भारतीय महिला खिलाड़ी और सबसे लंबी दूरी तय करने वाली तैराक थीं, ‘भारत की जलपरी’ आरती साहा | साल 1945 से 1951 तक उन्होंने बहुत सी तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और 22 पुरस्कार अपने नाम किए |
11 साल की छोटी सी उम्र में ही आरती साहा ने ओलंपिक में तैराकी में भारत का प्रतिनिधित्व किया था| आज तक ओलंपिक में सबसे कम उम्र की तैराक के रूप में हिस्सा लेने का रिकॉर्ड उनके पास ही है |
उन्होंने 4 साल की छोटी उम्र से ही तैरना शुरू कर दिया था| उनकी तैराकी की प्रतिभा को सचिन नाग ने पहचाना| भारतीय तैराक मिहिर सेन से प्रेरित होकर उन्होंने इंग्लिश चैनल को पार करने का निर्णय लिया|
आरती साहा ने केवल 19 साल की उम्र में 29 सितंबर, 1959 में इंग्लिश चैनल पार कर भारत व एशिया की पहली महिला तैराक बन इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया | 1960 में, वह पद्म श्री से सम्मानित होने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गईं |
इतना ही नहीं आरती साहा के नाम की डाक विभाग द्वारा 1999 में इंग्लिश चैनल पर उनकी विजय के सम्मान में 3 रुपये की डाक टिकट जारी की गईं थी|
1996 में, आरती साहा के आवास के पास उनकी एक प्रतिमा लगाई गई| मूर्ति के सामने वाली 100 मीटर लंबी गली का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया गया| 24 सितंबर 2020, में उनके 80वां जन्मदिन पर गूगल द्वारा उनका डूडल बनाकर सम्मानित किया|
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जीवनी
आरती साहा का जन्म मध्यम वर्गीय बंगाली हिंदू परिवार में 24 सितम्बर, 1940 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था| उनके पिता का नाम पंचगोपाल साहा था| उसके पिता सशस्त्र बल में एक साधारण कर्मचारी थे| वह तीन बहन भाई में दूसरी और दो बहनों में बड़ी थीं|
जब वह ढाई साल की थी, तब उनकी माँ का स्वर्गवास हो गया था| उनके बड़े भाई और छोटी बहन भारती का पालन-पोषण मामा के घर पर हुआ, जबकि उनकी परवरिश दादी के सानिध्य में उत्तरी कोलकाता में हुई|
4 साल की उम्र में वह अपने चाचा के साथ चम्पाताल घाट पर स्नान के लिए जाने लगी जहाँ उन्होंने तैरना सीखा| पंचगोपाल साहा ने जब अपनी बेटी की तैराकी में रुचि को देखा, तब उन्होंने हतखोला स्विमिंग क्लब में उनका प्रवेश कराया|
आरती साहा की सफलता के पीछे उनके गुरु सचिन नाग का भी योगदान रहा| सचिन नाग वह हैं जिन्होंने एशियन गेम्स में भारत के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता था| उनके प्रशिक्षण में आरती साहा ने तैराकी के गुण सीखे| 1946 में केवल 5 साल की उम्र में उन्होंने शैलेंद्र मेमोरियल तैराकी प्रतियोगिता में 110 गज फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक जीता, यह उनकी तैराकी करियर की शुरुआत थी|
साल 1946 से 1956 के बीच, आरती साहा ने अनेक तैराकी प्रतियोगिताओं में भाग लिया| साल 1945 से 1951 के बीच उन्होंने पश्चिम बंगाल में 22 राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में जीत का बिगुल बजाया| उनकी मुख्य स्पर्धाएँ 100मी. फ्रीस्टाइल, 100मी. ब्रेस्ट स्ट्रोक और 200मी. ब्रेस्ट स्ट्रोक थी| वें बॉम्बे की डॉली नजीर के बाद दूसरे स्थान पर आई|
1948 में, आरती साहा मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का हिस्सा बनी| उन्होंने 100मी. फ़्रीस्टाइल और 200मी. ब्रेस्ट स्ट्रोक में रजत और 200मी. फ़्रीस्टाइल में कांस्य पदक जीते| उन्होंने 1949 में अखिल भारतीय रिकॉर्ड बनाया|
