1992 तक, भारतीय वायु सेना (IAF) ने महिला पायलटों को एकल उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी गई थी | रक्षा बलों में अब हम जो लिंग-अनुकूल समीकरण देखते हैं, वह बहुत पुराना नही बस कुछ दसको पहला ही है | रक्षा बलों में केवल प्रमुख रूप से पुरुष अधिकारी शामिल थे |
1992 में, रक्षा मंत्रालय ने अपनी नीतियों में एक क्रांतिकारी बदलाव किया | अब रक्षा मंत्रालय ने महिलाओं को पायलट के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया |
वायुसेना ने महिला वायुचालकों के लिए 8 रिक्तियां (Vacancy) निकालीं | इस पद के लिए उत्साहित 20,000 महिलाओं ने लिखित परीक्षा दी और इनमें से 500 ने प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की |
इन महिलाओं की मैसूर, देहरादून, वाराणसी सेंटर में फिर से लिखित परीक्षा हुई | जिसमे 13 महिलाएं पास हुईं | इन महिलाओं की एक हफ़्ते की फ़िज़िकल ट्रेनिंग हुई |
इन महिलाओं में से एक थीं, हरिता कौर देओल |
इस तरह 1993 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरिता कौर देओल शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में वायु सेना में शामिल पहली सात महिला उम्मीदवारों में से एक बनीं |
उन्हें अन्य महिला उम्मीदवारों के साथ वायु सेना अकादमी, डुंडीगल (कर्नाटक) में प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया गया | उन्होंने येलहंका वायु सेना स्टेशन में एयर लिफ्ट फोर्स ट्रेनिंग एस्टैब्लिशमेंट (ALFTE) में आगे का प्रशिक्षण प्राप्त किया |
अपने प्रशिक्षण के बाद, हरिता कौर देओल ने भारतीय महिलाओं के लिए एक नए उज्वल भविष्य का निमार्ण कर दिया | उन्होंने न केवल महिलाओं के लिए रास्ते बनाएं बल्कि भारतीय वायुसेना का इतिहास ही बदल दिया |
2 सितंबर 1994 को, 22 साल की इस युवा अधिकारी ने एवरो एचएस-748 में अकेले 10,00 फीट की ऊँचाई तक उड़ान भरी |
साहसी हरिता कौर देओल ने अपनी पहली उड़ान में लगभग आधे घंटे तक हवाओं से बाते करते हुए विमान को कुशलता से संचालित किया | एटीसी में उसकी कड़ी निगरानी की जा रही थी, लेकिन उन्होंने अपने सहयोगियों और वरिष्ठों को चिंता का कोई कारण नहीं दिया |
वह आत्मविश्वास से भरी, मानो आसमान में ही महिलाओं के लिए इतिहास लिख रही हो |
वैसे तो वायु सेना के विमान में को-पायलट की उपस्थिति ज्यादातर देखने को मिलती है, लेकिन यह पहला गौरवपूर्ण क्षण था, जब हरिता कौर देओल, अकेले ही सेना के विमान को इतनी ऊँचाई पर उड़ाने में कामयाब रही थीं |
एयर कमोडोर पीआर कुमार, एयर लिफ्ट फोर्स ट्रेनिंग एस्टैब्लिशमेंट (एएलएफटीई) में एयर-ऑफिसर-इन कमांड, पर हरिता कौर देओल की उड़ान की जांच की जिम्मेदारी थी |
वह उनके प्रदर्शन से पूरी तरह प्रभावित हुए और उनकी प्रशंसा करने से खुद को रोक न सके | एक रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा था “वह आश्वस्त थी और विमान पूर्ण नियंत्रण में था | उनका टेक-ऑफ और लैंडिंग शानदार था | उन्होंने जिस स्तर से उड़ान भरी वह मेरी अपेक्षा से कहीं अधिक था | लड़कियां अभिव्यक्ति में ज्यादा स्पष्ट होती हैं |”
यह न केवल हरिता कौर देओल की जिंदगी का सबसे यादगार पल था बल्कि उनके ट्रेनिंग ऑफ़िसर के लिए भी गर्व का क्षण था | उनके ट्रेनिंग ऑफ़िसर का कहना था कि हरिता, पुरुष पायलट से भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं |
