वैवाहिक बलात्कार आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है। महिलाओं के साथ होने वाले शोषण में मैरिटल रेप भी आता है। लेकिन क्या यह अपराध की श्रेणी में आता है?
सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित महिलाओं के गर्भपात के अधिकार को लेकर अहम फैसला देते हुए मैरिटल रेप का भी जिक्र किया है। वैवाहिक बलात्कार क्या है और इसे अपराध माना जाता है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
वैवाहिक बलात्कार एक ऐसा विषय है जिस पर समाज और कानून शायद ही एकमत हो।
हमारे समाज की बात करें तो दहेज प्रथा का चलन रूका क्या? दहेज प्रथा के खिलाफ तो कानून दशकों से बना हुआ है लेकिन क्या हुआ? वह कानून के पन्नों में ही सिमट कर रह गया। दहेज कानून की धड़ल्ले से धज्जियां उड़ाई जा रही है। कानून की उपस्थिति में भी दहेज लिया जा रहा है और दहेज के लिए बहुओं को जिंदा भी जला दिया जा रहा है।
और बात करें अगर शादीशुदा महिला की तो यौन संबंध पति के साथ बनाना, तो कुछ ग़लत नहीं है न? अब चाहे पति जबरन ही क्यों न हावी हो रहा हो। बेसक उस पुरुष के लिए महिला की इच्छा कोई मायने ही नहीं रखतीं। पत्नी है भई अधिकार है?
क्या आप भी यही सोच रखते हैं? यहां बात महिला के स्वयं के शरीर और इच्छा की है, फिर उसकी सहमति से कोई मतलब भला क्यों नहीं है?
अब अगर वैवाहिक बलात्कार से संबंधित कानून बन भी जाएं, तो भी इतने विवादास्पद कानून को कैसे अपनाएंगे? कहीं ये भी तो कानून के पन्नों में नहीं सिमट कर रह जाएगा?
यह स्त्री की स्वायत्तता और उसकी देह पर उसके संपूर्ण एकाधिकार का मामला है।
आइयें जानते हैं महिला अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार यानी 29 सितंबर को अविवाहित महिलाओं के गर्भपात अधिकार के मामले में सुनवाई करते हुए मैरिटल रेप के बारे में भी जिक्र किया।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि महिला शादीशुदा हो या न हो, उसे अबॉर्शन कराने का अधिकार है। अब महिला की वैवाहिक स्थिति जो भी हो, यानी वह विवाहित हो या अविवाहित व लिविंग में हो उसे सुरक्षित और कानूनी तरीके से अबॉर्शन कराने का अधिकार है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने यह फैसला दिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अब अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक अबॉर्शन का अधिकार मिल गया है।
अबॉर्शन पर फैसला देने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘मैरिटल रेप’ का जिक्र भी किया।
कोर्ट ने कहा कि पति का महिला के साथ जबरन यौन संबंध ‘रेप’ का रूप ले सकता है और रेप की परिभाषा में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत ‘मैरिटल रेप’ शामिल होना चाहिए।
यदि कोई महिला विवाहित होने के बावजूद अपनी मर्जी के बगैर प्रेग्नेंट होती है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के अंतर्गत इसे रेप ही माना जाएगा।
किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति के बगैर छूना और उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है, चाहे ऐसा करने वाला उसका विवाहित पति ही क्यों न हो।
हम गर्भपात के अधिकार को सिर्फ विवाहित महिलाओं तक ही सीमित नहीं रख सकते। प्रेग्नेंट होने पर बच्चे को जन्म देना है या नहीं, यह अधिकार पूरी तरह सिर्फ स्त्री का है।
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मैरिटल रेप को लेकर क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
कोर्ट ने कहा है कि अगर पति के जबरन संबंध बनाने से महिला गर्भवती हुई है तो उसे यह अधिकार होना चाहिए कि 24 हफ्ते तक गर्भपात करवा सके।
पति द्वारा पत्नी से जबरन संबंध बनाने को रेप का दर्जा देते हुए उसे दंडनीय अपराध माना जाए या नहीं, इसे लेकर कोर्ट केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चुका है। मामले पर फरवरी, 2023 में सुनवाई होनी है।
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क्या होता है मैरिटल रेप?
अगर पति अपनी पत्नी के साथ उसकी इच्छा के बिना जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार कहा जाता है। भारत में अब तक मैरिटल रेप अपराध नहीं माना जाता है। अभी मैरिटल रेप को घरेलू हिंसा और यौन शोषण का एक रूप माना जाता है।
2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जा सकता है क्योंकि इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर होगी।
यह आशंका भी जताई गई थी कि मैरिटल रेप को पतियों को सताने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कई संगठन मैरिटल रेप को अपराध करार दिए जाने को लेकर मांग कर रहे हैं।
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मैरिटल रेप को लेकर क्या कहता है कानून?
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 कहती है कि पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने को मैरिटल रेप नहीं माना जा सकता है।
वहीं, धारा 376 के मुताबिक, कुछ परिस्थियों में पत्नी की मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान है।
पत्नी की उम्र अगर 15 वर्ष से कम है और पति उससे जबरन संबंध बनाता है तो ऐसे मामले में उसे सजा दिए जाने का प्रावधान है।
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में महिलाओं को ‘चुनने का अधिकार’ है। गर्भपात कानून के तहत विवाहित और अविवाहित महिला में अंतर नहीं किया जा सकता।
महिला का मैरिटल स्टेटस कुछ भी हो, वो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (MTP) के तहत प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की हकदार है।
साथ ही शादीशुदा महिलाओं को अनुमति देना और अविवाहित महिलाओं को बाहर रखना, असंवैधानिक है।
किसी महिला को अनचाहा गर्भधारण करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है और अगर ऐसा किया जाता है तो ये गरिमा के अधिकार का उल्लंघन होगा।
अब MTP कानून के तहत रेप में मैरिटल रेप को भी शामिल किया जाएगा। मैरिटल रेप से हुई प्रेग्नेंसी भी महिलाओं पर यौन हमला माना जाएगा।
क्यों दिया सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला?
