महिला सशक्तिकरण समाजिक, आर्थिक, राजनितिक, स्वास्थ्य और बौद्धिक रूप से महिलाओं की समाज में अपनी स्थिति को सुनिश्चित करना है| महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण आधार है हर क्षेत्र में समानता|
‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके| महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता स्वयं बने|
यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं| महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारियों की उपेक्षा भाव से देखा जाता है उस कुल का सर्वनाश हो जाता है|
महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है| ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के बराबरी के मौके मिल सके, जिससे वह सामाजिक स्वतंत्रता और उन्नति कर सके| सशक्त महिलाएँ ही पुरुषों की तरह अपने सपनो की उडान भर सकने में सक्षम बन सकती है और अपनी हर आकांक्षाओं को पूरा कर सकती है|
महिला की स्थिति से समाज और देश के सांस्कृतिक और विकास स्तर का पता चलता है| यदि महिला को धर्म, समाज और पुरुष के नियमों में बांधकर रखा गया है तो उसकी स्थिति दरिद्र ही हो सकती है| बंधन में भला किसी की स्थिति सुखद कैसे मानी जा सकती है|
नारी को वैदिक युग से देवी का दर्जा दिया गया है| हमारे भारतवर्ष में नारी के हर स्वरूप जैसे बुद्धि की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी, शक्ति स्वरूपणी दुर्गा इत्यादि की पूजा होती है| दुर्भाग्यवश जो समाज नारी के विभिन्न स्वरूप को पूजता है, वही नारी की स्थिति दयनीय और प्रताडनाओं से ग्रसित है|
हर महिला को सुद्ढ़ता और गहन साहस के साथ उठने और आगे बढ़ने की आवश्यकता है| बीते हजारों वर्षों का इतिहास देखा जाए तो शुरूआत से ही मानव समाज में पुरुष प्रधानता रही है और महिलाओं के साथ भेदभाव किया गया है जिस कारण समय के साथ-साथ बहुत से क्षेत्रों में महिलाएं पिछड़ चुकी हैं|
महिला के चरित्र को विन्रम, वात्सल्य, सहनशील, शांत, आज्ञाकारी, त्याग जैसे स्वभावो से गढ दिया गया है| समझा जाये तो उन्हें महत्वाकांक्षी होने, जीवन में उन्नति करने और अपनी प्रवीणता को प्रदर्शित करने का अधिकार भी छीनना पडता है| अधीनता की बेडीया इतनी मजबूत है की तोडने के लिए प्रचुर साहस और संकल्पी होना आवश्यक है|
हमारे समाज में महिला को जननी और गृहणी रूप में मान्यता प्राप्त है| आदर्श महिला की परिभाषा ही घर-गृहस्थी, संतान परवरिश और परिवारिक संयोजन से जोडी गई| ‘जिसे घर परिवार संभालना नही आता वह औरत कैसी’, ‘माँ नही बन सकती तो किस काम की’ ऐसी व्याख्या आपने महिलाओं के लिए आवश्य सुनी होगी| सरल शब्दों में कहु तो महिलाओं को संतान उत्पत्ति और घरेलू कार्यों का केन्द्र माना जाता है|
भारतीय परिवारो में बेटियों से उम्मीद की जाती हैं कि वे छोटी उम्र से ही घर के काम-काज जैसे झाडू-पोछा लगाना, बर्तन और कपडे धोना, खाना पकाना इत्यादि सीख ले| ‘अगले घर भी जाना है तुझे, वहाँ क्या हमारी नाक कटवायेगी’, अक्सर इन वाक्यो का संबोधन किया जाता है अगर उनकी रूची इन कार्यों में न हो तो|
भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को नष्ट करने वाली उन सभी राक्षसी सोच जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय को खत्म करना आवश्यक है| लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है|
महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये हर एक परिवार के सदस्यों और अभिभावको को बचपन से ही उन्हें सशक्त बनने की प्रेरणा देनी चाहिए | ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो| प्रथम गुरू माता-पिता को ही माना गया है, फिर बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो तो सोने पर सुहागा|
भारत की लगभग 50% आबादी केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है| ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किए हमारा देश विकसित हो पायेगा|
