हमारे समाज में पितृसत्ता की जड़ें इतनी मजबूत हैं, जिन्हें उखाड़ फेंकना सरल तो बिल्कुल नहीं है |
अजीब ही रीत है समाज की यहाँ बेटे के जन्म का अर्थ है वंश आगे बढ़ेगा और बेटी के जन्म का अर्थ है कि बस अब तो जोड़ना शुरू कर दो | आम रूप से देखा जाए तो बेटी यानि पराया धन या पराये घर की जिसकी शादी कराना माँ-बाप का इकलौता सपना होता है |
पितृसत्ता की इस सोच ने बेटे को अर्थव्यवस्था का संचालक तो बेटी को मुख्य रूप से घर-आँगन और रसोईघर को संभालने भर का ही काम जानने वाली समझा जाता है |
नारीवाद का सही अर्थ केवल महिला नहीं है, इसका अर्थ है समान अधिकार | नारीवाद वह विचारधारा है जो महिलाओं को उनके सम्मान, स्वावलंबता और आर्थिक मजबूती की पक्षधर है |
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रूढ़िवादी विचारधाराओं का विरोध है, नारीवाद
महिला को कमजोर समझ और उसकी शक्ति को कमतर समझने वाला समाज प्राय: उसको इतना भयभीत कर देता है वो सहमी हुई सी हर अत्याचार को झेलने लगती है |
घरेलू हिंसा के रूप में शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना तो जैसे आम ही है | दहेज जैसी अमानवीय प्रथा ने तो हमारे समाज को खोखला ही कर दिया है | नौकरी के ऊँचे और नीचे पदों के अनुसार लड़कों का एक मूल्य तय है | और कहीं सरकारी नौकरी है तो बस..
एक सवाल है दहेज के भिखारियों से क्या उस लड़के में इतनी क्षमता ही नहीं है कि दहेज के रूपयों के बिना वो अपना जीवन यापन करने में सक्षम हो सके | और अगर ऐसा ही है तो माता-पिता अपनी बेटी को एक अक्षम परिवार में क्यों भेजते है |
इससे तो बेहतर है कि उसे उचित शिक्षा दिलाये और उसे पहले आर्थिक रूप से पूर्ण स्वतंत्र होने दें | जो माँ-बाप अपने बेटे की बोली लगाते हैं फिर ऐसे विचार वाले लोगों को झेलने की कोई जरूरत ही नहीं होगी |
लड़कियाँ और महिलाएं अगर अपनी आर्थिक स्थिति से मजबूत है तो कोई भी पुरूष न तो घरेलू हिंसा जैसा अपराध कर पायेगा और न ही दहेज के नाम पर किसी बेटी को अपमानित होना पड़ेगा या मृत्यु की गोद में सोना पड़ेगा |
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समाज की कुछ विचारधारायें जो पुरूष को समाज का मुख्य भाग और महिला को पुरूषों के अधीन भर ही समझते है | जैसे:-
पत्नी को पती के नियंत्रण में होना जरूरी है वरना अपनी मन मानी करने लगती है | औरतों की लगाम कस के रखनी जरूरी है, नहीं तो वे हद में नहीं रहती | क्या जरूरत है लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने लिखाने की, अगले घर जा कर घर ही तो संभालना है | लड़कियाँ तो घर के अंदर ही भाती है | और भी बहुत कुछ है जो हर दिन लड़कियों को अपने व खुद के घर परिवार में सुनना और झेलना पड़ता है |
नारीवाद एक क्रांति की लहर है जो हर उस विचारधारा का विरोध करती है जो महिलाओं व लड़कियों को समाज, पुरूषों से कमतर और अधीन समझते है |
नारीवाद समाज की हर लैंगिक असमानता का विरोध करती है जो लिंग के आधार पर बाटी गई है |
अब कार्यक्षेत्रों में ही देखे तो कई जगह केवल एक महिला होने के कारण वेतन कम दिया जाता है | हम बात करें महिला मजदूर की तो चाहे वो एक पुरूष जितना ही बोझ क्यों न उठा रही हो फिर भी क्योंकि वो महिला है तो कमजोर ही है और उसकी मेहनत को कम आंका जाता है और उसे एक पुरूष मजदूर के मुकाबले कम मजदूरी दी जाती है |
अगर बुद्धिजीवी कार्यक्षेत्रों के बात की जाएं तो वहाँ भी एक महिला कर्मचारी की तरकी पुरूष कर्मचारियों को कभी पसंद नहीं आती |
आज महिलाओं ने अपनी योग्यता और संघर्ष के दम पर हर बड़े व छोटे क्षेत्र में अपनी जगह बनाई है | ये ही तो नारीवाद का रूप है जो हर दिन महिलाओं को उसके सामर्थ से अवगत करा रहा है |
नारीवाद एक विचारधारा व आन्दोलन है जिसका उद्देश्य सदियों से चले आ रहे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को मुक्ति दिलाना है | नारीवाद एक ऐसा विश्वव्यापी आन्दोलन है जो समकालीन में नारी की अधीनस्थ और शोषित स्थिति को समाप्त करके उन्हें पुरुष के समकक्ष स्थान दिलाने का आकाँक्षी है |
नारीवाद परिणाम है जो सति प्रथा और बाल विवाह जैसी अमानवीय प्रथाओं को समाज में अपनी जड़े न फैलाने दी |
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क्या नारीवाद पुरूष विरोधी है ?
