अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाली वीरांगमई रानी वेलु नचीयार का गौरवमयी जीवन परिचय | Rani Velu Nachiyar Biography in Hindi

आपने रानी लक्ष्मी बाई की वीरता और अदम्य साहस की कहानियां तो बहुत सुनी होगी | लेकिन क्या आप शिवगंंगा की रानी वेलू नचीयार की अंग्रेजों से लोहा लेने वाली कहानी जानते है?

रानी वेलु नचीयार का नाम भी शायद आप न पहचानते हो, लेकिन रानी लक्ष्मी बाई के जन्म से भी बहुत पहले साल 1780 में वे अंग्रेजी औपनिवेशिक शक्ति को युद्ध में धूल चटा चुकी है | उन्हें तमिलनाडु में वीरंमगई नाम से भी जाना जाता है |

इनकी पूरी कहानी के बारे में जानने से पहले मेरा आप सभी से यह सवाल जरूर है कि महिलाओं के लिये अबला शब्द आया ही क्यों?

वीरांगनाओं ने अपने साहस, वीरता और शक्ति का परिचय तो समय-समय पर दिया ही है | फिर शारिरीक संरचना को आधार बना महिला शक्तिहीन कैसे हो सकती है | महिलाएं स्वयं भी इसकी जिम्मेदार है, वो अपनी शक्ति को कमतर समझती है | महिलाएं सिर्फ साज-सिंगार और खुबसूरती का प्रतिक नही है |

वीरांगना वेलु नचीयार नारी शक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है | पति के युद्ध में मारे जाने के बाद न केवल उन्होंने अपने अपने राज्य को वापिस लिया अपितु 1780 से 1790 तक शासन भी किया |

जन्म और प्रारंभिक जीवन

वेलु नचीयार का जन्म 3 जनवरी, 1730 में रामनाथपुरम के राजपरिवार में हुआ था | वे पिता राजा चेल्लामुतहू विजयाराघुनाथ सेतुपति तथा मां रानी सक्धिममुथल सेतुपति की इकलौती संतान थी | 

उनका लालन-पालन एक राजकुमार की तरह हुआ | बचपन से ही उन्होंने आधारभूत शिक्षा के साथ हथियार चलाने भी सीखे | वे तलवारबाजी, तीरंदाजी, घुड़सवारी, हंसिया फेंकने, भाला फेंकने और लाठी चलाने में कौशल हो गई थीं | 

अस्त्र-शस्त्र के साथ-साथ उन्होंने विभिन्न भाषाओं जैसे फ्रेंच, उर्दू, मलयालम, तेलुगू और अंग्रेजी का भी ज्ञान प्राप्त किया | साथ ही उन्होंने तमिल ग्रंथों का भी अध्ययन किया |

साल 1746 में 16 वर्ष की उम्र में उनके माता-पिता ने उनका विवाह  शिवगंगा के राजा शशिवर्मा थेवर के बेटे मुथुवादुग्नाथापेरिया उदायियाथेवर के साथ कर दिया | बाद में मुथुवादुग्नाथापेरिया उदायियाथेवर शिवगंगा के शासक बने | वेलु नचियार अपने पति की मित्र और सलाहकार भी थीं | उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम वेल्लाची नचियार रखा गया | 

दो दशको तक कुशल और शांतिपूर्व शासन करने के पश्चात अंग्रेजों की कुदृष्टि उनके राज्य पर पड़ी | उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी दक्षिण में अपनी जड़े मजबूत करने में लगी हुई थी |

शिवगंगा जिले के कलैयार कोविल कस्बे में महाकालेश्वर का एक प्राचीन मंदिर था | जून 1772 में राजा मुथुवादुग्नाथापेरिया उदायियाथेवर अपनी दूसरी पत्नी गोरी नाचियार के साथ महाकालेश्वर के दर्शन के लिए गए हुए थे | उस दौरान आरकोट के नवाब और अंग्रेजी सेना ने मिलकर शिवगंगा पर आक्रमण कर दिया |

आरकोट के नवाब और अंग्रेजों की मिलीभगत से राजा थेवर पहले से ही सचेत थे | उन्होंने रानी वेलु नाचियार के साथ कुछ सुरक्षा प्रबंध कर रखे थे, जैसे शिवगंगा के चारो ओर कंटीली झाड़ियों में जगह-जगह खाइया खुदवा दी और आशंकित स्थानों पर सैनिक चौकिया तैयार की थी |