उड़ान सफल होने के बाद, हरिता कौर देओल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था,
“मैं ख़ुश हूं कि मैंने अकेले विमान उड़ाया और अपने प्रशिक्षक की उम्मीदों पर खरी उतरी | पहले मैं अपने माता-पिता से बात करूंगी और शायद आज की जीत का जश्न अपने दोस्तों के साथ सप्ताहांत में मनाऊं |“
हरिता कौर देओल की वह कोई छोटी-सी उपलब्धि तो बिल्कुल नहीं थी | उन्होंने वो कर दिखाया था जो पहले कभी किसी ने न देखा और न ही सोचा था |
इस एकल उड़ान के साथ, उन्होंने भारतीय वायुसेना और बाकी दुनिया को साबित कर दिया था कि अगर उचित अवसर दिया जाए तो महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं |
महिलाएं हर रोज मील के पत्थर बना रही है लेकिन यह एक कड़वा सच है कि आज भी हमारा देश रूढिवादी सोच की बेड़ियों से जकड़ा हुआ है | समाज और संस्कृति का हवाला दे कर उनके सपनों को आज भी छीनने की कोशिश की जाती है | महिलाओं को हर क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ता है | प्रतिभा होने के बाद भी लिंगभेद का शिकार होना पड़ता है | समय के साथ-साथ हालात जरूर बदल रहे हैं, लेकिन महिलाओं का संघर्ष चल ही रहा है |
जन्म और प्रारंभिक जीवन
हरिता कौर देओल का जन्म 10 नवंबर 1971 को चंडीगढ़ के एक सिख परिवार में हुआ था | वह अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थीं | उनके पिता आर एस देओल, भारतीय सेना में कर्नल थे |
वह बचपन से ही भारतीय वायु सेना का हिस्सा बनना चाहती थी | उनकी स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई पंजाब में ही हुई |
हरिता कौर देओल 1993 में भारतीय वायु सेना के साथ 7 महिला शॉर्ट सर्विस कमिशन ऑफ़िसर्स से जुड़ीं और 1994 में अकेले वायुसेना विमान की उड़ान भर इतिहास रच दिया |
मृत्यु
साल 1992 में हरिता कौर देओल ने भारतीय वायु सेना में अपने करियर की शुरुआत की थी | 1994 में इतिहास रचने के दो साल बाद ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया |
हरिता कौर देओल सहित 24 वायुकर्मी 24 दिसंबर 1996 को चेन्नई से हैदराबाद के लिए अपनी एक उड़ान पर थे |
25 वर्षीय फ्लाइट लेफ्टिनेंट हरिता कौर एक सह-पायलट के रूप में एवरो एचएस-748 विमान उड़ा रही थीं | विमान तकनीकी खराबी के कारण आंध्र प्रदेश, नेल्लोर के बुक्कापुरम गांव के पास यह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसमें विस्फोट हो गया | इस दुर्घटना में उसमें सवार सभी वायुसेना कर्मियों की जान चली गई |
आज भले ही वो हमारे बीच नही हैं, परंतु उनकी कहानी सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है |
आपकी उड़ान की कोई ओर भला कैसे सीमा निर्धारित कर सकता है | अपनी उड़ान की ऊँचाई को स्वयं निर्धारित कीजिए |
क्या तो संघर्ष करो या मजबूरियों का ढोल पीट कर अन्यों को दोषी करार दे दो | लेकिन क्या पूरी तरह अपराधी आपको रोकने वाले है? क्या आपने आपनी कोशिश की?
संघर्ष से डर कर तो मंजिल नही पाई जा सकती | तो आत्मविश्वास के साथ अपनी पूरी शक्ति लगा दीजिए |
साहसी हरिता कौर देओल की प्रेरणादायक कहानी आपको कैसी लगी? हमे कमेंट बॉक्स में जरूर बतायें |
Jagdisha का इस बहादुर लड़की को कोटी-कोटी नमन |
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