पीरियड महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है | जिसमें आपके यूटेरस के अंदर से रक्त और ऊतक, वजाइना के द्वारा बाहर निकलते हैं| हर महीने लड़कियों और महिलाओं को पीरियड से गुजरना होता है|
इन दिनों में स्वच्छता और साफ-सफाई रखने की बहुत आवश्यकता होती है| लापरवाही करने से न केवल आपका स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि यीस्ट इंफेक्शन जैसी कुछ बीमारियों का सामना भी करना पड़ सकता है|
हमारे समाज में पीरियड के विषय में जागरूकता की बहुत कमी है| महिलाएं जिस प्रक्रिया से हर महीने गुजरती है उस पीरियड का नाम बाहर तो क्या परिवार के सदस्यों के सामने लेने से भी कतराती है| पुरूषों के सामने तो बिल्कुल चुप|
आज हम बात कर रहे है एक ऐसे गांव की जहाँ अब सैनिटरी पैड न मिलेंगे और न ही प्रयोग में लाए जाएंगे|
सैनिटरी पैड नही मिलेगे यह सुनकर थोड़ा झटका लगा क्या आपको? परेशान होने वाली कोई बात नही है, क्योंकि पीरियड में यहाँ की लड़कियां और महिलाएं पैड की जगह अब मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करने लगी हैं|
13 जनवरी 2022, को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुंभलंगी को देश का पहला पैड फ्री गांव घोषित किया है|
एर्णाकुलम के सांसद हिबी ईडन ने प्रधानमंत्री संसद आदर्श ग्राम योगना के तहत ‘अवलकायी’ अभियान की शुरुआत की थी| इसका मतलब होता है for her यानी महिलाओं और लड़कियों के लिए| इस अभियान के अंतर्गत 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 5000 से ज्यादा मेंस्ट्रुअल कप बांटे गए हैं| पहले तीन महीनों तक महिलाओं को मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी गई|
सांसद हिबी ईडन ने अभियान के अंतर्गत कई स्कूलों में नैपकिन-वेंडिंग मशीनें लगाई, लेकिन अक्सर वो मशीनें ठीक से काम नहीं करती| फिर उन्होंने विशेषज्ञों से सलाह लेकर इसका विस्तार से अध्ययन किया| विशेषज्ञों के अनुसार मेन्स्ट्रूअल कप को कई सालों तक पुनः उपयोग में लाया जा सकता है और यह अधिक स्वस्थ्यकर माना जाता है|
सांसद हिबी ईडन का मानना है कि इस नई पहल से सिंथेटिक सैनिटेरी नैपकिन के कारण होने वाले प्रदूषण की वृद्धि में कमी आएगी| मेन्स्ट्रुअल कप कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को पीरियड के समय स्वच्छता को भी सुनिश्चित करेगा|
मेन्स्ट्रुअल कप सिलिकॉन या लेटेक्स से बना एक छोटा से फनल यानी कोन की आकृती का एक उपकरण होता है|
यह कप बहुत ही कोमल और सरलता से उपयोग में लाया जाता है| इसमे रक्तस्राव भी सरलता से इकट्ठा हो जाता है| इसे साथ में रखना भी आसान होता है यह थोडी सी जगह लेगा| इसे आप अपने पर्स में भी कर सकती हैं|
आप यह तो अच्छे से जानती है, कि पैड को प्रयोग करने के लिए आप उसे अपनी अंडरवियर में लगाती है|
अब बात करे मेंस्ट्रुअल कप की तो ये दो तरह के होते हैं| एक वजाइनल कप, जो वजाइना में रहता है और दूहरा सर्वाइकल कप, जो सर्विक्स पर फिक्स हो जाता है| कप अलग-अलग साइज़ में आते हैं| मेंस्ट्रुअल कप यू या सी आकृति के होते है| इसको प्रयोग करना बहुत आसान है, मतलब आप अपनी उंगली से कप को बीच में थोड़ा सा दबाइए और अपनी उंगली के इर्द-गिर्द कप को मोडिएं| ऊपर से देखने पर ये एक सी या यू आकृति का लगेगा| अब चूंकि ये संकुचित है, तो ये आसानी से वेजाइना में इंसर्ट हो जाएगा|
बस एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि वेजाइनल कैनल सीधी नहीं होती, तो सीधा इंसर्ट न कर के एक ऐंगल पर पुश करते हुए इंसर्ट करना है| और अगर ज़्यादा आसान करना है, तो उंगली के सहारे प्रयोग मे लाएं| अगर कोई इरिटेशन हो तो लुब्रिकेंट का इस्तेमाल कर सकती हैं| एक बार ये सही जगह बैठ जाए, तो उंगली हटा लीजिए| कप का मुंह खुल जाएगा| और इन्हें लगाकर काम करने या चलने-फिरने में कोई दिक्कत महसूस नहीं होती है| इन कप की बनावट ऐसी होती है कि काम करते या चलते-फिरते समय ये अपनी जगह से फिसलते नहीं हैं|
जैसा कि आप अनुमान लगा सकती हैं, ये आपका पीरियड का रक्त जमा करता रहेगा| और जब ये भर जाए तब आप इसे टॉयलेट में खाली कर दे| आप इस कप को गर्म पानी में अच्छे से उबालकर दोबारा उपयोग में ला सकती हैं| 300 से 400 रुपये के मेंस्ट्रुअल कप को आप सही देखभाल के साथ 6 महीने से 10 साल तक प्रयोग में ला सकती हैं| और यह आपको हर महीने होने वाले पैड के खर्चे से भी मुक्त करेगा|
विशेषज्ञों का कहना है कि पीरियड के समय मेन्स्ट्रूअल स्वच्छता के लिए उपयोग की जाने वाली बाकि चीजों की तुलना में मेन्स्ट्रूअल कप एक सुरक्षित विकल्प है|
पैड की तुलना में मेंस्ट्रुअल कप पर्यावरण के अनुकूल होते है|
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आमतौर पर मिलने वाले सैनिटरी पैड्स में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होता है| प्लास्टिक यानी पर्यावरण का शत्रु| इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल 1200 करोड़ से ज्यादा सैनिटरी नैपकिन उपयोग होती है, लगभग 1.13 लाख टन कचरा और उसमें से 90% प्लास्टिक कचरा| अगर सैनिटरी नैपकिन की जगह महिलाएं मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने लगेंगी तो ये कचरा काफी कम किया जा सकता है|
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