अपने सपनो को पंख लगा भरी एक मातृत्व उर्जा ने उडान और शुरु की अपने असहज सपनो की यात्रा| यह यात्रा है एक माँ की जिनके मातृत्व भावनाओं को कष्ट पहुँचने पर बजा दिया बिगुल और अपनी Infosys की अच्छी वेतन वाली नौकरी छोड अपनी सभ्यता और संस्कृति के साथ प्रत्यक्ष कर रही है सही स्वाद के साथ महाराष्ट्रीयन व्यंजनों की लम्बी सूची को|
यह कहानी है जयंती कठाले की, वह प्रेरणा है हर एक उस महिला की जो रूकावटो और कठिनाइयों के भय से अपने सपनो की आहुति दे देती है| जयंती कठाले पूर्णब्रह्म महाराष्ट्रीयन Restaurant(भोजनलय) की संस्थापक हैं| उनके दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास और जुनून के साथ अपने पथ की ओर हर मुश्किल का बिना रूके सामना करते हुए सफलतापूर्वक वह देश-विदेश मे 14 रेस्टोरेंट चला रही है|
जयंती कठाले महाराष्ट्र के नागपुर शहर मे पली बडी है| उन्होंने MCA से स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की है| वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, और अपनी शिक्षा पूरी कर उन्होंने बैंगलोर मे Infosys मे प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्य किया हैं| उनके पति प्रणव कठाले Wipro के साथ कार्यरत है और उनके दो बच्चे, बडी बेटी देवेश्वरी और छोटा बेटा पार्थ है| जयंती पढ़ने की भी शौकीन हैं|
पूर्णब्रह्म विश्व मे सबसे बडा महाराष्ट्रियन फूड रेस्टोरेंट है, जिसकी 14 शाखाएँ देश के अलग-अलग राज्यो और ऑस्ट्रेलिया, USA जैसे विदेशो मे अपनी ऊँची पहचान बनाए हुए है| पूर्णब्रह्म शाकाहारी प्रामाणिक महाराष्ट्रियन व्यंजनों जैसे मसालेदार मिसल पाव, दाल का दूल्हा, साबुदाना वड़ा से लेकर मिठाई श्रीखंड पुरी और पूरन पोली तक, जयंती के रेस्तरां सही मराठी स्वाद की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करते हैं।
पूर्णब्रह्म मे ऑनलाइन होम शेफ की कडीयो को भी जोडा जा रहा है|
होम शेफ अवधारणा के तहत पूर्णब्रह्म घर से जुडी महिलाओ को कोविड काल से 3 दिनो की ऑनलाइन क्लास देते है| जिसके अंतर्गत उन महिलाओ या पुरूषों (जो Home chef concept को स्वीकारते है) को महाराष्ट्रियन भोजन, उत्तर भारतीय भोजन और नॉनवेज भोजन की विधियां सिखाते है| उसके बाद होम शेफ किट दी जाती है l
फिर आवेदन भरवाया जाता हैं और उनकी ऑनलाइन दुकान खुलवा दी जाती है| और वे घर से ही अपना व्यापार शुरू कर उसे सुचारु रूप से चला रहे हैं|
पूर्णब्रह्म ऑनलाइन होम शेफ प्रशिक्षण के दस केंद्र चल रहे है| आठ देश के अंदर और 2 दो US मे|
पूर्णब्रह्म ऑनलाइन होम शेफ प्रशिक्षण केंद्र दिल्ली, मुम्बई, पुणे, बैंगलोर और US मे सफलता पूर्वक चल रहे है|
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Jagdisha के साथ खास संवाद :
सॉफ्टवेयर इंजीनियर से उद्यमी बनने का सफर कैसे शुरू हुआ?
