी होने के बावजूद भी अपने लक्ष्य हासिल किए। दरअसल उनके एक कान में छेद हो गया था जिस कारण बार-बार फंगल इंफेक्शन हो जाता था। हालांकि डॉक्टरों ने उन्हें तैराकी छोड़ने की सलाह दी थी, लेकिन वह कहां हार मानने वाली थी। वह न केवल कायम रहीं, बल्कि दुनिया भर में अपना नाम कमाया।

पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित बुला चौधरी को जल परी की उपाधि प्राप्त है। तैराकी के खेल में उनकी अद्वितीय उपलब्धियों ने उन्हें ‘इंडियन मरमेड’ और ‘क्वीन ऑफ़ द ओशन्स’ जैसे उपनाम भी दिए हैं।

उन्होंने 2 सितंबर को इंग्लिश चैनल को दूसरी बार तैरकर पार करने का गौरव हासिल किया था। यह कारनामा करने वाली वह एशिया की पहली महिला बनीं। 

बुला चौधरी ने जिब्राल्टर जलडमरूमध्य को तैरकर 3 घंटे 35 मिनट के रिकॉर्ड समय में पार किया था। जो आज भी एक विश्व रिकॉर्ड बना हुआ है।

1990 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया और जलपरी की उपाधि भी दी गई। उन्हें 2002 में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2003 में उन्हें ध्यानचंद लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 

उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा चार बार सम्मानित किया जा चुका है। बुला चौधरी राजनीति में भी हाथ आजमा चुकी हैं । वह वर्ष 2006 से 2011 तक विधायक ​रह चुकी हैं।

सत्य ही जीवन रूपी संघर्ष की राह को धैर्य, निरंतर प्रयास और सकारात्मक दृष्टिकोण के बल द्वारा ही सकुशल तय किया जा सकता है। संघर्ष को पार किए बिना तो लक्ष्य मिलते नहीं तो इसे पार कर ही सफलता की ओर बढ़ा जा सकता है।

कुछ ऐसी प्रेरित करतीं कहानी है बुला चौधरी की तो, आइये जानते हैं उनके जीवन के बारे में खास बातें…

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प्रारंभिक जीवन

बुला चौधरी का जन्म 2 जनवरी 1970 को हुगली, पश्चिम बंगाल, कोलकाता में हुआ था। उनका पूरा नाम बुला चौधरी चक्रवर्ती है।

तैराकी में बुला चौधरी की शुरुआत का कारण एक ऐसी घटना है जिसका सामना उनके पिता ने किया था। दरअसल उनके पिता एक बार जब नाव से कहीं जा रहे थे, तब उनकी नाव पलट गई। और तब एक अजनबी ने उनकी मदद की और उनकी जान बचाई। 

वह लगभग डूब चुके थे। इसके बाद, उन्होंने इस तैराकी कौशल को सीखने का फैसला किया और यह सुनिश्चित किया कि उनके बच्चे भी इसे सीखें। 

बुला चौधरी का पहला तैराकी सबक दो साल की उम्र से शुरू हो था। उनके घर के पास एक सरोवर था, जहाँ उनके पिता उन्हें तैरना सीखने के लिए ले जाया करते थे।

4 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनका प्रवेश एक स्विमिंग क्लब में करवाया। जो काफी दूर था, जहाँ उनके तैराकी कोच ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए कहा था कि वह बहुत प्रतिभाशाली लड़की है, और वह उन्हें एक अच्छा तैराक बनने में मदद करेंगे।

बुला चौधरी ऐसी जगह से आती हैं जहां कोई नहीं जानता था कि स्विमसूट या ट्रैक सूट क्या होता है। जब उन्होंने तैरना शुरू किया, तो उनके पास स्विमसूट नहीं था। 

उनकी माँ ने कहीं तैरने की पोशाक देखी और उसे खुद सिल दिया, और वह अपनी माँ द्वारा बनाई गई सूती पोशाक में ही तैर गई। 

वह जब दिल्ली नेशनल कैंप में आती थीं तो फ्रॉक पहनकर अभ्यास करती थीं। उस दौरान उनकी सहेलियाँ उसके फ्रॉक में अभ्यास करने पर उनका मजाक बनाती, तो उन्होंने अपने पिता से एक उपयुक्त पोशाक खरीदने के लिए कहा। लेकिन उनके पास एक स्विमिंग सूट खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। फिर उन्होंने किसी तरह पैसे जमा किए और खुद के लिए एक स्विमसूट खरीदा।

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9 साल की उम्र में जीती राष्ट्रीय प्रतियोगिता

