एक ऐसी लेखिका, जिन्होंने अपनी कलम की मदद से समाज के दबे-कुचले और शोषित वर्ग की पीड़ा को बखूबी स्पष्ट किया |
हिन्दी साहित्य को अलंकृत करने में भारतीय साहित्यकारो ने अहम भूमिका निभाई है | सूरदास, रविदास और तुलसीदास जैसे साहित्यकारो ने हिन्दी के माध्यम से ही भक्ति रस को परिचित कराया |
हिन्दी साहित्यकारो में एक नाम है आधुनिक काल की मीराबाई के नाम से जानी जाने वाली महादेवी वर्मा |
उदारता, करुणा, सात्विकता, आधुनिक बौद्धिकता, गंभीरता और सरलता महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व में समाविष्ट थी |
महादेवी जी हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं |
महादेवी जी ने अपने संवेदनशील लेखन के माध्यम से महिलाओं के साथ होने वाले समाजिक भेदभाव और रूढ़िवादिता पर भी गहन प्रहार किया |
उन्होंने मन की पीड़ा को प्रेम-भाव से अलंकृत कर इस प्रकार से श्रृंगार किया कि “दीपशिखा” में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुईं | उन्होंने न केवल पाठकों को ही बल्कि समीक्षकों के मस्तिष्क पर भी गहरी छाप छोड़ी |
कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहकर संबोधित किया था |
भारत की स्वतंत्रता से पूर्व पैदा हुई महादेवी वर्मा ने पितृसत्ता समाज की कड़ी निंदा की | उन्होंने साहित्य की शक्ति से समाज में नई चेतना और ऊर्जा का सृजन किया |
उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी | इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के शब्दों को चुनकर हिन्दी का रूप दिया |
संगीत की ज्ञाता होने के कारण उनके गीतों में श्रुतिमधुरता और तीखे शब्दों की व्यंजना शैली अत्यंत दुर्लभ है |
7 साल की उम्र से ही महादेवी जी ने लिखना आरंभ कर दिया था | लेकिन उनकी इस प्रतिभा का किसी को अभी पता नही था | इलाहाबाद में स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी और रूम मेट सुभद्रा कुमारी चौहान उन दिनों स्कूल में अपनी लेखनी के लिए प्रसिद्ध थीं | उन्होंने ही महादेवी जी को चोरी-छुपे लिखते देख लिया था और सबको इसके बारे में बताया | सुभद्रा कुमारी चौहान ही पहली थी जो, महादेवी जी को हमेशा उनकी लेखनी के लिए प्रशंसित करती थीं | कक्षा के बाद खाली समय में वे दोनों साथ बैठकर कविताएं लिखा करती थीं | महादेवी वर्मा जी फिर सिद्धहस्त हो खुले रूप में लिखने लगीं |
उन्होंने अध्यापन से व्यवसायिक जीवन की शुरूआत की और अन्तिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं | 9 साल की उम में उनका बाल-विवाह हुआ था लेकिन जीवन भर उन्होंने तपस्वी की भाँति जीवन जिया |
विशिष्ट कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं |
तो आइये जानते हैं अपने युग की सर्वश्रेष्ठ लेखिका महादेवी वर्मा के बारे में…
जीवनी
महादेवी जी का जन्म 26 मार्च 1907 को फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ | उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों यानी माना जाता है सात पीढ़ियों के बाद पहली बार किसी बेटी का जन्म हुआ था | खुशी से उनके दादा जी बाबू बाँके विहारी जी झूम उठे और उन्हें घर की देवी मानते हुए उनका नाम महादेवी रख दिया | उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे | उनकी माँ हेमरानी देवी एक गृहणी थीं |
उनकी माँ बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं | वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का गायन करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी | उनके पिता उनकी माँ से बिल्कुल विपरीत विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, माँसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे |
महादेवी जी अपने माता-पिता की पहली संतान थी, उनके दो भाई और एक बहन थी |
महादेवी जी को बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में रुझान था | वे एक मेधावी छात्रा थी | महादेवी जी ने अपनी शुरूआती शिक्षा इन्दौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ की साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही |
सिर्फ़ सात साल की उम्र से ही उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था |
उन दिनों के प्रचलन के अनुसार महादेवी जी का विवाह भी छोटी उम्र में ही हो गया था | 1916 में जब वे केवल 9 साल की उम्र की थी तब उनकी शादी डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा से हुई, जो उस समय 10वीं कक्षा में थे |
महादेवी जी को सांसरिक जीवन से कोई लगाव नहीं था इसके विपरित वे तो बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं और स्वयं भी एक बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं |
विवाह के कारण महादेवी जी की शिक्षा कुछ समय के लिए अवरूद्ध हुई क्योंकि उनके ससुर उनकी शिक्षा के विरूद्ध थे | लेकिन जब उनके ससुर का निधन हो गया तो उन्होंने पुनः अपनी शिक्षा की ओर रूख किया |
उन्होंने 1919 में इलाहाबाद में क्रास्थवेट कॉलेज, प्रयागराज में दाखिला लिया और हॉस्टल में ही रहने लगी |
डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा उस समय इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे थे |
महादेवी जी को विवाहित जीवन से विरक्ति थी | कारण कुछ भी रहा हो पर उन्हें उनके पति स्वरूप नारायण वर्मा से कोई बैर नहीं था | सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बन्ध मधुर ही रहे | दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था | कभी-कभी डॉ. वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे | डॉ. वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया |
1920 में वे प्रथम श्रेणी से पास हुईं और छात्रवृत्ति प्राप्त की | 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में भी प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया | यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की | कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई | वो ही वह पहली व्यक्ति थी, जिन्होंने उनके इस हुनर के बारे में सबको परिचित कराया | वे महादेवी जी का हाथ पकड़ कर मित्रों के बीच में ले गई और कहा ― “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं” |
1925 में उन्होंने 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, अब वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं |
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था | 1928 में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा पास की | 1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की | साथ ही तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे |
बी.ए. में उनका एक विषय दर्शन भी था इसलिए उन्होंने भारतीय दर्शन का गंभीर अध्ययन किया |
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाध्यापिका के तौर पर कार्यभार संभाला और आजीवन उसी पद पर रही |
महादेवी जी का जीवन एक संन्यासिनी जैसा था | उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहने, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा |1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं |
महादेवी जी एक उच्च विचारों वाली महिला थीं, वे मानती थी कि महिलाएं कोई वस्तु या भोग का सामान नहीं होती |
वह शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के पैरों में बंधी बेड़ियों को तोड़ने में उनकी मदद करना चाहती थीं | इसके लिए उन्होंने इलाहाबाद में मनीला पीठ नामक एक महिला विद्यालय की स्थापना की |
इस स्कूल में हर तरह और हर जाति की महिलाएं शिक्षा ग्रहण कर सकती थी | यहां विधवा महिलाओं से लेकर दलित वर्ग की महिलाएं भी पढ़ने आती थीं |
महादेवी जी को सभी महिलाएं बड़ी गुरुजी’ बुलाती थीं |
1923 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला |
1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए | 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियो को विस्तार रूप में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया |
उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये | इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं, जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं |
1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पं० इलाचंद्र जोशी के सहयोग से इसका सम्पादन संभाला | साथ ही उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव भी रखी |
पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में सम्पन्न हुआ | वे हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद की जननी भी मानी जाती हैं |
महादेवी जी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं | लेकिन महात्मा गांधी से प्रभावित हो उन्होंने जनसेवा का व्रत ले झूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया |
महादेवी जी को एक काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था, जिसे उन्होंने गाँधीजी को दे दिया था |
1936 में उन्होंने रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में एक बंगला बनवाया था | जिसका नाम उन्होंने मीरा मन्दिर रखा | जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए कार्य करती रहीं | विशेष रूप से उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
अब उनके उस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है |
