आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गयी थी यह भारत की बहादुर बेटी

आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गयी थी यह भारत की बहादुर बेटी

वह चाहती तो, खुद को बचा सकती थी पर इस बहादुर बेटी ने ऐसा नही किया और पहले यात्रियों को सुरक्षा देने का अनूठा प्रयास किया| वह मुंबई के पैन ऍम एयरलाइन्स की प्रधान परिचारिका थी |

5 सितम्बर 1986 को हाईजैक हुए पैन ऍम फ्लाइट 73 में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वह आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गयी थी| उनकी इस वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार ने शांति काल के अपने सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया और साथ ही पाकिस्तान सरकार और अमरीकी सरकार ने भी उन्हें उनकी वीरता के लिये सम्मानित किया है |

हम बात कर रहे है, नीरजा भनोट की| उन्होंने आम लड़कियों की भांती ही अपने जीवन को जिया लेकिन अपनी हिम्मत, निडरता और जज्बे से अमर हो गईं|  एक 23 वर्षीय जिंदादिल, उत्साहशील और साहसी महिला जिसने आत्मबलिदान देकर बचाई 360 यात्रियो की जान और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में प्रसिद्ध हो गईं| 

नीरजा की याद में एक संस्था नीरजा भनोट पैन एम न्यास की स्थापना की गई है| जो महिलाओं को उनके साहस और वीरता के लिए सम्मानित करती है|

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जीवनी

नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था| उनके पिता हरीश भनोट द हिंदुस्तान टाइम्स मुबई में पत्रकार और मां रमा भनोट गृहणी थीं| उनके माता-पिता उन्हें ‘लाडो’ कहकर बुलाते थे| उनके दो भाई अखिल और अनीश भनोट है|

उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा चंड़ीगढ़ के सैकरेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से प्राप्त की| लेकिन बाद में उनका परिवार मुंबई स्थानांतरित हो गया| उन्होंने मुंबई के बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से अपनी आगे की पढ़ाई की| मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया|

साल 1985 में नीरजा के माता-पिता ने एक बिजनेसमैन के साथ उनकी शादी करा दी| शादी के पश्चात वो अपने पति के साथ खाड़ी देश चली गईं| उनके पति ने उन्हें दहेज के लिए यातनाएं दी और घरेलू हिंसा से परेशान हो वह शादी के दो महीने बाद ही मुंबई वापस आ गईं| वह फिर कभी ससुराल नहीं लौटी| 

मुंबई लौटने के बाद उन्हें एक मॉडलिंग असाइनमेंट मिला जिसके बाद उनके मॉडलिंग करियर की शुरुआत हुई| नीरजा अभिनेता राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थीं और अक्सर उनके डायलॉग बोला करती थीं| उन्होंने लगभग 22 विज्ञापनों में काम किया था| उन्होंने करीब 90 ब्रैंड्स के लिए मॉडलिंग की| इससे पहले 16 साल की उम्र में एक मैगजीन ने उन्हें स्पॉट किया था|

साल 1985 में नीरजा ने ‘पैन एएम’ में आवेदन किया, उस समय वह एक सफल मॉडल थीं| चुनाव के बाद उन्हें फ्लाइट अटेंडेंट के तौर पर ट्रेनिंग के लिए मियामी और फ्लोरिडा भेजा गया लेकिन वो वापिस पर्सर के तौर पर आईं| पैन एएम के साथ- साथ ही नीरजा मॉडलिंग भी कर रही थीं| साथ ही उन्होंने एंटी-हाईजैकिंग कोर्स भी किया|

5 सिंतबर 1986 को नीरजा पैन एएम की फ्लाइट 73 में सीनियर पर्सर थीं| ये फ्लाइट मुंबई से अमेरिका जा रही थी| लेकिन पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर इसे 4 हथियारबंद लोगों ने हाईजैक कर लिया| इस फ्लाइट में 360 यात्री और 19 क्रू मेंबर्स थे| जब आतंकियों ने प्लेन हाईजैक किया तब नीरजा की सूचना पर चालक दल के तीनों सदस्य यानी पायलट, को-पायलट और फ्लाइट इंजीनियर कॉकपिट छोड़कर भाग गए| अब प्रधान क्रू मेंबर के रूप में यात्रियों की जिम्मेवारी नीरजा के ऊपर थी|

ये चारों आतंकवादी चाहते थे कि फ्लाइट को साइप्रस ले जाया जाए क्योंकि वो कैद फिलिस्तीनी कैदियों को मुक्त कराना चाहते थे| ये आतंकी अबू निदान ऑर्गेनाइजेशन के थे और उनका निशाना अमेरिकी लोग थे| प्लेन हाईजैक करने के कुछ समय बाद उन्होंने एक भारतीय-अमेरिकी को प्लेन के गेट पर लाकर गोली मार दी| आतंकियों ने नीरजा से सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठे करने को कहा जिससे वो यह पहचान कर सके कि कौन से यात्री अमेरिकी हैं|

उन आतंकवादियों का मुख्य कारण अमेरिकी यात्रियों को मारना था| इसीलिए नीरजा ने सुझबुझ दिखाते हुए 43 अमेरिकियों के पासपोर्ट छुपा दिए, जिसमे से कुछ उन्होंने सिट के निचे और कुछ ढलान वाली जगह पर छुपा दिए| उस फ्लाइट में बैठे 44 अमेरिकियों में से केवल 2 को ही आतंकवादी मारने में सफल हो पाए| अब उन आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार को विमान में पायलट भेजने को कहा लेकिन पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया|