बुला चौधरी जब 9 साल की थी तब राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने इस प्रतियोगिता में अपनी आयु वर्ग की सभी स्पर्धाओं में जीत दर्ज कर छह स्वर्ण पदक जीते।

जिसके बाद में वह पहली बार सुर्खियों में आई। 

बुला चौधरी बचपन से ही तैरना पसंद करती हैं। उनके कान में छेद हो गया था, जिसके कारण उन्हें हमेशा कोई न कोई फंगल इंफेक्शन होता रहता था। 

उनके डॉक्टरों ने कहा कि पानी उसका दुश्मन है, लेकिन उन्होंने तैरना नहीं छोड़ा। 

जब वह 11 साल की थी तब भारतीय शिविर में आईं, जहां एक जर्मन कोच ने उन्हें एशियाई खेलों के लिए चुना। लोग कहते थे, वह कैसे जीतेगी? लेकिन उन्होंने लोगों की बातों की परवाह नहीं की, और एक चैंपियन बनने के अपने प्रयासों में लगी रहीं।

उन्होंने 1982 में 12 साल की उम्र में अपने पहले वरिष्ठ राष्ट्रीय आयोजनों में भाग लेते हुए कई जूनियर और राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतीं, जो अपने आप में एक सर्वकालिक रिकॉर्ड था। 

उनके अच्छे प्रदर्शन के कारण उन्हें उसी वर्ष ब्रिस्बेन राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भारतीय टीम की रिले चौकड़ी में एक स्थान और एशियाड संभावितों की सूची में प्रमुख स्थान मिला।

जो लोग उन्हें नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित करने का प्रयास कर रहे थे, वहीं उनकी उपलब्धियों के लिए उनकी प्रशंसा कर रहे थे।

1982 में ही एशियाई खेलों में तैराकी चैंपियनशिप के बाद उनके कान का ऑपरेशन किया गया। कुछ समय बाद, उन्हें पता चला कि उनकी हृदय गति अनियमित थी और डॉक्टरों ने उन्हें पेसमेकर लगाने की सलाह दी। 

इतना सब होने के बाद भी उन्होंने ठीक होते ही तैरना जारी रखा। तब उन्हें समुद्र के पानी से एलर्जी होने का पता चला, लेकिन वह फिर भी नहीं रूकी।

बुला चौधरी ने 1984 में, 100 मीटर बटरफ्लाई के लिए 1:06.19 का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने अपने प्रदर्शन में सुधार किया। और उन्होंने 1986 के सियोल एशियाई खेलों में 100 मीटर बटरफ्लाई में 1:05.27 और 200 मीटर बटरफ्लाई स्पर्धा में 2:19.60 का रिकॉर्ड बनाया। 1991 में साउथ एशियन फेडरेशन गेम्स में, उन्होंने छह स्वर्ण पदक जीते।

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जब शुरू की लंबी दूरी की तैराकी 

1989 में बुला चौधरी ने लंबी दूरी की तैराकी शुरू की, उसी वर्ष इंग्लिश चैनल को पार किया। उन्होंने 1999 में यह कारनामा फिर से दोहराया। और वह दो बार इंग्लिश चैनल पार करने वाली पहली एशियाई महिला बनी।

1996 में, उन्होंने 50 मील मुर्शिदाबाद लंबी दूरी की तैराकी जीती।  

उन्होंने अगस्त 2000 में जिब्राल्टर जलडमरूमध्य (स्पेन) की। उनकी इस तैराकी के समय उनके पति और कोच संजीव चक्रवर्ती और उनका 10 वर्षीय बेटा सर्बूजी उनके साथ कोलंबो आए थे। 

बुला चौधरी के अनुसार यह तैराकी सातों समुद्रों में सबसे कठिन थी।  इसे पार करने पर उन्होंने गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना स्थान बनाया। इस तैराकी को सहारा इंडिया ने स्पॉन्सर किया था।

इसे उन्होंने 3 घंटे 35 मिनट के रिकॉर्ड समय में पार कर लिया था, जो आज भी एक विश्व रिकॉर्ड है। जिब्राल्टर स्ट्रेट स्पेन से मोरक्को तक है, जिसकी दूरी 20 किलोमीटर है।

2001 में इटली का तिरानियन समुद्र पार किया। फिर 2002 में ही उन्होंने अमेरिका में केटेलिना चैनल पार किया।

