हाथ और पैर दोनो खो दिए पर उम्मीद नही खोई, बन गईं Blade Runner

हाथ और पैर दोनो खो दिए पर उम्मीद नही खोई, बन गईं Blade Runner

लगन वह डोर है जो आपसे वो करवा लेती है !
जिसे करना सबके बस में नहीं होता !!
शालिनी सरस्वती ने एक दुर्लभ जीवाणु रोग से ग्रसित होने के कारण अपने दोनो हाथ और पैर गवा दिए पर आत्मबल को न खोने दिया | 36 साल की उम्र में, उन्होंने भागना शुरू कर दिया और अब अगले साल होने वाले पैरालिम्पिक्स की तैयारी कर रही है। वह एक प्रेरक वक्ता और ब्लॉगर है |
 
शालिनी सरस्वती एक साधारण और खुशहाल शादीशुदा महिला थी | उनके माता-पिता केरल के कोल्लम जिले से हैं , परन्तु शालिनी का जन्म और परवरिश बैंगलोर शहर मे हुई है | उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट मैरी गर्लस हाई स्कूल से की है | उसके बाद उन्होंने बैंगलोर के माउंट कार्मेल कॉलेज से स्नातक की पढाई पूरी की | वें एक डांसर और बीपीओ मे कार्यरत थी |
 
फरवरी 2012 मे शालिनी सरस्वती अपने पति प्रशांत चौदप्पा के साथ अपनी चौथी शादी की सालगिरह पर कम्बोडिया घुमने के लिए गईं थी | उसी बीच उन्हें अपने गर्भवती होने का पता चला | पति-पत्नी दोनो बहुत खुश थे | जीवन मे सब कुछ अच्छा चल रहा था | पर उनके जीवन मे सब बदल गया समय ने एक कठोर पलटी लगा दी थी, वहॉ वह ‘रिकेटमियल एटमॉस’ नामक दुर्लभ जीवाणु रोग के सम्पर्क मे आ गईं जो दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए स्थानिक है |
 

कम्बोडिया से वापस आने के बाद उन्हें बुखार और थकान जैसे लक्षण दिखाई देने लगे | शालिनी सरस्वती ने गर्भावस्था से जुडे लक्षण समझा और अपनी दैनिक जीवन शैली मे निरन्तरता बनाए रखी | हालांकि लक्षण बने रहे, शुरुवाती चिकित्सक जॉच मे ब्लड टेस्ट द्वारा प्लेटलेट संख्या की कमी पाई जाने के कारण डॉक्टरों को डेंगू या मलेरिया होने का संदेह हुआ | परन्तु उनकी हालत दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही थी फिर आगे की चिकित्सक जॉच मे रिकेटमियल एटमॉस दुर्लभ जीवाणु रोग का पता चला | उनकी हालत बिगडने पर उन्हें 1 अप्रैल को शहर के मणिपाल अस्पताल के आईसीयू मे भर्ती कराया गया | उनके शरीर ने जीवाणु से लडने के बजाय उनकी स्वस्थ कोशिकाओ को प्रभावित किया | वह कोमा मे चली गई, उनके कई अंग काम नही कर रहे थे, धडकन भी बंद हो रही थी | उनके फेफडो मे पानी भर गया | डॉक्टरों ने उम्मीद छोड दी थी लेकिन शालिनी सरस्वती अपनी जीवन की लडाई मे विजयी हुई और ठिक अपने जन्म दिन यानी 5 अप्रैल को होश मे आ गई | इस बीच उन्होंने अपने बच्चे को भी अपने गर्भ मे ही खो दिया |

 
शालिनी सरस्वती ने बाद मे आयुर्वेद का सहारा लिया पर कुछ खास असर हुआ नही | सितम्बर 2013 मे उन्हें अपने दोनो हाथ-पैर कटवाने पडे |
 
समय के साथ – साथ उन्होंने अपनी नई स्थिति को स्वीकार कर लिया और अपने आप को बिना हाथ-पैर के अपना लिया | शालिनी सरस्वती ने अपने हाथ-पैर गवाये थे पर अपना होसला नही गवाया | 2014 मे उन्होंने प्रोस्थेटिक पैरो की मदद से फिर चलना शुरू किया | काफी समय से स्थिर रहने के कारण उनका वजन बढ गया था और अब वह स्वस्थ होना चाहती थी | हालांकि जिम जैसी पारंपरिक व्यवस्था उनके अनुकूल नही थी और न ही सही प्रशिक्षक |
 
शालिनी सरस्वती ने एक दोस्त के माध्यम से कोच बीपी अयप्पा से परिचय किया | 2015 मे उनका प्रशिक्षण शुरु हो गया | उन्होंने कोच बीपी अय्यपा की देख-रेख मे हर सुबह कांटेरावा स्टेडियम मे 90 मिनट के लिए अभ्यास करना, चलना और सम्बंधित वर्कआउट करना आरम्भ कर दिया | 2016 मे कोच अय्यपा के सुझाव से उन्होंने दौडना शुरू किया और इसे अपना लक्ष्य बना लिया | उसी वर्ष टीसीएस 10के मे भाग लिया और 2:02 घंटे का समय लेते हुए अपने गन्तव तक पहुँची | 2017 मे अपने समय मे सुधार करते हुए उन्होंने 1:35 घंटे का समय समय लिया | 2018 मे उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के खेल मे भाग लिया और 100 मीटर स्प्रिट मे तृतीय स्थान हासिल किया | शालिनी अब एक निपुण पैरा-एथलीट हैं | वें अगले साल जापान मे होने वाली पैरालिंपिक मे योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण ले रही हैं |
एक पेशेवर एथलीट होने के साथ-साथ शालिनी सरस्वती एक प्रेरक वक्ता और ब्लॉगर भी हैं | वें फर्स्ट सोर्स सॉल्यूशंस बीपीओ कंपनी मे डिप्टी जनरल मैनेजर भी हैं | लॉकडाउन के दौरान शालिनी ने फायरवॉल, एक सिलिकॉन वैली आधारित ऐप के साथ वॉगिग करना शुरु किया जो वास्तविक प्रकरण श्रृंखला की सुविधा देता है | और उपभोक्ताओं को 30 सेकंड की वीडियो खोजने, बनाने और साझा करने मे सक्षमता देता है | शालिनी ने इस ऐप मे “ब्रेकिंग बैरियर – शालिनी 2.0” नाम से आपना जीवन साझा किया | वह अपने विचारो को लिखती है और वीडियो बनाती हैं | फायरवर्क एडिटिंग और मिक्सिंग का काम करती हैं |
 
शालिनी अगस्त के अन्त से हर हफ्ते 5 वीडियो प्रकाशित करती हैं और उनका पेज एक महीने से भी कम समय मे 2,57,154 से अधिक बार देखा गया, जिसमे एक वीडियो 200,000 से अधिक बार देखी गई और अन्य 13,000 से अधिक बार देखी गई है |
 
रास्ते कभी खत्म नहीं होते बस लोग हिम्मत हार जाते है !
तैरना सीखना है तो पानी में उतरना पड़ेगा यूं किनारे पर बैठकर कोई गोताखोर नहीं बनता !!
शालिनी सरस्वती अपके साहस और निडरता को नमन |
 
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