श्रृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निन्दा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज-सुधारक भी कहा गया है |
उनके सम्पूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना कहीं नहीं दिखती बल्कि रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अनन्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव प्रतिबिंबित होता है |
70 के दशक में उन्हें उत्तर प्रदेश के हिंदी संस्थान ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए 1 लाख रूपए के पुरस्कार की घोषणा की थी | जो उन्हें इंदिरा गांधी के हाथों से मिलना था | पहले तो उन्होंने इस पुरस्कार को इमरजेंसी के चलते लेने से मना कर दिया था | हालांकि, बाद में स्वीकार कर लिया था |
महादेवी जी मार्ग्रेट थ्रैचर द्वारा जनपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुईं थी |
उन्हें यामा समेत साल 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया था | यह सम्मान पाने वाली वह पहली महिला थीं |
हिंदी साहित्य सम्मलेन की ओर से उन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ सम्मान भी प्राप्त हुआ |
27 अप्रैल 1982 को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया था |
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में ही व्यतीत किया | 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में रात 9 बजकर 30 मिनट पर उन्होंने हमेशा के लिए आंखें मूंद ली |
2007 में उनका जन्मदिवस शताब्दी के रूप में मनाया गया | गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष 2018 में गूगल डूडल के माध्यम उनका जन्मदिवस मनाया |
महादेवी जी के लेखन की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती | ऐसी महान लेखिका शायद ही कभी कोई हो |
महादेवी वर्मा की कुछ प्रमुख रचनाएं…
कविता संग्रह
महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह हैं- नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित 1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990)
संकलन
इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं, जिनमें उपर्युक्त रचनाओं में से चुने हुए गीत संकलित किये गये हैं, जैसे आत्मिका, निरंतरा, परिक्रमा, सन्धिनी(1965), यामा(1936), गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका, हिमालय(1963) और आधुनिक कवि महादेवी आदि |
रेखाचित्र
अतीत के चलचित्र (1941) और स्मृति की रेखाएं (1943)
संस्मरण
पथ के साथी (1956), मेरा परिवार (1972), स्मृतिचित्र (1973) और संस्मरण (1983)
निबंध संग्रह
श्रृंखला की कड़ियाँ (1942), विवेचनात्मक गद्य (1942), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (1962), संकल्पिता(1969)
क्षणदा (1956)ललित निबंधों का संग्रह है |
उन्होंने बाल साहित्य की रचना भी की है |
महादेवी की प्रमुख गद्य रचनाएं
महादेवी जी ने लिखा है : ‘कला के पारस का स्पर्श पा लेने वाले का कलाकार के अतिरिक्त कोई नाम नहीं, साधक के अतिरिक्त कोई वर्ग नहीं, सत्य के अतिरिक्त कोई पूँजी नहीं, भाव-सौंदर्य के अतिरिक्त कोई व्यापार नहीं और कल्याण के अतिरिक्त कोई लाभ नहीं |’
महादेवी जी विशेषता तो यह है कि न तो उन्होंने उपन्यास लिखा, न कहानी, न ही नाटक फिर भी श्रेष्ठ गद्यकार हैं |
बिना कल्पनाश्रित काव्य रूपों का सहारा लिए कोई रचनाकार गद्य में इतना कुछ अर्जित कर सकता है, यह महादेवी जी को पढ़कर ही जाना जा सकता है |
पुरस्कार व सम्मान
- 1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
- स्वतंत्रता के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या बनी |
- 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक योगदान के लिये ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया |
- 1971 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला बनी |
- 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार ने ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया
- 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया |
- उन्हें ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ और ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित हुईं |
- वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं |
- 1968 में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’ पर एक बांग्ला फ़िल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर नीचै |
- 16 सितंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में 2 रुपये का एक युगल टिकट भी जारी किया है |
Jagdisha का महान हिन्दी साहित्यकार को कोटी-कोटी नमन |
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