साल 1951 में पश्चिम बंगाल राज्य की बैठक में, उन्होंने 100मी. ब्रेस्ट स्ट्रोक में 1 मिनट 37.6 सेकंड का समय लिया और डॉली नजीर के अखिल भारतीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया|
उन्होंने 100मी. फ़्रीस्टाइल, 200मी. फ़्रीस्टाइल और 100मी. बैक स्ट्रोक में नया राज्य-स्तरीय रिकॉर्ड स्थापित किया|
आरती साहा ने साल 1952 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में डॉली नजीर के साथ भारत का प्रतिनिधित्व किया, वह चार महिला प्रतिभागियों में से एक थीं| और भारतीय दल की सबसे कम उम्र की सदस्य थीं| ओलंपिक में, उन्होंने 200मी. ब्रेस्ट स्ट्रोक इवेंट में भाग लिया| हीट्स में उन्होंने 3 मिनट 40.8 सेकंड का समय अंकित कराया। ओलंपिक से लौटने के बाद, वह अपनी बहन भारती साहा से 100 मीटर फ्रीस्टाइल में हार गई| उसके बाद से उन्होंने केवल ब्रेस्ट स्ट्रोक पर अपना ध्यान केंद्रित किया|
इंग्लिश चैनल पार करने की यात्रा
आरती साहा गंगा में लंबी दूरी की तैराकी प्रतियोगिता में भाग लेती थीं| उन्हें इंग्लिश चैनल पार करने की पहली प्रेरणा बांग्लादेशी तैराक ब्रजेन दास से मिली| 1958 में बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग दौड़ में, ब्रजेन दास ने पुरुषों में पहला स्थान प्राप्त किया| और उन्हें इंग्लिश चैनल को पार करने वाले भारतीय उपमहादेश के पहले व्यक्ति होने का गौरव प्राप्त हुआ|
संयुक्त राज्य अमेरिका में डेनिश मूल की महिला तैराक ग्रेटा एंडरसन ने 11 घंटे और 1 मिनट में दोनों पुरुषों और महिलाओं के बीच पहला स्थान अपने नाम किया| ग्रेटा एंडरसन से दुनिया भर की महिला तैराकों को प्रेरणा मिली|
आरती साहा ने ब्रजेन दास को उनकी जीत के लिए एक बधाई संदेश भेजा, उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि वह भी इसे प्राप्त करने में सक्षम होंगी| उन्होंने अगले साल के कार्यक्रम के लिए बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग दौड़ के आयोजकों के लिए आरती साहा का नाम प्रस्तावित किया।
ब्रजेन दास के प्रोत्साहन से, आरती साहा ने इस आयोजन का हिस्सा बनने का लक्ष्य तय किया| मिहिर सेन ने उसके निर्णय का स्वागत किया और उन्हें प्रोत्साहित किया| उनके इरादे में दृढ़ता का संचार मिहिर सेन के कारण भी हुआ| मिहिर सेन एक प्रसिद्ध भारतीय लंबी दूरी के तैराक और वकील थे| वह 1958 में डोवर से कैलिस तक इंग्लिश चैनल को जीतने वाले पहले एशियाई थे| और उन्होंने चौथे सबसे तेज समय (14 घंटे और 45 मिनट) में ऐसा किया|
हतखोला स्विमिंग क्लब के सहायक कार्यकारी सचिव डॉ. अरुण गुप्ता ने कार्यक्रम में आरती की भागीदारी को व्यवस्थित करने के लिए प्रमुख पहल की| उन्होंने फंड जुटाने के कार्यक्रमों को आयोजित कर आरती साहा के तैराकी कौशल को प्रदर्शित किया|
उनके अलावा, जैमिनिनाथ दास, गौर मुखर्जी और परिमल साहा ने भी आरती की यात्रा के आयोजन में उनकी सहायता की| हालाँकि, उनके सहानुभूति के ईमानदार प्रयासों के बावजूद, अवश्यक धन जुटाने में सफल नहीं हुए थे| उस समय प्रख्यात सामाजिक कार्यकारी संभुनाथ मुखर्जी और अजय घोषाल ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय से बात की| उन्होंने 11,000 की राशि की व्यवस्था की| भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी आरती साहा के प्रयासों में रूची दिखाई|
