महिलाओं के साथ होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा अब वो चाहे घरेलू हिंसा, किसी भी तरह की शारीरिक हिंसा या यौन हिंसा हो, वह उपेक्षित महिलाओं के न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालती है।
यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली की तरफ से 25 नवंबर को दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा उन्मूलन दिवस (इंटरनेशनल डे फॉर एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन) के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 1999 में हुई थी, जिसका मकसद महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध और हिंसा की घटनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना है और जहां तक संभव हो, इसमें कमी लाने की कोशिश करना है।
साल 2013 में हुई WHO की ग्लोबल स्टडी के मुताबिक दुनियाभर की 35% महिलाओं ने शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किया था। हालांकि कुछ देशों के अध्ययन से यह भी पता चला कि वहां की 70% महिलाओं ने अपने जीवनकाल में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव जरूर किया था।
कोरोना के कारण लॉकडाउन, आवागमन पर प्रतिबंध से उत्पन्न सामाजिक अलगाव की स्थिति से घरेलू हिंसा की घटनाओं में 5 गुना से ज्यादा वृद्धि हुई।
ये आंकड़े निश्चित रूप से डराने वाले हैं। अगर किसी महिला ने किसी तरह की मारपीट या यौन हिंसा का अनुभव किया हो, तो उनके मन में कई तरह की भावनाएं विकसित हो जाती हैं, जैसे- डर लगना, विभ्रान्ति व उलझन महसूस होना, गुस्सा आना या फिर पूरी तरह से सुन्न हो जाना और कुछ भी महसूस न कर पाना।
इसके अलावा हमला और हिंसा झेलने वाली महिलाओं को कई बार खुद से घृणा, शर्मिंदगी और अपराधबोध भी महसूस होने लगता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा यह हिंसा वैश्विक स्तर पर एक तिहाई से अधिक महिलाओं को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित करने वाली एक सार्वजनिक स्वास्थ्य महामारी के रूप में पहचान की गई है।
विकसित एवं विकासशील देशों में ही नहीं, महिलाओं पर अत्याचार, शोषण, भेदभाव एवं उत्पीड़न विकसित देशों में भी व्याप्त है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में शायद मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जो सबसे ज्यादा उपेक्षित और गैर-ज़रूरी समझा जाता है।
घरेलू हिंसा को अक्सर शारीरिक हिंसा से ही जोड़कर देखा जाता है। लेकिन घरेलू हिंसा शारीरिक होने के साथ-साथ भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक भी होती है।
घरेलू हिंसा एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट है। कुछ आंकड़ों की समीक्षा से पता चलता है कि दुनिया भर में हर तीन में से एक महिला ने किसी न किसी रूप में इस हिंसा का सामना ज़रूर किया होता है। घरेलू हिंसा लगभग सभी उम्र, समुदायों और आर्थिक वर्गों में पाई जाने वाली हिंसा का सबसे ख़तरनाक रूप है।
जिन महिलाओं ने घरेलू हिंसा का अनुभव किया है, उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद, चिंता और आत्महत्या से मौत के विचारों सहित कई मानसिक परेशानियों से पीड़ित पाया गया है।
लेकिन गृहस्थी एवं परिवार को संभालने की जिम्मेदारी के बीच ये महिलाएं इन परेशानियों को नज़रअंदाज़ करते हुए, इन्हें जीवन का एक सामान्य अंग मान लेती हैं।
क्या आप भी उनमें से एक है? कब तक चुप्पी साधेगीं और उलझी रहेंगी? आपका डर आपको डराता ही रहेगा, जब तक आप खुद हिम्मत नहीं करेंगी आपकी सहायता कोई नहीं कर सकता।
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महिला के खिलाफ हिंसा को लेकर क्या कहते है आंकड़े
विश्व भर में हर तीन में से एक 15 साल से अधिक उम्र की महिला, किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार हुई है। संयुक्त राष्ट्र (यू.एन. वूमेन) के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 74 करोड़ से भी अधिक मामले प्रकाश में आये हैं। वैश्विक स्तर पर ये आँकड़े कोरोना महामारी से भी अधिक भयावह हैं।
इसी रिपोर्ट के अनुसार औसतन 137 महिलाओं की हत्या हर रोज उनके परिवार के लोगों द्वारा की जाती है।