19साल हो गये हैं नागपुर से बैंगलोर आए, 2002 मे सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग से इंटर्नशिप के लिये बैंगलोर आई और यहाँ नौकरी लग गई| MCA पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद नागपुर कॉलेज परिसर(Campus) में भर्ती के लिए कंपनियाँ आई और Infosys कंपनी मे प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत हुई|
2004 मे प्रणव (पति) बैंगलोर मे Wipro के साथ कार्यरत हुए और फिर कुछ समय बाद ही मैं भी वही शिफ्ट हो गई| शुरूवात के महिने अच्छे व्यतीत हुए लेकिन फिर अपने खाने की जो हमने हमेशा से खाया है उसकी मृग तृष्णा हुई|
अगर हमे पूरनपोली, बासुंदी, मिसल पाव आदि खाने की इच्छा है तो वह बैंगलोर मे कही मिलता ही नही, वह खाने के लिए Mom-Dad को बुला कर या उनसे पूछकर स्वंय बनाओ लेकिन बहार से खरीदने का कोई विकल्प ही नही था|
महाराष्ट्रियन व्यंजन के नाम पर सिर्फ वडापाव या पोहे, जिनमे भी वो सही स्वाद गायब था| वडापाव या पोहा ही केवल महाराष्ट्रियन व्यंजन संस्कृति का हिस्सा नही, बल्कि विशाल विविधता वाले व्यजनो की लम्बी श्रृंखला है, जिस विषय से कोई अवगत ही नही है| ये सब बहुत खलता था, कि इस समस्या का कोई तो कुछ समाधान करे, लेकिन फिर यह सोचा कोई ओर क्यो मैं ही क्यो नही कर सकती|
एक कोलाहल दिमाग मे मच रहा था, लेकिन अभी बदलाव की यह इच्छा पूर्ण रूप से दृढ़ नही हुई थी|
2006 मे प्रणव का स्थानंतरण ऑस्ट्रेलिया हो गया था| वहाँ पर भी अपने पसंदीदा खाने का कोई विकल्प नहीं था|
पति प्रणव को काम के सिलसिले मे पेरिस जाना हुआ लेकिन पूर्ण शाकाहारी होने के कारण वहाँ ढंग का कुछ खाने को ही नही था तब उन्होंने अइफ़िल टावर के सामने प्रथम प्रेम पत्र लिखा
प्रिय मोनी,
तुझिको पाठला वेते, क्या करू? कुछ नही खाया है, बहुत भूख लगी है| बाकी बाते बाद मे करेगे|’
और पत्र लिखते हुए उनकी आँखों से आंसू की एक बूंद टपकी, जिसका चिन्ह आज भी उस पत्र पर है| तब दिल से यह आवाज आई ये जहाँ भी जाएँ उन्हें वहाँ उसका पसंदीदा खाना मिल जाए| अभी भी एक बडे बदलाव की ओर जाने की राह को नही चुना था|
2008 मे ऑस्ट्रेलिया से वापस लोटते समय बोर्डिंग पास लेते हुए हमने अपने शाकाहारी होने का नही बताया था और उस पूरी उडान के समय हमे खाने के लिये सिर्फ़ फलो, ब्रेड और मखन पर ही निर्भर रखना पडा| 27 घंटे का वह सफर जिसमे एक छोटे बच्चे की माँ जिसका बच्चा अपनी भूख के लिए उस पर निर्भर हैं|
बहुत कष्टदायक स्थिति है एक माँ के लिए और उस दिन संकल्प ले लिया| पति से कहाँ अब तो महाराष्ट्रियन फूड का रेस्टोरेंट ही खुलेगा|
3 साल लगे पूरा मेन्यू तैयार करने मे| महाराष्ट्रियन फूड बहुत विशाल है| हर खाने का अपना अलग स्वाद है, और अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार बटा हुआ है| हर व्यंजन को बनाने का अपना एक तरीका और विज्ञान है|
Mummy-Daddy द्वारा बचपन से ही फोकस करना सिखाया गया था| आजी (नानी) ने सिखाया था, कि पाकगृह एक विज्ञान प्रयोगशाला के समान है, जहाँ अलग-अलग सूत्रधार के अनुसार व्यजनो को सही सूत्र के साथ अपने परिवार और चाहनेवालो के लिए भोजन तैयार किया जाता है|
सही सूत्रधार का ज्ञान तो तभी से हो गया था, उसी को अग्रणी रखते हुआ सबसे पहले 4500 वर्ग फुट की जगह से 2012 मे “पूर्णब्रह्म” महाराष्ट्रियन फूड का सबसे पहला रेस्टोरेंट खोला|
आपने अपने वेंचर को पूर्णब्रह्म ही क्यों नाम दिया?