नीरजा को अंदेशा था कि विमान का ईंधन समाप्त होने वाला है और धीरे- धीरे विमान में अंधेरा छा जाएगा| उन्होंने अपने क्रू मेंबर के साथ मिलकर यात्रियों को खाना देने के बहाने उन्हें विमान के आपातकालीन दरवाजों के बारे में समझाने वाले कार्ड दिये| ताकि यात्री इस बात की पहचान कर लें कि विमान के आपातकालीन दरवाजे कहां- कहां है|

प्लेन को हाईजैक करने के 17 घंटों के बाद आतंकियों ने यात्रियों की हत्या करनी शुरू कर दी|

दूसरी ओर विमान को जैसे ही अंधेरे ने घेरा नीरजा ने बिना देर किए तुरंत विमान के सारे आपातकालीन दरवाजे खोल दिए| उन्‍होंने एक-एक करके यात्रियों को बाहर निकलना शुरू किया| आतंकवादियों ने नीरजा को ऐसा करते देखा तो वे डर गए क्योंकि उन्हें पता था कि अगर यात्री बच गए तो फिर कमांडो हमला होगा|

इसी के साथ आतंकवादियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी| लेकिन नीरजा की समझदारी, हिम्मत और बहादुरी ने सभी यात्रियों को सुरक्षित कर दिया| जिनमें से कुछ घायल थे|

इसी बीच पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे| उन्होंने 3 आतंकियों को मार गिराया था| अब तक सभी यात्रियों को नीरजा प्लेन से उतार चूकी थी, जब वह खुद प्लेन से बहार निकलने लगी तभी उन्हें कुछ बच्चों की रोने की आवाज सुनाई दी| प्लेन मे तीन बच्चे फँसे हुए थे| वह उन बच्चों को बचाने के लिए उनकी ओर गई| उन बच्चों को निकालते हुए जब बचे हुए चौथे आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही तब नीरजा ने बीच में आकार उससे मुकाबला किया और आतंकवादी ने एकाएक गोलियों से नीरजा को बींध दिया| लेकिन इस बहादुर महिला ने अपने अंत के मध्य में भी आपातकालीन दरवाजे से बच्चों को धकेल उनकी रक्षा की|  जिसके बाद चौथे आतंकवादी को पाकिस्तानी कमांडो ने मार गिराया पर नीरजा को न बचा पाए|

एक इंटरव्यू में बात करते हुए नीरजा के भाई अनीश भनोट ने कहा था कि नीरजा हमेशा कहा करती थी कि अपना काम करो और अन्याय बर्दाश्त कभी मत करो|

उनकी इस बात से आप अंदाजा लगा सकते है, कि नीरजा एक नीडर और स्वाभिमानी व्यक्तित्व की महिला थी| जो खुद को असहाय और कमजोर नही समझती थी, बल्कि अपने अधिकारो और अन्याय के विरूद्ध लड़ना जानती थी|

अपने जन्म दिवस के दो दिन पूर्व 5 सिंतबर 1986 को 376 लोगो का जीवन बचाने के लिये खुद के जीवनम का बलिदान दे दिया देश की इस बेटी ने| 

उनमे से एक बच्चा जो उस समय केवल 7 वर्ष का था, वह नीरजा भनोट की बहादुरी से प्रभावित होकर एयरलाइन में कप्तान बना|

भारत सरकार द्वारा नीरजा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित किया| जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है| नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं| इतना ही नहीं, उन्हें पाकिस्तान सरकार की तरफ से ‘तमगा-ए-इंसानियत’ और अमेरिकी सरकार की तरफ से ‘जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड’ से भी सम्मानित किया गया|

साल 2004 में, उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया|

साल 2016 में प्रोड्यूसर अतुल काशबेकर और निर्देशक राम माधवानी के निर्देशन में उनकी बहादुरी और बलिदान को याद रखते हुए एक फिल्म ‘नीरजा’ बनी| जिसमें उनकी भूमिका को सोनम कपूर ने निभाया था|

30 मई 2018 को, पंजाब विश्वविद्यालय ने चंडीगढ़ में विश्वविद्यालय परिसर में नीरजा भनोट छात्रावास की स्थापना की| इस छात्रावास में 350 से अधिक छात्राओं के रहने की सुविधा की गई हैं|

नीरजा की स्मृति में मुम्बई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नामकरण किया गया है, जिसका उद्घाटन 90 के दशक में हिंदी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त अभिनेता अमिताभ बच्चन ने किया था|

उनके परिजनों ने उनकी याद में एक संस्था नीरजा भनोट पैन एम न्यास की स्थापना की, जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए प्रतिवर्ष महिलाओ को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है| 

पुरस्कार की दो श्रेणियाँ है, एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओ को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिये दिया जाता है| प्रत्येक पुरस्कार की धनराशी 1,50,000 रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्राफी और स्मृतिपत्र भी दिया जाता है|

पुरस्कार

  • अशोक चक्र (1987), भारत

  • फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हेरोइस्म अवार्ड (1987), अमेरिका

  • जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड (2005), यूनाइटेड स्टेट (कोलंबिया)

  • विशेष बहादुरी पुरस्कार (2006), यूनाइटेड स्टेट (जस्टिस विभाग)

  • तमगा-ए-इंसानियत (1987), पकिस्तान

  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय पुरस्कार (2011), भारत

  • भारत गौरव पुरस्कार 2 जुलाई 2016 को यूके की संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में प्रस्तुत किया गया|

 
 
 

 

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