एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय और विश्व की पांचवी महिला पर्वतारोही
उम्मीद और सोचने भर से ऊँचाई नही चूमी जाती, बल्कि वो तो आपके लक्ष्य की ओर बढ़ते निरंतर कदम और हौसले का परिचय होता है |
हमारे सामाज में महिला को कमतर समझा जाता है | इसका ही परिणाम है कि महिलाओं का ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है |
अपने अटूट साहस और दृढ़ विश्वास के कारण ही बछेंद्री पाल का नाम पर्वतारोहण के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है |
जिस गाँव में वह जन्मी थी वहाँ लड़कियों की शिक्षा को ज्यादा अहमियत नही दी जाती थी | बछेंद्री पाल उस गाँव की पहली महिला है, जिन्होंने उच्च स्तर पर शिक्षा लेकर डिग्री प्राप्त की | उनसे पहले उनके गाँव में एक भी लड़की के पास किसी भी विषय में कोई डिग्री नही थी |
खेतिहर परिवार परिवार से आने बछेंद्री पाल ने बी.एड. तक की पढ़ाई पूरी की |
बछेंद्री पाल को आयरण लेडी के नाम से भी जाना जाता है |
बछेंद्री पाल, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला है | साथ ही वे एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही हैं |
वर्तमान में वे इस्पात कंपनी टाटा स्टील में कार्यरत हैं, जहां वह चुने हुए लोगो को रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देती हैं |
बछेंद्री पाल को प्रथम भारतीय पर्वतारोही महिला के साहसिक कार्य के लिए भारतीय पर्वतारोहण संघ ने स्वर्ण पदक प्रदान किया | इन्हें पद्मश्री तथा अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है |
जन्म और प्रारंभिक जीवन
बछेंद्री पाल का जन्म 1954 में नकुरी उत्तरकाशी, उत्तराखंड के एक साधारण परिवार में हुआ | वे अपने माता-पिता की पाँच संतानो में तीसरी संतान हैं | उनकी माता हंसा देवी गृहणी थी | और उनके पिता किशन सिंह किसान थे | उनके पिता भारत से जाकर तिब्बत में सामान (आटा, दाल, चावल इत्यादि) बेचा करते थे | उनकी दो बहने और दो भाई है |
उनके बड़े भाई बचनसिंह सीमा सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर थे | और उनके दूसरे भाई राजेन्द्र सिंह पर्वतारोही है |
उनकी रुचि पर्वतारोहण में बचपन से ही रही | उनके भाई बचनसिंह अपने छोटे भाई राजेन्द्र सिंह को पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करते थे | लेकिन उनकी इस ओर रुचि होने के बाद भी एक लड़की होने के कारण उनके बड़े भाई उन्हें प्रोत्साहित नहीं करते थे | इस प्रकार के भेदभाव से उनका मन व्यथित हो जाता था |
बछेंद्री पाल बहुत ही बातूनी और नटखट स्वभाव की लड़की थीं | कहा जाता है कि एक दिन इनके पिता रामायण पढ़ रहे थे | और वे उन्हें बार-बार परेशान कर रही थी | उनके पिता ने गुस्से में आकर उन्हें पीछे की ओर हल्का सा धकेल दिया | वे पहाड़ी ढलानों से लुढ़कती-लुढ़कती झाड़ियों में जा अटकी | नीचे खाई देखकर वह एक झाड़ी को पकड़कर लटक गयीं | उनके पिता एक पल को घबरा गए, लेकिन उन्हें सुरक्षित निकलवाकर उन्हें बहुत प्यार दिया | इस घटना ने उनके मन में ऊंचाइयों पर चढ़ने की लालसा को जन्म दिया |
बचेंद्री पाल के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की |
शिक्षा
बछेंद्री पाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक सरकारी स्कूल से प्राप्त की | स्कूली शिक्षा के बाद उनके पिता ने आगे की पढ़ाई के लिए मना कर दिया | लेकिन उनकी माँ को उन पर भरोसा था | और उनकी माँ ने उनके पिता को आगे की पढ़ाई करने देने की अनुमति देने के लिए मना लिया |