पूर्णब्रह्म आजी का दिया हुआ नाम है| आजी ने हमेशा सिखाया था अन्न ही पूर्ण ब्रह्म है| घर मे भी यह नियम था कि अगर किसी भी बहन-भाई मे से किसी ने बर्तन मे खाना छोडा तो उसे सबके बर्तन धोने पडते थे और जो पूरा खाना खाता उसे ₹1 मिलता था| उस वक्त पता नही था बचपन के ये संस्कार मेरे व्यापार के मूल्य प्रस्ताव बनेंगे|
पूर्णब्रह्म के ये नियम है, अगर कोई ग्राहक खाना छोड़ता है तो उसे 2% ज्यादा मूल्य देना होगा और जो ग्राहक अपना खाना पूरा खाता है, उसे उसके खाने के मूल्य में 5% की छूट दी जाती है
आपकी शिक्षा आपके वेंचर के लिए कैसे सहायक हुई?
क्योंकि मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ और डिज़ाइनिग करना जानती हूँ | जिस कारण मेन्यू डिज़ाइन करना बेहद आसान रहा| Infosys ने कार्य की योजना करना सिखाया था तो मालूम था, अगर ‘ए’ योजना सफल नही हुई तो ओर 26 वर्णमाला(alphabet) है योजना को सुलझाने के लिए| समस्याओं का समाधान करना IT से ही सिखा|
आपने अपने वेंचर के लिए धन कैसे जुटाया?
सबसे पहले तो परिवार का सहयोग महत्वपूर्ण होता हैं, क्योंकि किसी कंपनी मे काम करना और अपनी कंपनी खडी करने मे बहुत अंतर है| पूर्णब्रह्म के लिये मुझे ज्यादा समय की आवश्यकता थी, जिससे घर की ओर ज्यादा ध्यान दे पाना संभव नही था| यह संतुलन बिठाना भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है|
अब योजना तो पूरी तरह तैयार थी लेकिन पैसा कहाँ था| पति को हर साल बोनस मिलता था, जिसका अधिकतर प्रयोग हम घर का सामान खरीदने या कही घुमने जाने मे किया करते थे| सबसे पहले वह बोनस मूल्य पति से माँगा और उन्होंने मुझे खुशी-खुशी दे भी दिया| लेकिन यह धनराशि पर्याप्त नही थी|
इसलिए नंनद और एक दोस्त की सहायता से धन अर्जित किया और कुछ सहभागी जोडे| अभी भी पर्याप्त धनराशि नही जुडी थी, तो छोटे स्तर से पायलट परियोजना से शुरूवात की फिर किसी ने बताया MSME के तहत लोन ले सकते है|
क्योंकि Infosys मे प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप मे काम किया था तो योजना तैयार करनी आती थी| वित्तीय योजना के लिए CA था, जिसने वित्तीय दस्तावेज तैयार किये और मैंने कार्य की योजना तैयार की|
इस तरह 3 दिनो मे अनुमोदन (approval) मिला और 7 दिनो मे 75 लाख रूपये खाते मे आ गये|
फिर पूर्णब्रह्म के लिए कम से कम पूंजी मे बिना किसी आंतरिक साजसज्जा विशेषज्ञ के मैंने खुद आंतरिक साजसज्जा (interior design) करवाई और मेरे ख्वाबों का पूर्णब्रह्म अपनी स्थिति मे आ गया|
आपको किन समस्याओं का सामना करना पडा और आपने समस्या प्रबंधन कैसे किये?