लेकिन उनकी कोई भी पूर्व तैयारी कारगार न हुई और 21 जून, 1772 को कर्नल जोसेफ स्मिथ पूरब तथा कैप्टन बिंजोर पश्चिम से आगे बढ़े | शिवगंगा को घेरते हुए उन्होंने कीरानूर और शोलापुरम चौकियों पर अपना कब्जा कर लिया | 25 जून, 1772 को राजा थेवर का युद्ध आरकोट के नवाब और अंग्रेजी सेना के साथ हुआ | इस भीषण युद्ध में राजा थेवर और बहुत से सैनिको को अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा | राजा थेवर के साथ-साथ उनकी पत्नी गोरी नचियार को भी अंग्रेजों ने मोत के घाट उतार दिया |

राजा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने अपनी क्रूरता का परिचय देते हुए, सैकड़ों स्त्री-पुरुष, बूढ़ो और बच्चों की भी जान ले ली |

रानी वेलु नचियार को बचने की कोई संभावना नजर न आई इसलिए वे अपनी बेटी को साथ ले शिवगंगा दुर्ग को छोड़ बच निकलने में कामयाब हुई | 

कैसे लिया अंग्रेजों से लोहा?

शिवगंगा से निकलकर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में रानी वेलु नचियार ने भटकते हुए अरियाकुरिची कोविल में शरण ली | अंग्रेजी सैनिक भी लगातार उनका पीछा कर रहे थे | अंग्रेजी सैनिकों ने एक महिला उदायल से रानी वेलु नाचियार की जानकारी मांगी | लेकिन उस बहादुर महिला ने साफ मना कर दिया और अकेली ही अंग्रेजों पर टूट पड़ी | वही क्रूर सैनिकों ने उदायल को मार डाला |

आरकोट के नवाब और अंग्रेजी सेना से छुपती-छुपाती रानी वेलु नचियार, अपनी बेटी और अपने कुछ अंगरक्षको के साथ तमिलनाडु के डिंडीगुल के निकट विरुपाक्षी आ गई | वहाँ के राजा गोपाल नायक्कर ने उन्हें संरक्षण दिया | विश्वास पात्र सेनानायक वेल्लू मारूतू और चिन्ना मारूतू भी अपनी रानी के संरक्षण स्थान पर आ पहुँचे | 

अब रानी वेलु नचियार किसी भी तरह अंग्रेजों को अपनी मिट्टी से खदेड़ने के लिए उतारू थी | सुरक्षा मापदंड के अनुसार रानी डिंडीगुल रहने लगी |

उसी बीच रानी वेलु नचियार ने डिंडीगुल में मैसूर के बहादुर शासक हैदर अली से भेट की | रानी ने उर्दू में स्पष्ट बात करते हुए हैदर अली को चौका दिया | हैदर अली ने रानी वेलु नचियार को अंग्रेजों के साथ युद्ध में हर संभव सहायता करने का वचन दिया | साथ ही हैदर अली ने 400 पाउंड मासिक आर्थिक सहायता, 5,000 पैदल सेना, इतने ही घुड़सवार सैनिक और भारी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र भी प्रदान किए |

हैदर अली का समर्थन प्राप्त कर रानी वेलु नचियार ने अपनी सेना का गठन किया | साथ ही उन्होंने एक महिलाओं की सेना भी बनाई | महिला सेना का नाम बहादुर महिला उदायल के नाम पर उदायल नारी सेना रखा |

रानी वेलु नचियार महिला सैनिकों को स्वयं प्रशिक्षण देती थी | अपनी सबसे भरोसेमंद, बहादुर और चतुर महिला कुयिली को उन्होंने महिला सेना का सेनापति नियुक्त किया था | आगे चलकर कुयिली ने स्वयं का बलिदान दे कर शिलगंगा के युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया |

कुयिली अरुण्थथियार नामक दलित जाति में जन्मी थी | इस जाति के लोग आमतौर पर मेहनत-मजदूरी और चमड़े का काम करते हैं | कुयिली के पिता पेरियामुथन और माँ राकू दोनों ही खेतिहर मजदूर थे | एक बार कुयिली की माँ अपने खेत को बचाने के लिए जंगली सांड़ से भिड़ गई थीं | जिसके कारण उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी | उसके बाद कुयिली के पिता उन्हें लेकर शिवगंगा चले गये, जहाँ वह मोची का काम करके अपना जीवनयापन करने लगे | कुयिली अपने पिता से अपनी माँ की बहादुरी के किस्से सुन कर बड़ी हुई थी |