राष्ट्र के विकास में महिलाओं का महत्त्व और अधिकार के बारे में समाज में जागरुकता लाने के लिये मातृ दिवस, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आदि जैसे कई सारे कार्यक्रम सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं|
कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि भी इस दिशा में कार्य कर रहे है|
महिलाओं को कई क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है|
शिक्षा के मामले में भी भारत में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा काफी पीछे हैं| भारत में पुरुषों की शिक्षा दर 80% है, जबकि महिलाओं की शिक्षा दर मात्र 60% ही है|
सामान्य ग्रामीण महिलाएँ आज भी अपने घरों में रहने के लिए बाध्य है और उन्हें सामान्य स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा जैसी सुविधाएँ भी उपलब्ध नही है|
कार्यस्थलों में महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है|
महिलाओं को आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैसले लेने की पूर्ण आजादी नही होती है|
महिलाओं को हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कम आंका जाता है|
आज भारतीय महिलाएँ कई सारे महत्वपूर्ण राजनैतिक तथा प्रशासनिक पदों पर पदस्थ हैं| लेकिन फिर भी बहुसंख्य महिलाओं को आज भी शिक्षा, और आजादीपूर्वक कार्य करने, सुरक्षित यात्रा, सुरक्षित कार्यस्थल और सामाजिक आजादी के लिए सहयोग और सहायता की आवश्यकता है|
महिला सशक्तिकरण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति उसके महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रगति पर ही निर्भर करती है| राष्ट्र के विकास के महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है|
आज की महिला पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर बड़े से बड़े कार्य क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं| वे डॉक्टर, वकील, बस चालक, न्यायाधीश, अध्यापक, अध्यक्ष आदि हर क्षेत्र में अपना स्थान प्रदर्शित कर रही है| अब चाहे मिशाइल बनाना हो या अंतरिक्ष यात्रा हर जगह महिलाएं अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही है| भारत में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं है, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए अपने अन्दर के डर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया|
महिला सशक्तिकरण के बिना देश व समाज में नारी को वह स्थान नहीं मिल सकता, जिसकी वह हमेशा से हकदार रही है| महिलाओं को स्वयं आगे आना होगा उन्हें सदियों पुरानी परम्पराओं और दुष्टताओं से लोहा लेना होगा| डर या भय के आवरण में झुपकर महिलाएं कभी भी तरक्क़ी नही कर सकती है|
बात सिर्फ पुरूष प्रधानता या पितृसत्ता की नही है बल्कि अधीनता स्वीकृति की भी है| महिलाओं द्वारा स्वयं को कमजोर, असहाय और निर्भर मान लेने की सोच में परिवर्तन भी अति आवश्यक है| इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता है कि महिला सशक्तिकरण के लिए बहुत से पुरूष अग्रणी है|
महिलाओं को अपनी प्रगति और उथान के लिए दृढ निश्चयी होना होगा| अपनी बात को सही साबित करने और अपने सपनो को पंख देने के लिए संघर्ष तो आवश्यक है|
अब क्या तो दूसरों द्वारा दी गई सही-गलत की परिभाषा को अपनाओं या आपके लिए सही क्या है इस बात की गंभीरता को समझो| हर क्षेत्र में प्रथम रहने वाली महिलाओं जैसे पहली अध्यापक सावित्री बाई फूले, इंग्लिश चैनल में तैरने वाली पहली भारतीय महिला आरती साहा, अशोक चक्र पाने वाली पहली महिला नीरजा भानोत, भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी इत्यादि में कुछ खास अगर था तो वह है हर विरोध और परिस्थिति का डट कर सामना करना और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना| ऐसा आप भी कर सकती है, अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होने के लिए स्वयं पर विश्वास करना होगा|
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