20 जुलाई, 2002 को बुला चौधरी ने यूनान में टॉरोनियस की खाड़ी को तैरकर पार करने में सफलता प्राप्त की। ग्रीस का छोटा शहर मैसीडोनिया के पास निकिती चाकिडिंको से तैराकी शुरू करके कसान्ड्रा के बीच की 26 किमी तक की दूरी उन्होंने 8 घंटे 11 मिनट में पूरी की। यह उनकी सात समुद्र पार करने के स्वप्न में चौथी तैराकी थी। 

बुला चौधरी ने 25 मार्च, 2003 को न्यूजीलैण्ड के साउथ आइलैंड के समुद्र में कुक स्ट्रेट को तैरकर पार करने में सफलता प्राप्त की। ओहायो से पेरानो पाइंट के बीच जलडमरूमध्य की 24 किमी की दूरी को 9 घण्टे 4 मिनट के समय में उन्होंने पूरी किया। बेहद ठण्डे पानी एवं विषम परिस्थितियों वाले इस जलडमरूमध्य को पार करना उनके जीवन की एक बड़ी चुनौती थी।

वह अपने साथ तैरने वाले 29 तैराकों में से सातवें स्थान पर रहीं। मौसम और हवाओं की बाधा को पार करते हुए उन्होंने यह दूरी तय की थी।

अगस्त, 2004 में बुला चौधरी का सातों समुद्रों को तैरकर पार करने का सपना पूरा हुआ।

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20 अगस्त, 2004 में बुला चौधरी ने श्रीलंका से तमिलनाडु (भारत) के बीच की पाल्कस्ट्रेट तैर कर पार किया। श्रीलंका की तरफ से आधी दूरी तक हवाएं और लहरें दोनों ही भारी थीं। जिसके कारण उन्हें काफ़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। धनुष्कोटि के पास पांच किलोमीटर तक इतनी हवा और लहरें थीं कि उन्हें यह दूरी तय करने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया।

तलाई मन्नार व तमिलनाडु में धनुष्कोटि के बीच 17 नॉटिकल मील (40 किमी) की दूरी तय करने में उन्होंने  13 घंटे 54 मिनट का समय लिया। बुला चौधरी का यह सातवां समुद्र था जिसे तैरकर उन्होंने पार किया। 

इस तरह बुला चौधरी ने 34 बर्ष की आयु में अपने करियर के विशेष लक्ष्य को प्राप्त किया।

2005 में वह ग्रीस में स्ट्रेट ऑफ जिब्राल्टर की जलडमरूमध्य, कुक जलडमरूमध्य, टायरानियन सागर, टोरोनोस खाड़ी या कसंद्रा की खाड़ी, कैटालिना चैनल और थ्री एंकर बे से रॉबेन द्वीप, दक्षिण अफ्रीका तक, पांच महाद्वीपों से समुद्री चैनलों में तैरने वाली पहली महिला बनीं। । 

बुला चौधरी 29 अप्रैल, 2005 को दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के पास थ्री एंकरस बे से रोबिन आईलैंड पार करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं, जिन्होंने पांचों महाद्वीपों के समुन्द्र पार किए। उन्होंने ठंडे अन्टार्कटिका पानी में 30 किलोमीटर की दूरी 3 घंटे 26 मिनट में पूरी करके एक नया कीर्तिमान कायम किया। 

वह इस दूरी को पार करने वाली न सिर्फ प्रथम एशियाई महिला ही नहीं थीं बल्कि इतने कम समय में पार करने वाली पहली महिला भी थीं। 

उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के समुद्र की यह तैराकी सुबह 10 बजे शुरू करके दोपहर 1:26 पर समाप्त कर दी। 

उन्होंने शार्क मछलियों से भरे इस अन्टार्कटिका पानी में पहले से ही तैराकी का अभ्यास किया था। 

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व्यक्तिगत जीवन

बुला चौधरी ने संजीव चक्रवर्ती से शादी की, जो उनके कोच भी है। और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के तैराक भी हैं। वह भारत के सबसे तेज तैराक हैं, और शादी के बाद उन्होंने बुला चौधरी का बहुत साथ दिया। उनके बेटे का नाम सर्बूजी है।

जिस पानी से उन्हें एलर्जी थी, उसे जीतकर उन्होंने देश को गौरवान्वित किया। 

Jagdisha बुला चौधरी सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है। उनके साहस व हिम्मत की जितनी भी सराहना की जाए, वह कम ही होगी। इस तरह से कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर हर महिला में दिखाई देने लगे तो, महिलाओं की स्थिति के साथ-साथ देश की उन्नति भी निश्चित ही संभव होगी।

हमारे साथ अपनी राय अवश्य सांझा करें। धन्यवाद!

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