उम्र सिर्फ़ एक संख्या मात्र है यानी Age is just a Number सिर्फ एक कहावत ही नहीं बल्कि हकीकत भी है और ना जाने कितनी ही बार कितने ही लोगों ने इसे सिद्ध भी किया है और समय समय पर अलग अलग गुणों के लोग अपने अपने क्षेत्र में इसे सिद्ध भी करते रहे हैं |
ऐसा ही एक उदाहरण हाल में देखने को मिला जब उम्र की सीमा को लांघ हरियाणा की 94 वर्षीय एक महिला ने 100 मीटर की रेस में अव्वल नंबर पर रहकर सबको चौंका दिया | जाहिर है जो भी वहां मौजूद होगा उनकी इस बहादुरी से सब कोई हैरान रहा होगा | भई जिस उम्र में ज्यादातर लोग रिटायर होकर ईश्वर का नाम जपते दिखते हों वहां कोई दौड़ लगा रहा हो और अव्वल भी आ जाए ऐसा दुर्लभ ही देखने को मिलता है भगवानी देवी जी उन्हीं में से एक हैं |
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब 90 या 100 वर्ष का कोई धावक ना रहा हो जैसे हाल ही में हरियाणा की ही 105 वर्षीय रामबाई जी ने भी 100 मीटर की दौड़ में अपना पहला स्थान हासिल किया |
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भगवानी देवी जी जैसे हौसले मंद महिलाओं की बहादुरी की वजह से ही अन्य बाकी महिलाओं को भी हिम्मत मिलती है और ये भी सिद्ध हो जाता है कि उम्र का कोई भी पड़ाव हो महिलाएं हर पड़ाव पर भारी हैं |
उम्र के इस पड़ाव पर भगवानी देवी जी के बहादुरी भरे इस कारनामे को और विस्तार से जानते हैं, इसी के साथ उनके जीवन पर भी प्रकाश डालते हैं क्या पता उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए हम में से किसी के जीवन के किसी अंधेरे से डूबे हिस्से को प्रकाश मिल जाए |
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कौन हैं भगवानी देवी?
वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 100 मीटर दौड़ में जीत हासिल करने वाली भगवानी देवी जी हरियाणा की रहने वाली हैं और आरंभिक जीवन एक साधारण ग्रहणी के रूप में ही गुजरा | शुरुआती दिनों में वह खेतों में काम किया करती थीं जैसे एक कृषि परिवार के सभी सदस्य करते हैं | और उनके पति के निधन के बाद भगवानी देवी का जीवन परिवार को संभालने में ही गुजरा |
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कैसे हुई दौड़ने की शुरूआत?
भगवानी देवी जी को दौड़ने के लिए प्रेरित करने वाले कोई और नहीं उनके पौत्र श्री विकास डागर रहे हैं | विकास डागर खुद एक अंतरराष्ट्रीय पैरा एथलीट हैं और राजीव गांधी स्पोर्ट्स पुरुस्कार से सम्मानित हो चुके हैं |
भगवानी देवी जी के पौत्र विकास ने उनको इस ओर लाने में प्रेरित किया और उन्होंने ने ही अपनी दादी यानी भगवानी देवी जी को प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए ट्रेनिंग भी कराई | भगवानी देवी लगभग 1 साल से फिनलैंड में होने वाली चैंपियनशिप के लिए तैयारी कर रही थीं | इस उम्र में भी उन्होंने एक एथलीट की तरह ही ट्रेनिंग ली और पूरे अनुशासन के साथ हर दिन सुबह और शाम को रनिंग की प्रैक्टिस किया करती थीं |
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सफलतम प्रयास व सम्मान
यूं तो भगवानी देवी जी ने दौड़ने की शुरूआत एक समय के बाद जरूर की है लेकिन उनका संघर्ष कम नहीं है | जिस उम्र में लोग रिटायर होकर के आराम से एक जगह बैठकर खाते पीते रहना चाहते हैं उस उम्र से भी आगे जाकर भगवानी देवी जी ने वो किया जो बहुत कम लोग करने लिए जिंदा भी नहीं रह पाते |
एथलीट दादी के नाम से मशहूर भगवानी देवी जी ने हाल में ही फिनलैंड के तांपरे आयोजित वर्ल्ड मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 100 मीटर दौड़ में जीत हासिल कर भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया | उन्होंने महज 24.74 सेकंड में 100 मीटर दौड़ पूरी की और नेशनल रिकॉर्ड बनाया | 1 गोल्ड मेडल जीतने के साथ ही इसी चैंपियनशिप में भगवानी देवी जी ने 2 ब्रॉन्ज मेडल भी अपने नाम किए |
इसके अलावा अप्रैल, 2022 में ही भगवानी देवी जी ने दिल्ली में 3 गोल्ड जीते और चेन्नई नेशनल में 3 गोल्ड जीते | यहां तक ही नहीं इसके बाद इंग्लैंड चैंपियनशिप में भी 1 गोल्ड और 2 ब्रॉन्ज मेडल जीतकर पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया |
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इनके बारे में आज के युवाओं को जरूर पढ़ना चाहिए क्योंकि आज के तीव्रता के दौर में युवाओं को कहां तीव्रता दिखानी चाहिए ये समझना होगा और इसे समझने के लिए भगवानी देवी जी जैसे लोगों को देखना होगा और उनके प्रेरित होना होगा कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उन्होंने खुद को ट्रेन किया और अपने इच्छाशक्ति को मजबूत किया और सीखा क्योंकि कोई कितना भी ट्रेनिंग करा दे जब तक खुद की इच्छाशक्ति में मजबूत नहीं तो कोई ताकत आपको जीता नहीं सकती |
हम आशा करते हैं कि युवाओं से लेकर हर उम्र के लोगों को इस कहानी से प्रेरणा मिलेगी |
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