kalavati devi

“स्वच्छता है एक बड़ा अभियान, आप भी अपना दे योगदान”

 
उत्तर प्रदेश के कानपुर की रहने वाली 59 वर्षीय राजमिस्त्री कलावती देवी अब तक 4000 से अधिक शौचालय बना चुकी हैं| घर-घर जा कर खुले में शौच से होने वाली बीमारियों के प्रति फैलाती हैं, लोगो में जागरूकता|
परिवार में कमाने वाली वह हैं इकलौती सदस्य, पति और दामाद की मृत्यु के बाद भी नही खोया था हौसला| कानपुर को खुले में शौच से मुक्त बनाने में कलावती देवी की है, अहम भूमिका| उनके इस योगदान के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था|
आइये जानते है, दृढ़ संकल्पी कलावती देवी के सराहनीय प्रयासों की कहानी कि कैसे इन्होंने घर-घर जाकर गंदी बस्ती वालो को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया और लड़कियों व महिलाओं के अभिमान की अनिवार्यता को समझाया|
कलावती देवी पेशे से एक राजमिस्त्री है और उन्होंने अपने शहर में सभी झुग्गियों और निचले आय वाले इलाकों में शौचालय बनाने के मिशन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया हैं|
कलावती देवी 1962 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर गाँव मे जन्मी थी| केवल 13 वर्ष की आयु मे इनका विवाह 18 वर्षीय युवक जयराज सिंह के साथ हो गया था| उनके पति राजमिस्त्री थे और वह श्रमिक भारती नामक एक गैर-लाभकारी समूह के लिए फर्श कटर के रूप में भी कार्यरत थे| शादी के बाद वह पति के साथ कानपुर में झुग्गी बस्ती राजा का पुरवा में आकर रहने लगी|
कलावती देवी ने कभी स्कूल की शक्ल भी नहीं देखी, लेकिन स्वच्छता का महत्व भली-भांति तरह समझती थी| उनके हृदय से हमेशा समाज के लिए कुछ बेहतर करने की उत्तेजना बचपन से उठती थी| लगभग 700 लोगों की आबादी वाले इस पूरे इलाके में एक भी शौचालय नहीं था| सभी लोग खुले में शौच के लिए जाते थे|
“कोई सपना सोचने से नहीं पूरा होता हैं उसके लिए आपको, दृढ़ संकल्प के साथ कड़ी मेहनत करनी होती हैं|”
कलावती देवी को खुले मे शौंच करना बिल्कुल पसंद नहीं था और उन्हें ऐसे लोगों पर भी बहुत गुस्सा आता था| ऐसे ही खुले मे मल-मूत्र त्यागना मानो इस पृथ्वी का नरक स्थान है|
उन्होंने उस बस्ती को स्वच्छ बनाने का निर्णय किया| उन्होंने राजमिस्त्री का काम सिखा और अपने क्षेत्र में शौचालय बनाने का मजबूत इरादा किया| उनकी इच्छा और नेक इरादे में उनके पति ने भी उनका पूर्ण सहयोग दिया| वह अपने पति के साथ श्रमिक भारती संस्था से जुड़ी|
2 दशक पूर्व उन्होंने 10-20 सीट की सुविधा के सामुदायिक शौचालय के निर्माण के विचार की अपनी योजना श्रमिक भारती संस्था से साझा की| सरकारी योजना के लिए स्थानीय निगमों से संपर्क किया गया और उन्होंने योजना के तहत 1/3 भाग यानी 1लाख रुपये उस क्षेत्र के स्थानीय निवासी जुटा ले, तो बाकी 2लाख रुपये योजने की पेशकश की| हालांकि यह काम आसान नही था, क्योंकि अपनी परिस्थितियों को कसूरवार बता हारे हुए लोगो को समझाना सबसे बडी परीक्षा थी|
उनकी बस्ती के लोग इस काम के लिए उन्हें व्यंग कसते थे| मोहल्ले में लोग जमीन खाली करने के लिए तैयार नहीं थे| लोगों को शौचालय की जरूरत समझ में नहीं आ रही थी| परन्तु उन्होंने हार नही मानी घर-घर जाकर लोगो को समझाया|
बस्ती वालो को समझाया कि आस-पास की गंदगी के कारण बिमारिया फैलती है| और इसी कारण मोहल्ले के हर घर मे कोई न कोई बिमार पडा रहता हैं, जिसके कारण इलाज और दवाइयों का भार भी बढ़ता हैं| महिलाओं और किशोरियों को भी अधिकतर शर्मिंदा होना पड़ता हैं| इस तरह काफी समझाने के बाद वहाँ के लोग राजी हुए| और उन्होंने राजा का पुरवा बस्ती में पहला सामुदायिक शौचालय बनाया|
कलावती देवी की दो बेटियाँ हैं| जिनके लालन पालन के साथ-साथ उन्होंने स्वच्छता मिशन भी जारी रखा| बाद में उन्होंने तत्कालीन नगर निगम के आयुक्त से दूसरी झुग्गी बस्तियों में शौचालय निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा|
अधिकारी प्रयासों से सहमत हुए|  कई बार के समझाने के बाद उन इलाको मे रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों, रिक्शा चालको से लागत का 1/3 भाग इकट्ठा किया और समय के साथ-साथ परिस्थितियां बदलने लगी और कलावती देवी ने अपने हाथों से 50 से अधिक सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया|
कलावती देवी शौचालय निमार्ण के कार्य को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना निरंतर अपनी मंजिल की ओर बढ़ती रही| उनके पति की मृत्यु हो चुकी है|
50 वर्ष की आयु में उनके साथ अमानवीय व्यवहार हुआ| जब वह एक बस्ती मे स्वच्छता और शौचालय की आवश्यकता को समझाने पहुँची, तब कुछ क्षीण बुद्धि पुरूषों ने उनका बलात्कार किया और उनके साथ क्रूरता करते हुए उन्हें बुरी तरह पीटा भी|
उनकी किशोर बेटी इतनी भयभीत हो गईं थी, कि वह अपनी माँ को छोड़ अपनी शादीशुदा बहन के साथ दूसरे इलाके में रहने के लिए चली गईं| दुर्भाग्य से, इस घटना की शिकायत न होने के कारण कोई कार्यवाही नही हुई|
कलावती देवी की दोनो बेटियों की शादी हो चुकी है| बड़ी बेटी के पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद से ही उनकी बेटी और उसके दो बच्चे भी उन्हीं के साथ रहते हैं|
कलावती देवी परिवार में इकलौती कमाने वाली सदस्य हैं| मुश्किल दौर से गुजरने के बाद भी कलावती देवी ने समाज सुधार के लिए शौचालय निर्माण कार्य जारी रखा|
59 वर्ष की उम्र में कलावती देवी 4000 से अधिक शौचालय बना चुकी हैं| और बढ़ती उम्र के पड़ाव में भी वह रूक नही रही हैं, निरंतर अपने मिशन की ओर बढ़ती जा रही हैं|
कलावती देवी मिसाल हैं हर कम पढ़ी लिखी, अनपढ़ और कम अवसर प्राप्त महिलाओं के लिए जो परिस्थितियों से लड़े बिना अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाती|
Jagdisha ऐसी निडर, निश्चयवादी और  आशावादी महिला को सलाम करते हुए उनके अभीष्ट लक्ष्य की निरंतरता की कामनायें करते है|

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