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर देखकर उन्होंने सिलाई का काम भी शुरू कर दिया | एक सूट-सलवार सिलने पर उस समय उन्हें 5 या 7 रूपये मिलते थे | इससे होने वाली कमाई को वह पर्वतारोहण के लिए आवश्यक उपकरण खरीदने में खर्च किया करती थीं |
उन्होंने बी.ए. में ग्रेजुएशन और संस्कृत भाषा में एम.ए में पोस्ट ग्रेजुएशन किया | साथ ही उन्होंने बी.एड की डिग्री भी हासिल की | साथ-साथ उन्होंने खेलकूद में भी कई पुरस्कार प्राप्त किये थे |
मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोज़गार नहीं मिला | जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था | इस से बछेंद्री पाल को निराशा हुई | 1981 में उन्होंने अपनी अध्यापक की नौकरी छोड़ दी | और नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग में प्रशिक्षण के लिये आवेदन कर दिया | उस साल की सारी सीटे भर जाने के कारण उन्हें 1982 में पर्वतारोहण के उच्च प्रशिक्षण के लिए चयनित किया गया |
जब उनके पर्वतारोही बनने की बात इनके परिवार वालों और रिश्तेदारों को पता चली थी, तो सब उनके विरुद्ध थे | लेकिन पाल ने अपने परिवार वालों के खिलाफ जाकर अपने सपनों को सच किया |
पर्वतारोहण करियर
पर्वतारोहण प्रशिक्षण में बछेंद्री पाल के प्रदर्शन को सरहाया गया था | और उन्हें प्रदर्शन में ‘ए’ ग्रेड मिला | उस दौरान उन्होंने 6387 मीटर की कालानाग पर्वत की चढ़ाई भी की |
साल 1984 में प्रशिक्षण लेने के दौरान ही उन्होंने गंगोत्री की 6,672 मी. और रुद्रगैरा की 5,819 मी. चोटी पर अपना परचम लहराया | इस यात्रा को उन्होंने और उनकी 16 महिला साथियों ने 39 दिनों में पूरा किया था |
जिसके बाद उन्हें माउण्ट एवरेस्ट की चढ़ाई पर जाने वाले दल में सम्मिलित होने का निमन्त्रण मिला |
जिस वक्त बछेंद्री पाल को एवरेस्ट के अभियान के लिए चुना गया था उस वक्त वे राष्ट्रीय साहसिक फाउंडेशन (एनएएफ) में बतौर एक पर्वतारोहण प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत थी |
उस समय उन्हें स्वयं पर विश्वास नहीं था, कि वो एवरेस्ट की चोटी चढ़ सकती हैं | लेकिन उनके अच्छे प्रदर्शन के कारण इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ) ने उन्हें साल 1984 में भारत की ओर से एवरेस्ट पर भेजे जाने वाले दल के लिए चुना |
वे अधिक बोझ लेकर पर्वतारोहण का अभ्यास करने लगीं | 1983 में बछेंद्री पाल की मुलाकात एवरेस्ट पर चढ़ने वाले शेरपा तेनजिंग नोर्गे तथा एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली जापानी महिला पेटिट जुनको तबाई से हुई, जिससे वह बहुत उत्साहित हुईं |
एवरेस्ट पर चढ़ने वाले 1984 के भारतीय दल के नेता कर्नल डी॰के॰ खुल्लर थे, जिनके दल में 11 पुरुष और 7 महिलाएं थीं | जिनमें बछेन्द्री पाल भी एक थीं |
7 मार्च, 1984 को इनका दल काठमाण्डू पहुंचा | वहां से 10 दिन पैदल चलते हुए नामचा बाजार से पहली बार एवरेस्ट के दर्शन किये |
बछेन्द्री पाल ने एवरेस्ट को प्रणाम करते हुए अपनी इच्छा पूर्ति की कामना की |
एवरेस्ट अभियान के दौरान 16 मई 1984 को वे बर्फीले तूफान की चपेट में आ गई थीं | उनका बचना नामुमकिन सा हो गया था, क्योंकि वे पूरी तरह से बर्फ के नीचे दब गईं थीं | लेकिन उनके साथियों ने हार नहीं मानी और काफी प्रयास के बाद उन्हें बर्फ से बाहर निकाल लिया | उनकी सांसे चल रही थी और यह देखकर टीम के सभी सदस्य खुशी से झूम उठे |
