एक दिहाड़ी मजदूर माँ ने 11 जनवरी 2022 को इंडियन फिटनेस फेडेरेशन द्वारा आयोजित की गई दक्षिण भारतीय बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है |
मन में दृढ़ता और पूर्ण विश्वास के साथ किया गया कोई भी काम सफलता की ओर अवश्य बढ़ता है | मुश्किलों से घबरा कर अगर पीछे हट गए तो उस समय के लिए बेशक शांति महसूस हो सकती है परंतु जीवन भर किस्मत को दोषी ठहराने के सिवा ओर कुछ भी वश में नहीं बचेगा |
एक माँ जैसे अपनी संतान के लिए हमेशा पलकें बिछाए रहती है, ठीक वैसे ही अपने उद्देश्य के प्रति सफलता की हर डगर पर पूर्ण जिज्ञासा के साथ अपने काम को निरंतर दृढ़ता से करते रहना ही सफलता की कुँजी है |
जब आपके मन में विश्वास होता है, तब कोई भी अड़चन या विरोध आपकी मंजिल की बाधा कभी नहीं बन सकते | बस दृढ़ आत्मविश्वास और मजबूत हौसलों की नींव का होना सबसे अधिक आवश्यक होता है |
इन्हीं मजबूत नींव से लबालब एक माँ, जिसने बच्चों के लालन-पालन के लिए ईंटे ढोई, पत्थर उठाये, रेत साफ किया, सिमेंट की बोरिया भी बिल्डिंगों की छतों पर पहुँचाई लेकिन कभी हार नहीं मानी | अब बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में सीधा गोल्डपर धावा मार अपनी जीत का बिगुल बजाया |
सपने छोटे-बड़े नहीं होते हौसले और लगन कम ज्यादा हो सकती है जो आपके सपनों की स्थिति का प्रारूप तय करते है |
दिहाड़ी मजदूर औरतें किसी भी प्रकार मेहनत करने में कमतर नहीं होती | वह किसी भी काम में पुरूष से कम नहीं होती | पर जब बात दिहाड़ी की आती है तो उसे कम आंका जाता है, साथ ही जब बात उन्हें काम देने की हो तो भी उनकी योग्यता कम पड़ जाती है |
अजीब बात है पर सच है कि जब बात एक दिन की छुट्टी की हो तो बहानेबाजी कहकर टाल दिया जाता है, जैसे वो तो मनुष्य है ही नहीं| जिस तरह सुख-दुख हर किसी के साथ होते है वैसे ही सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग आवश्यकताएं और परिस्थितियां भी होती है |
एक ग़रीब अपना पेट भरने के लिए तो दूसरी ओर अमीर अपना पेट कम करने के लिए बोझ उठाता है | एक धूप में सड़क व इमारतों में तो दूसरा ए.सी. वाले जिम के अंदर |
लेकिन जब सड़कों व इमारतों मे काम करने वाली एक मजदूर जिम के अंदर जाकर बोझ उठाने लगी तो मिशाल कायम कर दी |
आइये जानते है इस महिला की अदभुत साहस और संघर्ष की कहानी
आज की यह कहानी है तमिलनाडु की रहने वाली 35 वर्षीय एस. संगीता की |
पति के साथ करती थी दिहाड़ी मज़दूरी
एस. संगीता दो बच्चों की माँ है | जो महिलाएं बॉडीबिल्डिंग क्षेत्र में अपना नाम कमा चुकी में हैं, वे चुनौतियों से लड़ कर यहां तक पहुंची है | एस संगीता भी उन्हीं में से एक हैं लेकिन इनकी बात अलग है क्योंकि कुछ लोगों के लिए बॉडीबिल्डिंग जुनून होता है जबकि उनके लिए अपने बच्चों को अच्छी जिंदगी देने का एक रास्ता |
संगीता दिहाड़ी महिला मजदूर थी | जिस दिन काम मिल जाए उस दिन घर में खाना पकता वरना कई रातें भूखें ही गुजारनी पड़ती | संगीता दिहाड़ी काम में उतनी ही मेहनत करती थी जितना कि एक पुरूष लेकिन जहां पुरूषों को काम के 300 रुपए मिलते वहीं महिला होने के कारण उन्हें 200 रुपए की ही दिहाड़ी मिलती |
उनके परिवार में उनसे पहले कभी किसी ने जिम की शक्ल भी नहीं देखी |
वो अपने पति के साथ दिहाड़ी मज़दूरी का काम करती थीं | दोनों बच्चे पढ़ाई कर रहे थे | पति-पत्नी मिलकर किसी तरह गुज़ारा कर लेते थे |
कुछ साल पहले पति की लंबी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई | अब बच्चों के पालन पोषण की सारी जिम्मेदारी उनकी अकेली की बन गई |
नहीं हारी हिम्मत
पति के देहांत के बाद संगीता की मुश्किलें बढ़ गईं | इस दुख के बाद भी उन्होंने मजदूरी जारी रखी जिससे बच्चों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े | लेकिन अब घर में केवल 200 रुपए ही आ रहे थे जो कि पर्याप्त तो बिल्कुल नहीं थे |
वो पुरुषों के बराबर ही काम करती थीं लेकिन लिंगभेद के इस जंजाल के कारण अभी भी दिहाड़ी कम ही थी |
संगीता धीरे-धीरे पुरुषों से भी ज़्यादा वज़न ढोने लगीं | उनकी इस क्षमता को देख कर बाकी लोग हैरान रह गए और अब ठेकेदार को भी उनकी दिहाड़ी बढ़ानी ही पड़ी | लोग उन्हें मज़ाक में बॉडी बिल्डर कहने लगे |
उनके घर के हालात तो सुधरने लगे परंतु चुनौतियां कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी |
