ओलंपिक टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला लेडी मेहरबाई टाटा का जीवन परिचय | Biography of first tennis player Lady Meherbai Tata in Hindi

ओलंपिक टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला लेडी मेहरबाई टाटा का जीवन परिचय | Biography of first tennis player Lady Meherbai Tata in Hindi

रत्न टाटा और उनकी टाटा स्टील कंपनी को कौन नही जानता लेकिन क्या आप यह जानते है कि एक समय ऐसा भी आया था, जब कंपनी के पास कर्मचारियों तक को वेतन देने का पैसा नही था | इस विकट स्थिति से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण योगदान रहा, लेडी मेहरबाई टाटा का | 

उन्होंने उनके पास प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे से भी दोगुने बड़े अपने जुबिली हीरे को गिरवी रख कंपनी को डूबने से बचा लिया था |

लेडी मेहरबाई टाटा, टाटा स्टील कंपनी के संस्थापक जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं | इन्हें पहली भारतीय नारीवादी प्रतीकों (first Indian feminist icons) में से एक माना जाता है |

लेडी मेहरबाई टाटा बाल विवाह उन्मूलन से लेकर महिला मताधिकार, लड़कियों की शिक्षा और पर्दा प्रथा पर प्रतिबंध लगाने तक का पुरजोर प्रयास करने के लिए जानी जाती हैं |

 

यह भी पढ़ें- हर महिला को सशक्त होने के लिए ये जानना बहुत जरूरी है

मेहरबाई बॉम्बे प्रेसिडेंसी वीमेंस काउंसिल और फिर नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस की संस्थापकों में से एक है |

उन्होंने इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस में भारत को प्रवेश दिलाया | बाल विवाह की रोकथाम के लिए बनाए गए शारदा अधिनियम पर भी उनसे सलाह ली गई थी | 

विधायिका में भी महिलाओं के प्रवेश के लिए आवाज उठाने वाली वह पहली महिला थी |

लेडी मेहरबाई टाटा, ओलंपिक में टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला थीं |

टेनिस ही नहीं वो एक अच्छी घुड़सवार होने के साथ-साथ प्रवीण पियानो वादक भी थीं | साथ ही वो 1912 में जेपेलिन एयरशिप पर सवार होने वाली पहली भारतीय महिला थीं |

 

जन्म और प्रारंभिक जीवन 

लेडी मेहरबाई टाटा का जन्म 10 अक्टूबर 1879 को एक पारसी परिवार में हुआ था | उनके पिता होरमुसजी भामा मैसूर राज्य के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल ऑफ एजुकेशन थे | उनकी मां का नाम जेरबाई भामा था | मेहरबाई टाटा को घर में प्यार से सभी मेहरी कह कर पुकारते थे |

मेहरी शुरु से ही आजाद सोच वाली महिला थी | उनके पिता ने उन्हें प्रगतिशील वेस्टर्न विचारों से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | लेकिन जब पिता ने पश्चिमी फैशन के चक्कर में उनका नाम मेहर से मेरी करना चाहा तो मेहरबाई ने इससे बिल्कुल मना कर दिया | उन्होंने अपना नाम मूल फारसी रुप से मेहर ही रहने पर जोर दिया जो बाद में मेहरबाई बन गई | उन्हें अपनी संस्कृति से बहुत प्यार था |

16 वर्ष की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद अंग्रेजी और लैटिन भाषाएं सीखी | विज्ञान विषय से आगे की पढ़ाई की | 

एक बार जमशेद जी टाटा उनके घर आए थे, वहाँ वे पहली बार 18 वर्षीय मेहरी से मिले  | 14 फरवरी 1898 को उनकी शादी सर दोराबजी के साथ हुई |

1910 में जब दोराबजी टाटा को सर की उपाधि मिली तब मेहरबाई टाटा को भी लेडी मेहरबाई टाटा के नाम से पुकारा जाने लगा |

एक धनी परिवार में शादी होने के बाद भी वह सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी रखती थी | समाज के सभी वर्गों के साथ संपर्क में रहती थी | 

एक बार जब मुंबई के भायखला के गरीब इलाके में रहने वाली महिलाओं को दंगों के कारण भोजन नहीं मिल पा रहा था, तब अपनी महिला सहयोगियों के साथ वह खुद भोजन और सब्जी लेकर पहुंच गई थी | लेकिन महापौर ने उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि आप प्रतिष्ठित महिलाएं है | आपको यह सब करना शोभा नहीं देता | इस पर लेडी टाटा ने शांत भाव से जवाब दिया, हम महिलाएं यहां ग्रेसफुल (शोभायमान) होने के लिए नहीं आईं, हम यहां यूजफुल (सहायक) होने के लिए आए हैं |

 

यह भी पढ़ें- भारतीय संस्कृति को अपनाने वाली स्विस मूल की वह महिला जिन्होंने डिज़ाइन किया परमवीर चक्र

महिलाओं के उत्थान के लिए किए कार्य

लेडी मेहरबाई टाटा ने महिलाओं के उत्थान के लिये अनेक कार्य किये | उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई के लिए अपनी आवाज बुलंद की | उन्होंने बड़े महानगरों से लेकर सुदुर गांवों तक, जहां भी यात्रा की महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता पर अध्ययन किया | 

उनका मानना था कि भारत का विकास महिलाओं की स्थिति सुधरने से ही हो सकेगा | जिसके लिए शिक्षा अनिवार्य है |

उन्होंने एक विशेषज्ञ को इंग्लैंड से लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र सर्वेक्षण के लिए भारत बुलाया था | 