हिंसा का अनुभव करने वाली मात्र 40% से कम महिलाएं किसी भी तरह की मदद लेती हैं।
वैश्विक स्तर मानव तस्करी से पीड़ित लोगों में वयस्क महिलाओं की संख्या लगभग आधी (49%) है।
वर्ष 2019 में 20 से 24 साल की प्रत्येक 5 महिलाओं में से एक महिला की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी गई थी।
यहाँ तक कि 11 से 15 साल की हर तीन में से एक बच्ची स्कूल में अपने सहपाठी द्वारा मारपीट को झेलती है।
उच्च पद पर आसीन महिला भी इस से अछूती नहीं हैं – इंटर पार्लियामेंट्रेयिन यूनियन के 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 65% महिला सांसदों को अपने पुरुष सहकर्मियों से आपत्तिजनक टिप्पणियों का बुरा अनुभव रहा है।
एन सी आर बी के 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कोरोना काल में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आयी है, ये तो सच्चाई से कोसों दूर है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में घरेलू हिंसा के 1.1 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए, सबसे अधिक मामले पश्चिम बंगाल (19,962), उत्तर प्रदेश (14,454) और राजस्थान (13,765) से थे।
महिला अधिकार पर काम करने वाले सिविल सोसाइटी समूह का मानना है कि ये आंकड़े केवल सरकारी रिकॉर्ड में हैं।
राष्ट्रीय महिला आयोग के पास वर्ष 2019 में 19,730 शिकायतें, वर्ष 2020 में 23,722 शिकायतें आयी जबकि 2021 में 27,902 से अधिक शिकायतें दर्ज हुई। कई एनजीओ की मानें तो ग्रामीण इलाके में घरेलू हिंसा के केवल 1-2 % मामले ही दर्ज होते हैं।
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घरेलू हिंसा महिलाओं के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से है हानिकारक
इसमें कोई दो राय हो ही नहीं हो सकती कि शारीरिक और भावनात्मक शोषण घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक होते हैं। इससे महिलाओं में कई तरह की मानसिक बीमारियां विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।
अनेक शोधों से यह संकेत मिलता है कि 54-84% महिलाएं पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) से पीड़ित हैं। 64-77% महिलाएं अवसाद से पीड़ित हैं और 38-75% महिलाएं चिंता से ग्रस्त हैं।
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को अनदेखा करना, गंभीर स्वास्थ्य विकारों में बदल सकता है जो अक्सर शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य को थोड़े या लंबे समय के लिए गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ दिखने वाली महिलाओं में मानसिक परेशानियों के कई लक्षण ऐसे होते हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते और आगे चलकर गंभीर रूप धारण कर लेते हैं।
महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा से जुड़े आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि घरेलू हिंसा के मामले अक्सर या तो दर्ज ही नहीं किए जाते और किए भी जाते हैं तो बहुत कम संख्या में।
हालांकि, ये आंकड़े हिंसा की केवल आधिकारिक रिपोर्टों से संबंधित हैं, वास्तविक आकंड़े इससे कहीं ज्यादा चौंकाने वाले हो सकते हैं।
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होता है कई तरह की मानसिक बीमारियां होने का खतरा
रिसर्च की मानें तो जिन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार या हिंसा होती है, उन्हें बहुत अधिक मनोवैज्ञानिक तकलीफ सहनी पड़ती है। जैसे:
- पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD): किसी तरह की यौन हिंसा या शारीरिक दुर्व्यवहार की वजह से व्यक्ति को ट्रॉमा, खौफनाक या डरावना अनुभव महसूस हो सकता है और इसी वजह से पीटीएसडी की समस्या हो सकती है। पीटीएसडी की वजह से पीड़ित महिला, आसानी से चौंक जाती है, चिंता या तनाव महसूस करती हैं, हर वक्त सतर्क रहती हैं, उन्हें सोने में दिक्कत महसूस होती है या फिर बहुत अधिक गुस्से का अनुभव करती हैं।