नहीं बिल्कुल भी नहीं नारीवाद किसी को भी कम या ज्यादा दिखाने के लिए नहीं बल्कि यह तो समानता की आवाज है | नारीवाद का मुख्य उद्देश्य समाज की हर गैर-बराबरी सोच को चुनौती दे भेदभाव रहित समाज का विकास करना है |
नारीवाद का मतलब, समानता से है | नारीवाद चुनौती है, जाति, लिंग, वर्ग, धर्म, शारीरिक सक्षमता जैसे सभी छोटे-बड़े आधारों से जिनके आधार पर समाज में ग़ैर-बराबरी की सत्ता का शासन सदियों से चला आ रहा है |
नारीवाद, राजनैतिक, आन्दोलनों, विचारधाराओं और सामाजिक आंदोलनों की एक श्रेणी है | जो राजनीतिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, सामाजिक और लैंगिक समानता को परिभाषित कर, स्थापित करने के एक लक्ष्य को साझा करते हैं | इसमें महिलाओं के लिए पुरुषों के समान शैक्षिक और पेशेवर अवसर स्थापित करना शामिल है |
पुरूषों को नीचा दिखाना या कमतर साबित करना नारीवाद की सोच नहीं है | नारीवाद केवल समान अधिकार और केवल समानता की बात करता है |
महिला की शारीरिक संरचना के आधार पर उसके साथ होने वाले शोषण का विरोधाभास है नारीवाद |
किसी लड़की या महिला के पहनावे के आधार पर भला कोई उन्हें कैसे चरित्रार्थ कर सकता है ? उसके शरीर को केवल भोगने भर के लिए ही क्यों समझा जाता है ? महिला का मतलब केवल वंश आगे ले जाने वाली ही क्यों?
पृथ्वी पर जन्मे हर मनुष्य में अपनी क्षमता, बुद्धिमता, योग्यता होती है तो शारीरिक संरचना व महिला और पुरूष के आधार पर भला वर्गीकृत करने का क्या अर्थ है ?
केवल महिला होने के कारण बुनियादी अधिकारों से वंचित कर देना कहा का न्याय है?
यहाँ बात महिला या पुरूष की नहीं है अपितु समानता और मूल अधिकारों की है |
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क्या नारीवाद, परिवारिक संबंधों को तोड़ने के लिए जिम्मेदार है?
नारीवाद विवाहित संबंधों और परिवार संस्था का विरोधी नहीं है अपितु यह इस बात पर बल देता है कि परिवार का मूल आधार पुरुष के प्रति एक महिला का समर्पण मात्र नहीं है वह तो पुरुष और महिला दोनों का एक-दूसरे के प्रति-समर्पण और पति-पत्नी के बीच समानता का संबंध है |
नारीवाद पुरुष को धिक्कारना या अस्वीकार करना नहीं है बल्कि पूर्ण समानता के आधार पर संबंधों को स्वीकारना है |
नारीवाद विवाह विरोधी या परिवार विरोधी तो नहीं है |
योग्यता और क्षमता की दृष्टि से, महिला किसी भी पुरुष से कम श्रेष्ठ नहीं है तथा उसे आवश्यक शिक्षा, ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रतियोगी जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के समान स्तर पर कार्य करने का अधिकार होना चाहिए |
वह पुरुष से प्रतियोगिता करने की क्षमता रखती है तथा उसे यह अधिकार मिलना ही चाहिए |
महिलाओं की स्थिति में सुधार के मार्ग में प्रमुख बाधक तथ्य है सामाजिक कट्टरता, धार्मिक कट्टरता, और अन्धविश्वास |
कहीं न कहीं समाज में महिलाओं के साथ होने वाली असमानता का कारण वे स्वयं भी है, क्योंकि वो विरोध नहीं करती हैं, न जाने क्यों सहारे की तलाश करती है और खुद पर विश्वास नहीं रखती |
महिलाओं को अपनी क्षमताओं को पहचान अपनी शक्ति पर विश्वास रख समाज में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी लेकिन इसका मतलब पुरुषों को नीचा दिखाना या संबंध तोड़ना नहीं | शिक्षा और ज्ञान से अनेकों अवसर तलाशे जा सकते हैं |
महिलाओं को एक दूसरे का साथ देना होगा | अपनी हर समस्या को खुलकर साझा करना होगा | शिक्षा वह साधन है जिसके बल पर हर स्थिति का सामना दृढ़ता से किया जा सकती |
मेरा अनुरोध है सभी अभिभावकों से कि बेटी को कमजोरी या शक्तिहीन न दर्शाएं उन्हें मजबूत इरादों वाली और साहसी बनने में मदद करें | उन्हें केवल साज-सिंगार नहीं बल्कि स्वयं की रक्षा करने के गुर भी आने चाहिए | और महिलाएं स्वयं को कमजोर समझने के अलावा अपनी शक्तियों को पहचाने और अपने अवसर भी खुद ही तलाशें | अपना सहारा आप खुद है, आपको किसी पर आश्रित होने की कोई आवश्यकता नहि है |
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महिलाओं की स्थिति में सुधार का सबसे बड़ा कारक केवल और केवल शिक्षा और आर्थिक रूप से स्वावलंबन ही हो सकता है |
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