अच्छे लोगो के साथ-साथ बुरे लोग भी जीवन मे मिलते है वैसे ही बुरे लोगो से मेरा भी सामना हुआ है, जो मिडीया का ढोग लेकर आये थे| उन्होंने दिमक की तरह मेरा व्यापार खाना शुरू कर दिया| ऐसे लोगो को हटाने के लिए मुझे अपने गहने और बेटी तक के गहने कर्जे पर रखने पडे|कर्मचारियों का भी वेतन रोका|
लेकिन पिछे हटने का कभी नही सोचा| हार नही मानी, बच्चो से भी माफी माँगली क्योंकि उन्हें पर्याप्त समय नही दे पा रही थी|
मैं मेरे ख्वाबों की ओर भाग रही थी| अगर मैं रूक जाती तो शायद वह गलत प्रभाव पडता बच्चो पर भी और वो भी कही अपने ख्वाबों को कुचल न दें|
ख्वाबों का भार कभी दूसरो पर नही डालना चाहिए| अपने ख्वाबों को जीना है, तो खुद ही मेहनत भी करनी होगी|
मैं एक बार को बहुत परेशानी में आ गई थी, लेकिन मैंने जो शुरू किया वो मेरी ही जिम्मेदारी है| मै महिला उद्यमी का समाज मे जो नया स्त्रोत बना रही थी, वह भी बंद हो जाता और सबसे बडी बात मेरे लिए थी कि महाराष्ट्रियन फूड की विविधता जो एक रेस्टोरेंट मे मिलती है वो भी अस्तित्व खो देती| ऐसा मैं कभी नही होने दे सकती थी|
और चाहे कुछ भी हो “हर सौजन्य के पिछे महालक्ष्मी ही होती है”|
व्यावसायिक कैरियर में आपका सबसे संतोषजनक और अविस्मरणीय पल क्या रहा हैं?
बहुत से अविस्मरणीय पल है परन्तु सबसे ज्यादा संतोषजनक पल वह है| कोविड संक्रामिक एक व्यक्ति जो अस्पताल मे भर्ती था, और उसे किसी से भी बात करने की अनुमति नही थी|
उसके पास फोन था, जिसमे उसने मेरी एक विडियो देखी और फिर अपनी एक विडियो बनाई| जिसमे उस व्यक्ति ने कहा, कि जयंती कठाले की विडियो देख कर मेरी जीने की तमन्ना जाग ऊठी है| कोविड से कब बहार निकलूंगा| खुद का सपना पूरा करने की ताकत के साथ बहार आऊँगा| हे भगवान मुझे मरने मत देना, क्योकि अभी मुझे अपने सपनो को जीना है|
उस व्यक्ति की इस विडियो को देख कर लगा मैं सही राह पर हूँ और पूर्ण संतोष की अनुभूति हुई|
आप सफलता को कैसे परिभाषित करेंगी?
सफलता कोई मंजिल नहीं है। यह तो एक रास्ता है| अगर आप सफलता की राह पर चल रहे हैं। हर दिन जो सूरज की किरणो के साथ उठ रहे हो। हर दिन जहां आपके आस-पास अच्छे लोग हैं और आप अपनो के बीच हो। तो आप सफल हैं| हमेशा सुनिश्चित करें कि आपकी आशाएं और विश्वास जीवित है।
जो एक बार कुछ करने का ठान लो, तो बस उसके पीछे जुट जाओ और पीछे बिल्कुल मत हटो|
आपको उद्यमिता की राह में एक महिला के रूप में क्या चुनौतियाँ आई?
सबसे पहले तो यह सवाल था कि रेस्टोरेंट को एक महिला क्यो चाहिए? कोई भी पुरूष संभाल सकता|
लेकिन सिर्फ पुरूषों का समूह नहीं चाहिए, उस समूह में महिला का होना भी अति आवश्यक है| महिला विकल्प नहीं है वो तो चुनाव है|
तकलीफें तो जरूर आई क्योंकि जिनकी नजरो मे खोट होता है, उनके लिए पूरी ढकी स्त्री भी उजागर दिखती है| ऐसे लोगो को चमाट लगाकर समझाना पडा, जिस तरह बुर्खा मुस्लिम महिलाओ का वस्त्र प्रावधान है उसी तरह नौवारी माराठी महिलाओ का वस्त्र प्रावधान है|
आपके अनुसार एक महिला उद्यमी होने के क्या फायदे और नुकसान?