लेडी मेहरबाई टाटा महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा को अनिवार्य करने और पर्दा प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के प्रति प्रयत्नशील थीं | 

भारत में साल 1929 में बाल विवाह अधिनियम पारित किया गया, जिसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है | इस अधिनियम को बनाने में मेहरबाई का भी सहयोग लिया गया था | 

वो रेड क्रॉस की भी सक्रिय सदस्य थी | 1919 में किंग जार्ज पंचम ने उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का कमांडर बनाया था |

लेडी मेहरबाई टाटा के नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में शामिल किया गया था |

29 नवंबर 1927 को उन्होंने अमेरिका के मिशिगन में बैटल क्रीक कॉलेज (अब एंड्रयूज यूनिवर्सिटी) में हिंदू विवाह अधिनियम के पक्ष में बात की | 

उनके उत्साही भाषण ने दर्शकों को भारतीय संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ रीति-रिवाजों और अज्ञानता का एक श्रेष्ठ अवलोकन प्रदान किया |

लेडी मेहरबाई टाटा का टेनिस करियर

लेडी मेहरबाई टाटा खेलो में भी रूची रखती थी, उन्हें टेनिस खेलने का बड़ा शौक था | उन्होंने टेनिस टूर्नामेंट में 60 से अधिक पुरस्कार जीते थे | साथ ही ओलंपिक में टेनिस खेलने वाली वो पहली भारतीय महिला थीं | उनकी दिलचस्प बात यह है कि वो सारे टेनिस मैच पारसी साड़ी पहनकर खेलती थीं |

अक्सर उनके पति और उन्हें, विंबलडन के सेंटर कोर्ट में टेनिस मैच देखते हुए देखा जाता था |

कैसे बचाया था टाटा कंपनी को डूबने से 

हरीश भट्ट ने अपनी किताब TataStories: 40 Timeless Tales To Inspire You में बताया है, कैसे लेडी मेहरबाई टाटा ने टाटा की दिग्गज कंपनी को बचाया था | 

लेडी मेहरबाई टाटा के पास एक बहुत खूबसूरत 245.35 कैरेट का जुबिली हीरा था, जो प्रसिद्ध 105.6 कैरेट कोहिनूर से दोगुना बड़ा था |

यह हीरा उन्हें अपने पति सर दोराबजी टाटा से उपहार स्वरुप मिला था | सर दोराबजी टाटा ने इस हीरे को  लंदन के व्यापारियों से खरीदा था | 

लेडी मेहरबाई टाटा इसे खास मौकों पर ही पहनती थी | जब वे प्लेटिनम चेन में लगे इस हीरे को पहनती थी, तो सब हैरान हो जाते थे | 1900 के दशक में इसकी कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी |

लेकिन 1924 में विश्वयुद्ध के कारण आई आर्थिक मंदी में टाटा स्टील कंपनी को चलाना कठिन हो गया था, उस समय इसे टिस्को कहा जाता था |  दोराबजी टाटा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कंपनी को कैसे बचाया जाए | उस समय  मेहरबाई टाटा ने अपना जुबिली हीरा गिरवी रख धन इकट्ठा करने की सलाह दी |

धन जुटाने के लिए दोराबजी टाटा और मेहरबाई टाटा ने इस हीरो को इम्पीरियल बैंक में गिरवी रखा था | उस वक्त उन्होंने कंपनी के कर्मचारी और कंपनी को बचाने के लिए जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दी ताकि वे कंपनी के लिए धन जुटा सकें |

इस कदम के बाद टाटा कंपनी में आई समस्या का समाधान हो गया और कंपनी फिर से समृद्ध हो गई |

लेडी मेहरबाई टाटा ल्यूकेमिया नामक बीमारी से पीडित थी | बीमारी के अंतिम चरण में उन्हें नार्थ वेल्स के रुथन के एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया | 18 जून 1931 को उनका निधन हो गया | उनकी राख को ब्रुकवुड सोमिटरी में दफन किया गया जहां एक सुंदर मकबरा बनवाया गया |

1939 में सर दोराबजी टाटा इस्टेट के प्रबंधक द्वारा जुबिली डायमंड को बेच दिया गया | इससे मिले पैसे टाटा ट्रस्ट द्वारा संचालित शिक्षण व अनुसंधान विकास, आपदा राहत कार्य और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किए गए | 

उनकी मृत्यु के बाद उनकी स्मृति के रूप से टाटा मेमोरियल अस्पताल बनवाया गया जो कैंसर के उपचार, शिक्षण और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत में अग्रणी अस्पतालों में से एक है |

यह बात व्यर्थ है, कि महिलाएं अपने सफल जीवन के लिए कुछ नही कर सकती | किचन और घर संभालना ही महिलाओं के कार्यक्षेत्र समझे गए है | ऐसा बिल्कुल नही है कि वे किसी भी स्तर पर पुरूषों से कमतर है | महिलाएं हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है |

उचित शिक्षा द्वारा किसी भी मनुष्य के जीवन को सफल और समृद्ध बनाया जा सकता है | जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है | बेटी होने के नाते किसी भी बेटी के शिक्षा के अधिकार को छीनना अपराध के साथ साथ उसका शोषण भी है | इससे आप सिर्फ उसके जीवन को अंधकार की ओर धकेल रहे है |

Jagdisha लेडी मेहरबाई टाटा के स्वतंत्र विचारों और महिला उत्थान के कार्यों के प्रति नतमस्तक है |

 

अन्य भी पढ़ें-

 

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