इतना तो हम और आप समझते ही है, कि अधिक महत्वपूर्ण क्या है, शादी या बचपन |
अखिर कैसे कोई अभिभावक स्वयं अपने बच्चों के भविष्य को दाव पर लगा सकते है? शादी अगर जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है तो वह कच्ची उम्र में कैसे संपन्न कर सकते है ?
बाबा अभी तो स्कूल को जाना ही था,
मित्रो संग बचपन जीना था |
किताबो को मैने जाना था,
मुझको भी भविष्य गढ़ना था |
लेकिन हुआ क्या ये अचानक,
क्यों छीन लिया मेरा ये बस्ता |
नये नये कपड़े और गहनो का क्यों ये लालच,
माँ तूने ही दिया था|
जो ये शिक्षा लेनी की उम्र थी,
उसमें क्यों मैं एक माँ बन गई |
गलत है पर फिर भी बाल विवाह की रूढ़िवादी सोच आज भी हमारे समाज में अपनी जड़े पसारे बैठी है | बाल विवाह से न केवल बचपन छिनता है बल्कि मानसिक और शारीरिक शोषण का भी यह एक कारण है |
बाल विवाह जहाँ एक लड़की को घर घरेस्थी में जकड़ता है वही एक लड़के के सर पर कमाई करने का भार भी डालता है | साथ ही बाल विवाह एक बहुत बड़ा कारण है मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर का |
और अगर शादी एक वयस्क पुरूष के साथ नाबालिग लड़की की होती है, तो यह उस लड़की का शारीरिक शोषण ही तो है |
14-15 साल भी भला कोई उम्र है क्या शादी की ? जिस उम्र में उचित शिक्षा ग्रहण कर अग्रिम भविष्य की नीव रखी जाती है उस उम्र में घर परिवार का भार बाल मन पर अत्याचार ही तो है |
इससे न केवल शिक्षा दर कम होती है बल्कि शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार के अवसर भी कम होते है |
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बालविवाह केवल भारत मैं ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में होते आएं हैं | विश्वभर में भारत का बालविवाह के मामलों में दूसरा स्थान हैं | सम्पूर्ण भारत मैं विश्व के 20% बालविवाह होते हैं | भारत में 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता हैं |
भारत में, बाल विवाह केरल राज्य, जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है | यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों से अधिक बाल विवाह होते है |
आँकड़ों के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68% बाल विवाह की घटनाएं होती है जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम 9% बाल विवाह होते है |
भारत में केंद्र सरकार के ताजा फैसले के अनुसार लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से हटाकर 21 साल कर दी गई है | लेकिन क्या कानून में संशोधन से बाल विवाह की दर पर कोई प्रभाव पडे़गा ?
पहले जब एक लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल थी, तब भी पश्चिम बंगाल समेत देश के कई दूसरे राज्यों से अक्सर बाल विवाह की खबरें सामने आती रहती थी | खासकर कोरोना महामारी के दौरान तो बाल विवाह में खासा बढ़ोतरी आई है |
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लड़कियों के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है | राज्य में यह औसत 7.8 फीसदी था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसदी) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था |
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, साल 2020 में बाल विवाह के मामलों में उसके पिछले साल की तुलना में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई |
एनसीआरबी के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत कुल 785 मामले दर्ज किए गए | कर्नाटक में सबसे अधिक 184 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद असम में 138, पश्चिम बंगाल में 98, तमिलनाडु में 77 और तेलंगाना में 62 मामले दर्ज किए गए |
बाल विवाह, बचपन तो खत्म करता ही है साथ ही बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और संरक्षण पर नकारात्मक प्रभाव भी डालता है |
किशोरियों के सशक्तिकरण के लिए, यह अत्यंत महत्त्वूपर्ण है कि उनका विवाह कानूनी उम्र के बाद हो | जिससे वे स्कूली शिक्षा प्राप्त कर सके, तब ही उनके कौशलों का विकास हो पाएगा | साथ ही वे अपनी आर्थिक योग्यता को भी साकार कर सकती है |