सबसे पहले तो हम औरते बहुत भावुक होती है| छोटी-छोटी बातो पर रो जाते है| अपना महत्व न समझते हुए जल्दी ही बोल पडते हैं ‘मुझसे न हो पाएगा’|
जो बिल्कुल नकारात्मक है, ऐसे विचारों वाली महिलाओं के लिए पूर्णब्रह्म मे कोई स्थान नही है|
अगर एक पुरूष/लडका 20ली. की पानी की बाल्टी उठा सकता है, तो निश्चित ही महिला/लड़की भी उठा सकती है|
“उसकी ताकत को कभी मत नापना”
पूर्णब्रह्म मे अगर कोई महिला मासिक धर्म से गुजर रही है, उस वक्त जरूर उसकी कोई मदद कर सकता है|
हर वक्त रोते नही रहना चाहिए| मेरे पास ये नही है, वो नहीं है बल्कि जो है उसी को सुनहरा अवसर बनाओ|
क्या नया है आपके रेस्टोरेंट मे जो आपको दूसरों से अलग और विशिष्ट बनाती है?
हम अपने भोजन में सोडा, रंग और परिरक्षकों का उपयोग नहीं करते हैं। हम ग्राहकों को भोजन परोसने से पहले अपने कर्मचारियों को भोजन परोस कर जाँच करते हैं। हमारे यहाँ संगीत और पानी की चिकित्साविधान गतिविधियाँ होती हैं।
आपकी टीम में कितने लोग हैं?
150 सदस्यों की पूरी टीम है लेकिन लॉकडाउन के बाद 14 मे से केवल 4 शाखाएँ ही खुल रही हैं| जिसमे 70 लोगो की टीम काम कर रही है|
आपकी भविष्य की क्या योजनाएँ है?
पूरे विश्व में 5000 पूर्णब्रह्म रेस्टोरेंट तो खोलने हे| अगर McDonalds and Dominos जैसी विदेशी कंपनियां 17 से 18 हजार शाखाएँ खोल सकती है| फिर 5 हजार तो देशी होने ही चाहिए|
जहाँ-जहाँ जरूरत है वहाँ-वहाँ तो पूर्णब्रह्म रेस्टोरेंट चाहिए ही|
आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा कौन है?
मेरा बेटा पार्थ और Infosys की मुख्य सुधा मूर्ति मैम|
हर इंसान के जीवन में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान होता| आप इस बात से कितनी सहमत है?
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ| मेरे परिवार ने हमेशा मेरा सहयोग किया और मेरे ख्वाबों की उडान को पंख दिये हैं|
मेरे पति प्रणव मेरे शार्क है, जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया और समझाया धैर्य रखो और संभल कर चलो| निश्चित ही मंजिल का मार्ग सामने ही दिखाई देगा|
माँ और सासू माँ मेरे जीवन की दो सबसे बडी महालक्ष्मी है| जिन्होंने कामकाजी माँ होने के अपने अनुभवों से मुझे यह सिखाया कि पहले योजना बनाओ फिर उसका यथा पालन करो| किसी भी परिस्थिति मे रूकना नही है और न ही अपने कारण किसी को रोकना है|
सम्बन्धों का पूर्ण सार प्रेम और विश्वास है, जो सबसे बडी ताकत होती हैं|
अपने ख्वाबों को यह कभी नही कहना चाहिए कि मेरा तो नसीब ही खराब है|
मैं तो कहती हूँ, मेरा नसीब उत्तम दर्जे का है| जो भगवान ने मुझे इस काम के लिए चुना|
भगवान को जिस दिन इंसानों में देखना शुरू कर दिया, उसी दिन शायद सीख लिया भगवान इधर-उधर नही हमारे साथ है|
क्या आप अपनी सफलता का मंत्र साझा करना चाहेंगी?
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल ,
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया |
(जिगर मुरादाबादी)
आप महिलाओ को क्या सलाह देंगी?
फोकस रहो और अपने ख्वाबों को खुद जियो| किसी ओर पर इसका भार मत डालो और जीवन मे पीछे मुड कर मत देखो|
चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है,
जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते|
(हफ़ीज़ बनारसी)
Jagdisha, जयंती कठालेजी और उनकी आत्मनिर्भरता व साहस को बदलने के जज़्बे को सलाम करता है और उनके इस साहसी कदम से अनेकानेक महिलाओं को हिम्मत और प्रेरणा मिलेगी | निश्चित रूप से समाज के लोग जयंती कठालेजी की हिम्मत और साहस से प्रेरित होंगे |
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