इसके अलावा पीटीएसडी की वजह से हिंसा का शिकार महिलाओं को चीजों को याद रखने में परेशानी हो सकती है या फिर उन्हें अपने बारे में या दूसरों के बारे में नकारात्मक विचार भी आ सकते हैं। अगर आपको लगता है कि आपको पीटीएसडी की समस्या है तो मेंटल हेल्थ विशेषज्ञ से अवश्य सलाह लें। रिसर्च की मानें तो किसी भी तरह की हिंसा का शिकार महिलाओं में पीटीएसडी होने का खतरा 7 गुना अधिक होता है।
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- डिप्रेशन: महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से जुड़े अध्ययनों की मानें, तो सामान्य महिलाओं की तुलना में शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा 3 गुना अधिक होता है। हर वक्त उदासी महसूस होना, जो भी हुआ उसके लिए खुद को दोषी मानना इस तरह की चीजें लगातार सोचने की वजह से उनके मन में आत्महत्या का ख्याल भी बार-बार आने लगता है।
- एंजाइटी: आसपास जो भी हो रहा है उससे जुड़ी सामान्य चिंता भी हो सकती है, या फिर अचानक बहुत अधिक डर महसूस हो सकता है, जिसे एंजाइटी अटैक कह सकते हैं। कई बार एंजाइटी की यह समस्या धीरे-धीरे समय के साथ बदतर होने लगती है और व्यक्ति के दैनिक जीवन में भी हस्तक्षेप करने लगती है। इस तरह की चीजों का अनुभव करने पर भी उसे खुद तक सीमित रखने की बजाए डॉक्टर से बात करनी चाहिए वरना, इसका मानसिक सेहत पर गंभीर असर देखने को मिल सकता है।
- मानसिक सेहत पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों की बात करें, तो इसमें लोगों को खुद से दूर कर देना, हर वक्त अकेले रहना, जिन चीजों को करना पहले अच्छा लगता था उसे अब पसंद न करना, किसी पर भी भरोसा न कर पाना और आत्म सम्मान में कमी महसूस करना जैसी चीजें शामिल है।
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महिला के विरुद्ध घरेलू हिंसा के प्रमुख कारण
घरेलू हिंसा शब्द का अर्थ घर के भीतर, अपने पति या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा घर की महिलाओं या अन्य सदस्यों के खिलाफ मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या यौन हिंसा है। इस पर कोई बात नहीं करना चाहता क्योंकि यह हिंसा पितृसत्तात्मक व्यवस्था के मानसिक अनुकूलन के कारण सभी को सामान्य लगती है।
पितृसत्तात्मक मानसिकता घरेलू हिंसा का एक मुख्य कारण है। महिला हिंसा से जुड़ा हर पक्ष अपने आप में महत्वपूर्ण है किन्तु पितृसत्तात्मक समाज की सोच इसे समझते हुए न समझने का नाटक करती है जिससे मनमानी जारी रह सके।
सतयुग से इक्कीसवीं सदी के साइबर युग तक की निरंतर यात्रा में अपनों द्वारा किए गए शारीरिक, मानसिक शोषण, उपेक्षा, तिरस्कार, अवहेलना आदि अत्याचारों को सहने के लिए स्त्रियों को हर राह, हर मोड़ पर अनुत्तरित प्रश्न मिले कि उसकी पहचान क्या है, वो क्यों समाज में दोयम दर्जे की मानी गई है। मौन रह कर त्याग करती रहे तो देवी मानी जाएगी लेकिन जहां अधिकारों की बात की तो देवत्व के सिंहासन से धरती पर पटक दी जाएंगी। सरल भाषा में कहूं तो घरेलू हिंसा का शिकार होगी।
पुरुषों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भी महिलाएं हिंसा का शिकार होती है।
महिलाओं का आर्थिक और शैक्षिक रूप से कमजोर होना भी उनके प्रति बढ़ती हिंसा का एक बड़ा कारण है। हर महिला को अपने कौशल को पहचान अपनी योग्यता को सिद्ध करना होगा। और स्वयं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की ओर चलना होगा।
कहने को तो विश्व के 155 देशों ने घरेलू हिंसा एवं 140 देशों ने कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा के खिलाफ कानून बनाएं हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार की समस्या का संबंध कानून या कानून क्रियान्वयन से नहीं बल्कि समाज में व्याप्त सदियों से चली आ रही मानसिकता से है जहां स्त्रियों को छोटा या दोयम दर्जे का या “भोग “की वस्तु माना जाता है। यह सोच मात्र उचित शिक्षा एवं पारिवारिक संस्कार से ही बदली जा सकती है।
अगर हम आज भी अखबारों की सुर्खियों या खबरें देखें तो एक तिहाई खबरें स्त्रियों पर अत्याचार सम्बंधित होती है, टी.वी पर तो सारी घटनाओं को स्थान भी नहीं मिल पाता।
इन घटनाओं पर कभी-कभार एक आध हफ्ते शोर भी होता है, लोग विरोध प्रकट करते हैं, पर अपराध कम होने का नाम ही नहीं लेते , आखिर क्यों?
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