भारत में लैंगिक समानता को लेकर क्या कहती है, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की साल 2022 की रिपोर्टलैंगिक अंतर महिलाओं और पुरुषों के बीच सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, या आर्थिक उपलब्धियों या दृष्टिकोण का अंतर है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की साल 2022 की रिपोर्ट कि मानें तो दुनियाभर में लैंगिक समानता का लक्ष्य प्राप्त करने में हमें अभी 132 साल लगेंगे।
लेकिन यह भी तब होगा, जब धीमी गति से ही सही, हम सही दिशा में लगातार अपने कदम बढ़ाते रहें | रफ्तार हालांकि बहुत धीमी है, फिर भी यह रिपोर्ट थोड़ी उम्मीद तो जगाती है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार लैंगिक समानता में भारत 146 देशों में 135वें स्थान पर है | 2021 में भारत 156 देशों में 140वीं रैंकिंग पर था |
रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 ने लैंगिक समता को एक पीढ़ी पीछे कर दिया है और इससे उबरने की कमजोर दर इसे वैश्विक रूप से और प्रभावित कर रही है।
0 से 1 के पैमाने पर भारत ने 0.629 स्कोर किया है। जो पिछले 16 वर्षों में भारत का सातवां उच्चतम स्कोर है |
भारत की रैंकिंग सुधरने के बावजूद लैंगिक समानता में सिर्फ 11 देश ही उससे नीचे हैं | भारत से नीचे वाले देशों में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कॉन्गो, ईरान और चैड जैसे देश शामिल हैं |
पिछले साल से भारत ने आर्थिक साझेदारी और अवसर पर अपने प्रदर्शन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक बदलाव दर्ज किया है | लेकिन श्रम बल भागीदारी 2021 से पुरूषों और महिलाओं, दोनों की कम हो गई है |
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बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में महिला
इस रिपोर्ट के अनुसार इस साल भारतीय कंपनियों के निदेशक मंडल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत बढ़कर 18% हो गया है। 10 साल पहले यह आंकड़ा 12% था। यानी हम कह सकते है कि पिछले 10 सालों में हमने 6% की बढ़त हासिल की है।
एक जानी-मानी कंसल्टिंग फर्म ‘ईवाई’ ने यह रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट कह रही है कि वर्ष 2013 से लेकर 2022 तक भारतीय कंपनियों के निदेशक मंडल में महिलाओं की हिस्सेदारी में 6% की बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़कर 18% हो गई है।
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में महिलाओं की 18% हिस्सेदारी के बावजूद भारत अभी भी दुनिया के कई विकसित देशों के मुकाबले बहुत पीछे है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, आइसलैंड और डेनमार्क जैसे देशों में संसद से लेकर कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तक में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत कहीं ज्यादा है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस की कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 44.5% है। ईवाई की इस रिपोर्ट में सबसे ऊपर फ्रांस ही है।
फ्रांस के बाद स्वीडन 40%, नॉर्वे 36.4%, कनाडा 35.4% कंपनियों में महिला डायरेक्टर्स का प्रतिनिधित्व है।
ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का नंबर कनाडा के बाद आता है। ब्रिटेन में 35.3%, ऑस्ट्रेलिया 33.5% डायरेक्टर्स महिलाएं हैं।
दुनिया के सबसे अमीर और ताकतवर देशों में शुमार होने के बावजूद अमेरिकी कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायेरक्टर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है, जहां सिर्फ 28.1% महिलाएं ऊंची पोजीशन तक पहुंची हैं। सिंगापुर में 20.1% महिलाएं बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का हिस्सा हैं।
आपको बता दें, 2011 में कंपनी एक्ट निफ्टी के तहत आने वाली हर कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य कर दिया गया था। उसके बाद से हुए कई सर्वे और आंकड़े लगातार महिला बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की संख्या में हुई बढ़ोतरी की ओर इशारा कर रहे हैं, 18% बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स होने के बावजूद आज भी कंपनियों में महिला सीईओ, चेयरपर्सन या कंपनी हेड की संख्या सिर्फ 5% है।
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राजनीतिक अधिकारिता
महिला सांसदों/विधायकों, वरिष्ठ अधिकारियों और प्रबंधकों की हिस्सेदारी 14.6% से बढ़ कर 17.6% हो गई है।
देश में संसद और मंत्री पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। जहां भारत का 146 में से 48वां स्थान है।
आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ 1 एवं बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।
भारत का स्कोर पिछले वर्ष से 0.276 से 0.267 तक कमी आई है।
लेकिन आशा की किरण यह है कि कमी के बावजूद इस श्रेणी में भारत का स्कोर वैश्विक औसत से ऊपर है।
राजनीतिक सशक्तिकरण के उप सूचकांक में अंक का घटना इसलिए प्रदर्शित हुआ है कि पिछले 50 वर्षों में राष्ट्र प्रमुख के तौर पर महिलाओं की भागीदारी के वर्षों में कमी आई है।
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आर्थिक भागीदारी एवं अवसर
इसके अंतर्गत श्रम शक्ति का हिस्सा, महिलाओं का प्रतिशत, समान कार्य हेतु समान पारिश्रमिक, अर्जित आय इत्यादि सम्मिलित हैं।
यहां भी, भारत प्रतिस्पर्धा में 146 देशों में से 143वें स्थान पर है। भारत का स्कोर 2021 में 0.326 से 0.350 तक सुधरा है।
भारत का स्कोर वैश्विक औसत से काफी कम है एवं भारत से केवल ईरान, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान ही पीछे हैं।
भारत ने आर्थिक भागीदारी और अवसर में सबसे खराब प्रदर्शन किया है, जहां यह नेपाल (98), भूटान (126), और बांग्लादेश (141) जैसे पड़ोसी देशों से पीछे रहकर 143 वें स्थान पर है।
रिपोर्ट के अनुसार, आइसलैंड को एक बार फिर सबसे अधिक लैंगिक समानता वाला देश घोषित किया गया है। आइसलैंड के नजदीकी पड़ोसी देश फिनलैंड, नॉर्वे और स्वीडन टॉप पांच में शामिल है, जबकि शीर्ष 10 में केवल चार देश न्यूजीलैंड (चौथा), रवांडा (छठा), निकारागुआ (सातवां) और नामीबिया (आठवां) यूरोप से बाहर हैं।
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शैक्षिक आयाम
इस आयाम में साक्षरता दर एवं प्राथमिक, माध्यमिक तथा तृतीयक शिक्षा में नामांकन दर सम्मिलित हैं।
यहां भारत 146 में से 107वें स्थान पर है। पिछले वर्ष के मुकाबले स्कोर में थोड़ी कमी आई है। 2021 में भारत 156 में से 114 वें स्थान पर था।
हालांकि, प्राथमिक शिक्षा में दाखिले के लिए लैंगिक समता के मामले में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है।
स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
जन्म के समय लिंग अनुपात एवं स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के आंकड़ों में भारत सभी देशों में अंतिम स्थान पर है। यह उन पांच देशों में शुमार है जहां का लैंगिक अंतराल पांच प्रतिशत से अधिक है। अन्य चार देश-कतर, पाकिस्तान, अजरबैजान और चीन हैं।
भारत का स्कोर 2021 से अपरिवर्तित है जब भारत 156 देशों में से 155वें स्थान पर था।
Jagdisha हमारा उद्देश्य केवल जानकारी देना है। उपर्युक्त आंकड़े वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम रिपोर्ट और कंसल्टिंग फर्म ‘ईवाई’ के आधार पर दिए गए हैं।
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