अनुमानित तौर पर, देश में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में होती है | 15 से 19 साल की उम्र की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां शादीशुदा हैं |
बाल विवाह जैसी समस्या को घटाने के प्रयास स्वरूप केंद्र सरकार ने अब लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है | नए प्रस्ताव के मंजूरी के बाद अब सरकार बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी |
नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में साल 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी | इस टास्क फोर्स का गठन मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों की जांच कर उचित सुझाव देने के लिए किया गया था |
टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पहले बच्चे को जन्म देते समय लड़की की उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए |
बालविवाह को रोकने के लिए इतिहास में कई लोग आगे आये जिनमें सबसे प्रमुख राजाराम मोहन राय, केशबचन्द्र सेन जिन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा एक बिल पास करवाया जिसे Special Marriage Act कहा जाता हैं | वर्ष 1929 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की ओर से बनाए गए इस कानून के अनुसार शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई थी |
वर्ष 1978 में इसमें संशोधन कर इसे बढ़ा कर लड़कियों की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल कर दी गई थी |
- 18 से 21 वर्ष की उम्र के पुरुष को नाबालिग लड़की से बाल विवाह करने पर 15 दिन की सजा एवं 1000 रूपये का जुर्माना देना होता था |
- 21 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा नाबालिग लड़की के साथ विवाह करने पर पुरुष को, बाल विवाह को आयोजित करने वाले लोगों को, और लड़के एवं लड़की के अभिभावकों को 3 महीने की जेल की सजा और कुछ जुर्माना देना होता था |
बाल विवाह के लिए बनाये गये कानून की कुछ कमियों को दूर करने के लिए भारत सरकार ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम बनाया था, जिसे 1 नवंबर 2007 को लागू किया गया था |
- इस कानून के तहत बाल विवाह के लिए मजबूर किये गये नाबालिग लड़कों एवं लड़कियों को उनके वयस्क होने के पहले या 2 साल बाद तक उनकी शादी तोड़ने का विकल्प दिया गया है |
- इसके साथ ही शादी खत्म होने पर लड़की के ससुराल वालों को दहेज में मिले सभी कीमती सामान, पैसा और उपहार वापस करने होते है | साथ ही लड़की को तब तक रहने के लिए स्थान प्रदान किया जाता है, जब तक कि वह वयस्क नहीं हो जाती और उसकी शादी नहीं हो जाती |
- जेल की सजा को 3 महीने से बढाकर 2 साल कर दिया गया है और साथ ही कुछ निश्चित जुर्माना भी लगाया गया है |
बाल विवाह के कारण
- गरीबी |
- लड़कियों की शिक्षा का निचला स्तर |
- लड़कियों को कमतर समझा जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना |
- सामाजिक प्रथाएं एवं परम्पराएं |
- घर के बड़े-बुजुर्गों की पौते-पौती देखने की लालसा |
बाल विवाह के कुप्रभाव
जो लड़कियां कम उम्र में विवाहित हो जाती हैं उन्हें अक्सर कम उम्र में शारीरिक संबंध एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ सकता है, जिनमें एच.आई.वी (एड्स) एवं ऑब्स्टेट्रिक फिस्चुला शामिल हैं |
कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास शिक्षा, शक्ति एवं परिपक्वता का अभाव होता है अक्सर घरेलू हिंसा, शारीरिक शोषण एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार बन जाती हैं |
कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर ग़रीबी का कारण बनता है |
बाल विवाह लिंगभेद व असमानता का एक बहुत बड़ा कारण है |
शारीरिक रूप से अपरिपक्वता की स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर बढ़ती हैं |
बाल विवाह केवल सरकार या किसी सरकारी या गैर सरकारी संगठन का मामला नही है | यह एक सामाजिक बुराई है | जिसे खत्म करने के लिये युवाओं को आगे आना होगा, और बाल विवाह जैसी रूढ़िवादी सोच का विरोध करना होगा |
Jagdisha सभी पाठकों से अनुरोध करते है कि अगर आपके आस-पास बाल विवाह जैसा अपराध होता है तो आप इसका विरोध करें |
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