23 हजार फीट की ऊंचाई पर घटी इस घटना के बाद उन्हें बेस कैंप लाया गया, जहां तबीयत सामान्य होने के बाद लीडर ने उनसे पूछा कि क्या तुम अब भी एवरेस्ट पर जाना चाहती हो, तब बछेन्द्री पाल का जवाब था ‘हां’ | दो दिन बाद वे पुन: अभियान दल में शामिल हो गई |
इस अभियान का पहला चरण बेस कैंप था | बेस कैंप से अपना सफर शुरू करने के बाद बछेन्द्री पाल और उनके साथी शिविर तक पहुंचे | इस शिविर की उंचाई 9, 900 फीट यानी 6065 मीटर थी | पहले शिविर पर रात बिताने के बाद, अगले दिन इन सभी ने शिविर 2 की और अपना रुख किया | जोकि 21,300 फीट यानी 6492 मीटर की ऊंचाई पर स्थित था | दूसरे शिविर के बाद अगला चरण शिविर 3 था | और इस शिविर की ऊंचाई 24,500 फीट यानी 7470 मीटर की थी |
बछेन्द्री पाल की टीम जैसे-जैसे ऊंचाई पर पहुंचती जा रही थी, वैसे-वैसे उनकी परेशानियां भी बढ़ती जा रही थी | ऊंचाई पर पहुंचने के साथ ही ठंड बढ़ती जा रही थी और इस अभियान से जुड़े सदस्यों को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी | इस दौरान कई सदस्य तो घायल भी हो गए थे | जिसके चलते कई सदस्यों को इस अभियान को बीच में ही छोड़ना पड़ा |
लाख दिक्कतों के बाद भी बछेन्द्री पाल ने हार नहीं मानी और इन्होंने अपने आगे का सफर जारी रखा | और शिविर 4 की ओर अपने बचे हुए साथियों के साथ आगे बढ़ी | चौथा शिविर 26,000 फीट यानी 7925 मीटर की ऊँचाई पर स्थित था |
चौथे शिविर तक पहुंचते-पहुंचते उनकी टीम में मौजूद सभी महिलाओं ने हार मान ली | और वो यहां से ही वापस बेस कैंप चली गईं | इस तरह इस अभियान को पूरा करने के लिए भारत की ओर से भेजी गई टीम में केवल बछेन्द्री पाल ही एक महिला सदस्य बचीं थी |
शिविर 4 के बाद अगला पढ़ाव एवरेस्ट की चोटी थी | एवरेस्ट की ऊंचाई कुल 29,028 फुट यानी 8,848 मीटर है |
नायलोन की रस्सी के सहारे वे एवरेस्ट की चढ़ाई पर निकल पड़े | उस समय काफी तेज हवा चल रही थी |
बर्फ काटने की कुल्हाड़ी को गाड़कर बछेन्द्री पाल उसका सामना करते हुए बड़ी कठिनाई से डटी थीं । इनके दोनों साथी आगे बढ़ रहे थे, बछेन्द्री नयी शक्ति के साथ चल रही थीं |
23 मई 1984 को एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए शेरपा अंगडोरजी तथा शेरपा ल्हाटू भी इनसे जा मिले |
एवरेस्ट की चोटी पर बछेन्द्री पाल की टीम दोपहर 1 बजकर 7 मिनट पर 23 मई को पहुंचने में कामयाब हुई थी |
30 वर्षीय बछेन्द्री पाल ने एक इतिहास रच दिया और वे अपने जन्मदिन से एक दिन पहले ही भारत की पहली ऐसी महिला बन गई, जिन्होंने पहली बार एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा और भारत देश का झंड़ा फहराया |
इस चोटी से बछेन्द्री पाल ने कुछ पत्थर भी इकट्ठा किए थे, जिन्हें वो अपने साथ लेकर जाना चाहती थी | 1 बजकर 55 मिनट के बाद वे नीचे की ओर आने लगे | पहाड़ों से उतरना भी कम खतरनाक नहीं होता | धैर्य और साहस से बछेन्द्री पाल व उनका दल सकुशल नीचे पहुंच गया | इसके बाद तो उनका साहस और पर्वतारोही के रूप में बढ़ने का सफर बढ़ता गया |
साल 1984 में अपने एवरेस्ट के अभियान को पूरा करने के बाद, बछेन्द्री पाल टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में प्रशिक्षण प्रमुख के रूप में कार्यरत हुई और इस वक्त भी वो इस फाउंडेशन का हिस्सा हैं |
भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया | उन्होने 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 कि.मी. लंबे नौका अभियान का नेतृत्व किया |
हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत शृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 कि.मी. लंबा अभियान उनके द्वारा पूरा किया गया, जिसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान का प्रयास कहा जाता है |
एवरेस्ट यात्रा की चुनौतियों के बारे में बछेंद्री पाल का कहना है कि पहाड़ की कठिन जीवनशैली ने उन्हें एक कुशल पर्वतारोही बनने और इस दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लायक बनाया | इसी के चलते वह अपना सपना सच कर सकीं |
साल 1986 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी मोंट ब्लैंक और साल 2008 में, अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी, माउंट किलिमंजारो पर भी बछेंद्री पाल ने सफलतापूर्वक चढ़ाई की |
साल 1993 में बछेंद्री पाल के नेतृत्व में भारत और नेपाल के एक दल ने सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट के शिखर की चढ़ाई की थी | इस दल के सात सदस्य थे जिसमें सभी महिलाएं ही थी | माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले इस दल ने कुल 8 विश्व रिकॉर्ड बनाए थे |
साल 1999 में उन्होंने ‘विजय रैली टू कारगिल’ शुरू की थी | इस रैली की शुरुआत दिल्ली से मोटरबाइक के जरिए की गई थी | रैली का अंतिन चरण कारगिल था | इस रैली में मौजूदा सभी सदस्य महिलाएं ही थी और इस रैली का लक्ष्य कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देना था |
बछेंद्री पाल अपने समाज सेवा के कार्यों के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है | उन्होंने साल 2013 में आए आपदा में अपनी पर्वतारोहियों की टीमों को लोगो की मदद के लिए भेजा था, और जरूरतमंद लोगों तक राहत समाग्री के सामान पहुंचाये | इसके अलावा साल 2000 में गुजरात में आए भूकंप में भी उन्होंने लोगों की मदद के लिए अपनी पर्वतारोही टीमों को भेजा था |
बछेंद्री पाल ने अपने जीवन के सफर पर एवरेस्ट-माई जर्नी टू द टॉप नामक एक किताब भी लिखी है |
पुरस्कार
- भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन (1984) से पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक |
- पद्मश्री (1984) से सम्मानित |
- उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा स्वर्ण पदक (1985) |
- अर्जुन पुरस्कार (1986) भारत सरकार द्वारा |
- कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रुप अवार्ड (1986) |
- गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (1990) में सूचीबद्ध |
- नेशनल एडवेंचर अवार्ड (1994) भारत सरकार के द्वारा |
- उत्तर प्रदेश सरकार (1995) का यश भारती सम्मान |
- हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (1997) से पी. एच.डी. की मानद उपाधि |
- संस्कृति मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार की पहला वीरांगना लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय सम्मान (2013-14)
बछेंद्री पाल का जीवन असाधारण उपलब्धियों से भरा हुआ है | वह दृढ़ निश्चय, लगन और अनुशासन की मिसाल है | वो सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है | जिनका जीवन में कुछ हासिल करने का इरादा है |
Jagdisha आपके मजबूत इरादो और साहस की सराहना करते है | आपकी कीर्तिमान उपलब्धियों के लिये सहृदय प्रणाम | हम आपके स्वस्थ जीवन की कामना करते है |
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