दिहाड़ी मज़दूर से क्यों बनीं बॉडीबिल्डर
लोग उन्हें बॉडी बिल्डर कहने लगे थे लेकिन संंगीता को यह समझ ही नहीं आता था कि ये क्या होता है |
वो बेशक नही जानती थीं परंतु उनके बच्चों को जानकारी थी | उन्होंने अपनी मां को यू ट्यूब पर इस बारे में दिखाया | बाद में संगीता ने उन बॉडी बिल्डर्स की नकल करना शुरू कर दिया | अब वो अपने काम पर भी वज़न उठाते वक़्त अपने बॉडी पॉश्चर पर ध्यान देने लगीं |
अपने एक इंटरव्यू में संगीता ने बताया कि उसके बच्चों ने फोन में दिखा कर बताया कि बॉडी बिल्डर क्या करते हैं? मैंने देखा कि वो वजन उठाते हैं, बहुत सारा वजन लेकिन उनका तरीका बहुत अलग है | मैंने भी उन्हें कॉपी करना शुरू किया |
यहां तक कि उन्होंने घर पर ही लकड़ी और ईंटों की मदद से एक जिम तैयार कर लिया | काम के बाद वो यहां अपना अभ्यास करती थीं | दरअसल, उन्हें किसी ने बताया था कि इस काम से अच्छे पैसे कमाए जा सकते हैं | ऐसे में बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उन्होंने सोचा कि अगर वज़न उठाना ही है, तो क्यों न सलीके से उठाएं |
आई बहुत सी चुनौतियां
संगीता की मेहनत धीरे-धीरे अपना रंग दिखा रही थी | अब उन्हें लोगों का सहयोग मिलने लगा, और एक जिम के मालिक ने बिना एक रूपये के वर्कआउट करने के लिये अनुमति दे दी |
लेकिन एक बॉडी बिल्डर बनने के लिए सिर्फ़ जिम ही नहीं, डाइट की भी ज़रूरत पड़ती है |
ट्रेनर ने जो डाइट बताई, उसे ले पाना संगीता के लिए आर्थिक तौर पर देखा जाए तो आसान नहीं था | ऐसे में उन्होंने घर की क्यारी में ही सब्जियां उगाना शुरू किया | घर पर पनीर बनाया, दालें खाना शुरू किया | ये खाना वह अपने बच्चों को भी खिलाती |
केवल 500 रुपये में ही वो अपने लिए पौष्टिक और अपनी उचित डाइट का ध्यान रखती |
लोगों ने कसे तंज
हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं कुछ भी आसानी से कहाँ हासिल कर पाती हैं | आस-पड़ोस के लोग उन पर व्यंग करने लगें |
कोई कहता आदमी बनने की कोशिश कर रही है तो कोई कहता कि पति के जाने के बाद मनमानी कर रही है |
पर सोचने वाली बात है, वो अपना कर्तव्य निभा रही थी | अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की कामना कर रही थी तो क्या तंज कसने वालों को यह नहीं पता था?
अभिभावक के रूप में अपने बच्चों के लिए केवल वही तो है फिर अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए अगर वो कोई कदम उठा रही है तो उसमें उन्हें गलत कहने का अधिकार किसी को कैसे हो सकता है?
बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में जीता गोल्ड
संगीता ने कभी किसी की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया | वो लगातार वर्कआउट करती रहीं |
उसी का परिणाम देखने को मिला 11 जनवरी 2022 को इंडियन फिटनेस फेडेरेशन द्वारा आयोजित की गई दक्षिण भारतीय बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में नौ महिला प्रतियोगियों में से एक संगीता ने जब हिस्सा लिया | वहां देश की नामी महिला बॉडी बिल्डरों से आगे निकलतते हुए पहली ही बार में गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया |
गोल्ड मेडल के अलावा उन्हें सम्मान, अवार्ड और इनाम राशि भी मिली |
अब लोग उनसे प्रशिक्षण लेने लगें हैं | उन्हें अब उम्मीद है कि उनके बच्चों को अच्छी परवरिश मिल सकेगी |
जो लोग उन पर तरह-तरह की टिप्पणीयां करते थे, वो भी उनकी हिम्मत का लोहा मानते है |
संगीता अपने एक इंटरव्यू में कहती हैं कि जब कोई महिला पुरूषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में कदम रखती है तो उनको ऐसा महसूस होता है कि शायद हम उनका वर्चस्व छीनने आए हैं जबकि ऐसा है नहीं | मैंने पूरी जिंदगी वजन उठाया है पर तब मुझे नहीं पता था कि वजन उठाने का एक क्षेत्र ये भी है |
कैसी लगी आपको एस संगीता की यह कहानी? हमें कमेंट बॉक्स में बताना न भूले |
चाह अगर सच्ची हो तो कुछ भी हासिल कर पाना नामुमकिन नही होता | स्वयं पर विश्वास कीजिए और पूरे हौसले और समर्पण के साथ अपने काम में जुट जाइये |
Jagdisha ऐसी मातृशक्ति के संघर्ष और दृढ़ इरादो को सलाम करते हैं | आप आगे भी मील के पत्थर स्थापित करें |
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