दिल्ली हाईकोर्ट में 25 साल की एक महिला ने याचिका दायर कर अबॉर्शन की अनुमति मांगी थी।
महिला ने कहा था कि वो अपने पार्टनर के साथ सहमति से रह रही थी, लेकिन अब उसने उससे शादी करने से मना कर दिया है और वो बिना शादी किए बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती। क्योंकि वह अकेले बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती।
लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने उस महिला को अबॉर्शन कराने की अनुमति नहीं थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि चूंकि महिला अविवाहित है और अपनी सहमति से गर्भवती हुई है, इसलिए उसे अबॉर्शन कराने की मंजूरी नहीं दी जा सकती। अगर अनुमति देते हैं तो ये बच्चे की हत्या के बराबर होगा।
आपको बता दें, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में 2021 में हुए संशोधन के तहत गर्भपात करवाने की अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया था, लेकिन मौजूदा प्रावधानों के तहत यह अधिकार सिर्फ तलाकशुदा, विधवा महिलाओं के लिए ही है।
अविवाहित व सिंगल महिलाओं के लिए अभी भी इस कानून में गर्भपात की अवधि 20 सप्ताह है, जिसे महिला ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनौती दी।
हाईकोर्ट ने 16 जुलाई को महिला की याचिका खारिज कर दी थी। उस समय वो 20 हफ्ते की गर्भवती थी। बाद में महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
सुप्रीम कोर्ट ने महिला को अबॉर्शन कराने की अनुमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला अविवाहित है, सिर्फ इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से नहीं रोका जा सकता।
उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून में 2021 में संशोधन हुआ था, जिसमें ‘पत्नी’ की जगह ‘पार्टनर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है। संशोधन के बाद विवाहित और अविवाहित महिला में अंतर नहीं रह जाता।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मतलब क्या है क?
भारत में अबॉर्शन को लेकर 1971 से कानून है। तब प्रेग्नेंसी के 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराया जा सकता था।
2021 में इस कानून में संशोधन किया गया था, जिसके बाद इस समय सीमा को 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया था। यानी, प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते तक अबॉर्शन कराया जा सकता है।
हालांकि, MTP कानून में कुछ स्थितियों में 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन कराया जा सकता है। ऐसा उस स्थिति में होगा जब महिला या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा हो, लेकिन इसके लिए मेडिकल बोर्ड की मंजूरी जरूरी होगी।
अब तक 24 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की कानूनी मान्यता थी। लेकिन अविवाहित महिलाओं को अबॉर्शन कराने की अनुमति नहीं मिलती थी।
अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सहमति से संबंध बनाने के बाद कोई महिला गर्भवती होती है तो वो 24 हफ्ते तक अबॉर्शन करवा सकती है, फिर चाहे वो शादीशुदा हो या न हो।
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मैरिटल रेप के मामलों में क्या होगा?
भारत में मैरिटल रेप को लेकर कोई कानून अभी नहीं है। इसे अपराध बनाने की मांग लंबे समय से हो रही है। इस मामले पर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
गर्भपात कानून पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप को भी इस कानून के तहत शामिल किया जाएगा। यानी, अगर कोई महिला मैरिटल रेप का शिकार होती है, तो वो भी इस कानून के तहत अबॉर्शन करवा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने MTP कानून के नियम 3B में मैरिटल रेप को शामिल करने की बात कही है। नियम 3B में उन महिलाओं को रखा गया है जो 20 से 24वें हफ्ते के बीच अबॉर्शन करवा सकतीं हैं।
आईपीसी की धारा 375 के अपवाद की वजह से मैरिटल रेप अपराध नहीं है।
धारा 375 में प्रावधान है कि अगर पत्नी नाबालिग भी है तो भी पति का उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा। भले ही ये संबंध फिर जबरदस्ती या पत्नी की सहमति के बगैर बने हों।
धारा 376 में रेप की सजा के लिए प्रावधान है। इसके तहत दुष्कर्म करने पर 7 साल से लेकर आजीवन कारावास की कैद तक की सजा का प्रावधान है।
लेकिन धारा 375 का अपवाद कहता है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से अधिक है तो जबरदस्ती या बगैर सहमति के बना संबंध रेप नहीं कहलाएगा।
24 देश जिसमें मैरिटल रेप को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है
दुनिया के 150 देशों में रेप कानून के अन्तर्गत मैरिटल रेप अपराध के दायरे में आता है और उसके लिए वैसी ही सजा का प्रावधान है, जो रेप के लिए है।
लेकिन दुनिया के 24 देश ऐसे भी हैं जहां, मैरिटल रेप को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है।
19 देश तो ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप कानून जुर्म नहीं है। जिसमें इथियोपिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, जॉर्डन, म्यांमार, तंजानिया, फिलिस्तीन, श्रीलंका, ईरान, ईराक, सीरिया, जमैका, ओमान, जॉर्डन और नाइजीरिया जैसे देश शामिल हैं। जहां विवाहित संबंधों में पति के द्वारा की जा रही जबरदस्ती किसी यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आती।
दुर्भाग्य से भारत भी दुनिया के उन 19 देशों की सूची में शामिल है।
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