जिस दौरान रानी वेलु नचियार सेना-संगठन में जुटी थी,  पेरियामुथुन भी उनकी सेना में शामिल हो गये | रानी वेलु नचियार ने उन्हें गुप्तचर का काम दिया | इसी बीच कुयिली और रानी का परिचय हुआ |

लगभग 8 वर्षों तक रानी वलु नचियार अंग्रेजों को उनकी क्रूरता का सबक देने के लिये सेना संगठन की तैयारियों में जुटी रही |

साल 1780 में वह अवसर आ गया था, जब रानी वलु नचियार से अंग्रेजों को मुँह की खानी थी |

शिवगंगा दुर्ग के भीतर देवी राजराजेश्वरी का मंदिर था, जिसमें प्रतिवर्ष दशहरे का उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता था | देवी-पूजन में महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल होती थीं | यही रानी वेलु नचियार के लिये अवसर था, जिसका उन्होंने बखूबी लाभ उठाया | 

रानी वेलु नचियार को अंग्रेज़ों के शास्त्रागार का पता लग गया था | रानी ने इतिहास में अंकित पहला आत्मघाती बम हमला करने की योजना बनाई | रानी की सेना की सेनापति कुयिली इस योजना के लिए स्वयं का बलिदान देने के लिए आगे बढ़ीं |

मंदिर के पास ही अंग्रेजों का शस्त्रागार होने के कारण पुरुषों को उस उत्सव में शामिल होने की अनुमति नहीं थी | दशहरे के दिन जैसे ही शिवगंगा दुर्ग का मुख्य द्वार खुला, कुयिली के साथ उदायल नारी सेना की वीरांगनाएं भी दुर्ग में प्रवेश कर गईं | वे सब साधारण वस्त्रों में थीं, फूलों और फलों की टोकरियों में उन्होंने अपने हथियार छिपाए हुए थे |

अवसर देख उदायल नारी सेना ने हमला बोल दिया | मंदिर में दीपक जलाने के लिए घी का व्यवस्था थी | भीड़भाड़ का फायदा उठाकर कुयिली ने घी को अपने ऊपर उंडेल लिया | घी से तर-बतर कुयिली शस्त्रागार की ओर बढ़ गई और भीतर जाते ही उन्होंने अपने कपड़ों में आग लगा ली | वहां तैनात रक्षक कुछ समझ पाएं उससे पहले ही आग की लपटो ने शास्त्रागार को जला कर नष्ट कर दिया | 

तुरंत ही रानी वेलु नचियार ने अपनी सेना के साथ शिवगंगा किले पर धावा बोल दिया | अंग्रेज उनका युद्ध कौशल और वीरता देख हैरान थे | उनकी युद्ध नीति के सामने अंग्रेज़ी सेना का पार न चला और वो मैदान छोड़कर भागने लगे |

अब शिवगंगा फिर से रानी वेलु नचियार का राज्य हो गया | रानी वेलु नचियार ने युद्ध में आदम्य वीरता का प्रदर्शन करने वाले मारूतू भाईयो, वेल्लू मारूतू को सेनापति और चिन्ना मारूतू को मंत्री पद पर नियुक्त किया |

1780 से 1790 तक रानी वेलु नचियार शिवगंगा की शासक रही | उन्होंने अपनी बेटी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया | हैदर अली के साथ उनके मैत्री संबंध बने रहे | 

25 दिसंबर, 1796 में लंबी बिमारी के कारण रानी का निधन हो गया |

31 दिसंबर 2008 में रानी वेलु नचियार के सम्मान में भारतीय पोस्ट ने एक डाक टिकट जारी किया |

सभी महिलाओं के लिये रानी वेलु नचियार प्रेरणा स्त्रोत है | हार के बैठने से अच्छा है, अवसर तलाश करना और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना | सूझ-बूझ, धैर्य और दृढ़ विश्वास द्वारा कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है | ये आप पर निर्भर करता है, कि असहाय, कमजोर और स्वयं को नाजुक कली के समान समझ कर किसी के अधीन हो जाओ या अपनी शक्ति को मजबूत कर अपनी अलग पहचान बनाओ |

Jagdisha का इस बहादुर वीरांगना को कोटी-कोटी नमन |

 

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