जब आरती साहा की यात्रा की धन राशि की व्यवस्था की जा रही थी, तब उन्होंने अपना प्रशिक्षण शुरू किया| उनकी तैयारी का एक प्रमुख भाग लंबे समय तक तैरना था| 13 अप्रैल 1959 को, उन्होंने ने देशबंधु पार्क में तालाब पर 8 घंटे तक लगातार तैरकर, प्रसिद्ध तैराकों और हजारों समर्थकों की उपस्थिति में प्रशंसा प्राप्त की| उसके बाद में वह लगातार 16 घंटे तक तैरती रही, उन्होंने आखिरी 70 मीटर तक दौड़ लगाई और फिर भी थकान का कोई लक्षण नहीं दिखा|
24 जुलाई 1959, वह अपने प्रबंधक डॉ. अरुण गुप्ता के साथ इंग्लैंड के लिए प्रयाण किया| मूलभूत अभ्यास के पश्चात, उन्होंने 13 अगस्त को इंग्लिश चैनल में अपना अंतिम अभ्यास प्रारंभ किया|
आरती साहा को 1959 के बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस में भाग लेने वाले डॉ. बिमल चंद्रा ने आवश्यक सलाह दी| जो नेपल्स, इटली में एक अन्य तैराकी प्रतियोगिता से इंग्लैंड पहुंचे थे|
प्रतियोगिता में 23 देशों की 5 महिलाओं सहित कुल 58 प्रतिभागियों ने हिस्सा ललिय| प्रतियोगिता 27 अगस्त 1959 को केप ग्रिस नेज़, फ्रांस से सैंडगेट, इंग्लैंड के लिए स्थानीय समयानुसार 1 बजे निर्धारित की गई थी| हालांकि, आरती साहा की पायलट नाव समय पर नहीं पहुंची, उन्हें 40 मिनट की देरी से शुरू करना पड़ा और अनुकूल स्थिति खो दी|
सुबह 11 बजे तक वह 40 मील से अधिक तैर चुकी थी और इंग्लैंड तट के 5 मील के दायरे में आ गई थी| उस समय उन्हें विपरीत दिशा से आई मजबूत लहरों का सामना करना पड़ा| परिणामस्वरूप, शाम 4 बजे तक, वह केवल दो मील तक तैर पाईं| फिर भी वह रूकना नही चाहती थी और अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ थी, लेकिन उन्हें अपने पायलट के दबाव में आकर रूकना पड़ा|
असफलता एक इंच मात्र भी उनके इरादे को टस से मस नही कर पाई| आरती साहा अपनी मंजिल की ओर दृढ़ता से बढ़ने को तैयार थी| उन्होंने स्वयं को दूसरे प्रयास के लिए मजबूत किया|
उनके प्रबंधक डॉ. अरुण गुप्ता की बीमारी ने उनकी स्थिति को मुश्किल बना दिया, लेकिन उन्होंने अपने अभ्यास को नही छोड़ा| एक महीने बाद 29 सितंबर 1959 को, उन्होंने अपना दूसरा प्रयास किया|
आरती साहा फ्रांस के केप ग्रिस नेज़ से शुरूआत कर, 16 घंटे और 20 मिनट तक तैरती रही| वें कड़ी लहरों से जूझते हुए और 42 मील की दूरी तय करके सैंडगेट, इंग्लैंड पहुंची| इंग्लैंड तट पर पहुँच कर, उन्होंने तिरंगा फहराया|
विजयलक्ष्मी पंडित ने सबसे पहले उन्हें बधाई दी| पं. जवाहर लाल नेहरू और कई प्रतिष्ठित लोगों ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें बधाई दी| 30 सितंबर को, ऑल इंडिया रेडियो ने आरती साहा की उपलब्धि की घोषणा की|
व्यक्तिगत जीवन
आरती साहा ने सिटी कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की थी| उन्होंने 1959 में, डॉ. बिधान चंद्र रॉय की देखरेख में, अपने प्रबंधक डॉ. अरुण गुप्ता से शादी की थी| पहले उन्होंने कोर्ट मैरिज की और बाद में सामाजिक ढंग से विवाह किया| उनका ससुराल तारक चटर्जी लेन में था| जो उनकी दादी के घर के पास था|
शादी के बाद उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम अर्चना हैं| वह बंगाल नागपुर रेलवे में कार्यरत थीं|
मृत्यु
4 अगस्त 1994 में, वह पीलिया और इन्सेफेलाइटिस बिमारी के कारण कोलकाता में एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती हुई| 19 दिनों तक अपनी बिमारी से जूझने के बाद, 23 अगस्त 1994 को आरती साहा पंचभूतो में विलीन हो गईं|
निरंतरता ही जीवन यात्रा का मूल मंत्र है, जो रूक गया उसने स्वयं ही अपने जीवन को कालकोठरी मे बंद कर डाला|
Jagdisha, भारत की जलपरी को दंडवत प्रणाम करते हैं| आप निरंतर प्रयासों और लक्ष्य के प्रति गहन सजगता की महान प्रेरणा हो|