कोई उम्र का बढ़ना नहीं रोक सकता , पर अपनी उत्पादकता बढाते हुए उम्रदराज़ होना कुछ और ही है |
उम्र महज एक नम्बर है, जिसमे साहस और जब्बा हो उसे उम्र के बढते नम्बर से फर्क नही पडता| आज सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं, 105 वर्षीय ‘Legendery Women’ तमिलनाडु की रहने वाली महिला किसान पप्पाम्मल| उन्हें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म श्री पुरस्कार 2021 से सम्मानित किये जाने की हुई घोषणा| पप्पाम्मल अपने कामों को बखूबी अंजाम दे रही हैं| उन्हें भवानी नदी के तट पर बाजरा, दाल, सब्जियां और मकई की खेती के लिए 2.5 एकड़ जमीन पर की जाने वाली जैविक खेती के लिए और जैविक खाद बनाने के लिए (वो कई तरह के फसलों के अवशेषों और पशुओं के मल-मूत्र आदि से जैविक खाद का भी निर्माण करती हैं) पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 105 वर्ष की उम्र में, वह संभवतः पुरस्कार पाने वाली तमिलनाडु की सबसे बुजुर्ग जीवित व्यक्ति हैं। उनकी अपनी दुकान (प्रोविजनल स्टोर) और भोजनालय भी है|
पप्पाम्मल उर्फ रंगमाला का जन्म 1914 में देवलपुरम के वेलाम्मल और मारुथचला मुदलियार के घर हुआ था। उन्होंने अपने माता-पिता को कम उम्र में ही खो दिया था, और उनका और उनकी दो बहनों का कोयम्बटूर के थेक्कमपट्टी गाँव में उनकी नानी ने पालन पोषण किया था। वह एक दुकान चलाती थी, पाँच दशक पहले उसकी मृत्यु के बाद उस दुकान को पप्पम्मल ने आगे बढाया| साथ ही मेहनती और उद्यमशील होने के नाते, पप्पम्मल ने एक भोजनालय का शुभारंभ किया।
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युवावस्था से ही उन्हें कृषि में अत्यंत रुचि थी और इसलिए वें विभिन्न कृषि पद्धतियों को सीखने में बहुत समय व्यतीत करती थी | पप्पम्मल ने दूसरी कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं की है, लेकिन किसानों के लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) की कक्षाओं में भाग लिया है। दुकान और भोजनालय से होने वाली कमाई से 30 की उम्र मे उन्होंने गाँव में 10 एकड़ जमीन खरीदी। और उसमे नियमित रूप से जैविक खेती करना प्रारम्भ किया |
पप्पाम्मल ने कुछ दशक पहले अपने पति को खो दिया था। इस दंपति की अपनी कोई संतान नहीं थी और इसलिए उन्होंने अपनी बहन की तीन बेटियों का पालन पोषण किया।
उनके द्वारा खरीदी गई जमीन में से तीन-चौथाई (7.5 एकड) जमीन उन्होंने अपनी दत्तक बेटियों मे बाँट दी बाकी 2.5 एकड़ जमीन मे स्वयं किसानी जारी रखी है| साथ ही वें प्रोविजन स्टोर और भोजनालय भी समानांतर चलाती है।
जैविक खेती की योद्धा, पप्पम्मल हर सुबह 5:30 बजते ही घर से अपने खेत में बिना असफलता के काम करने जाती हैं।
वह अपने स्वस्थ के प्रति सचेत रहती है और नियमित स्वास्थ्य जांच (जैसे Blood Pressure और Sugar मापदंड) के लिए जाती हैं| वह अपने खाने-पीने का भरपूर ध्यान रखती है और अपने भोजन को आनंद से खाती है| वह हमेशा स्थानीय और ताजा उपजा जैसे बाजरा, हरी सब्जियां आदि और मटन बिरयानी का सेवन करती है और गर्म पानी पीती है|
पप्पम्मल राजनीतिक और सामाजिक मोर्चे पर भी सक्रिय रही हैं। वह 1959 में अपने गांव की पार्षद थीं। वह द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK) की सदस्य हैं और एम. करुणानिधि की एक उत्साही प्रशंसक हैं। TNAU द्वारा उन्हें विशेष बहस के लिए भी आमंत्रित किया गया था।
पप्पाम्मल के अनुसार 60-70 साल पहले तक तो जैविक खेती का ही चलन था, लेकिन फिर धीरे-धीरे बाहरी कंपनियां आई, जिन्होंने किसानों को अधिक उपज का लालच दिया और रसायनों के नाम पर कई तरह के जहर फसलों में डाले जाने लगे| लेकिन अब महानगरों में लोग कुछ साल से अपनी सेहत के प्रति अधिक सचेत हो रहे हैं, इसलिए खान-पान में बड़े स्तर पर बदलाव हो रहा है| जैविक खेती द्वारा उपजे फल-सब्जियों की मांग बढ़ी है और इसमें आमदनी का रास्ता भी खुलता जा रहा है|
Jagdisha का हर किसान साथियों से अनुरोध करता है कि वह भी बाहरी कंपनियां के जहर को त्याग कर पप्पाम्मल दादी की तरह पौराणिक ढंग से खेती करें|