माजिलें क्या है, रास्ता क्या है
हौसला है तो फिर फ़ासला क्या है |
भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी रानी रामपाल ने अपने जुनून और आत्मविश्वास के बल से गरिबी और सामाजिक व्यंग कथनो को हराकर सफलता को हासिल किया है |हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित शाहाबाद मारकंडा निवासी रानी रामपाल ने 6 साल की उम्र से हॉकी खेलना शुरू किया था | आज वे भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान हैं |
रानी रामपाल का सफ़र बिल्कुल भी आसान नही था :
रानी बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं | वें बहन– भाई मे सबसे छोटी है | उनके 2 बडे भाई है | उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे लेकिन 5 लोगों के परिवार के लिए यह बहुत कम था | कच्चा मकान होने के कारण बारिश के वक्त घर के अंदर पानी टपकता था |
वें जब 6 साल की थीं, तब स्कूल से आते-जाते खेल के मैदान मे लड़को को हॉकी खेलते देखती थी | वह इस खेल से बहुत प्रभावित हुई और एक दिन घर आकर अपने पिता रामपाल से हॉकी खेलना की अपनी इच्छा व्यक्त की | उनके परिवार को उनकी यह ख्वाहिश न मंजूर थी, क्योंकि रानी लड़की थीं | लड़की होकर हॉकी खेलने की बात करना, तब ‘बड़ी’ और ‘अजीब’ थी | उनके माता-पिता ने उनका जीवन गॉव के तौर तरीकों के हिसाब से ही जिया और ज़्यादा पढ़े- लिखे भी नहीं हैं | उन्हें लगता था कि खेल जगत में लड़कियों का कोई भविष्य नहीं है | परिवार वालो ने पहले तो मना किया, लेकिन रानी ने तो ठान लिया था, वें ज़िद पर अड़ गईं |
उनके रिश्तेदारो ने उनके पिता को व्यंग कसना शुरू कर दिया, ‘ये हॉकी खेल कर क्या करेगी? बस छोटी-छोटी स्कर्ट पहन कर मैदान में दौड़ेगी और घर की इज्ज़त ख़राब करेगी |’
रानी जब शाहबाद हॉकी एकेडमी मे दाखिला लेने गईं तब पहले तो एडमिशन की अनुमति नही मिली लेकिन जब कोच सरदार बलदेव सिंह ने उनका खेल देखा तो खुश हो गये और दाखिला दे दिया | रानी ने हॉकी खेलने की ठान तो ली थी पर इसके जो खर्च थे– जैसे इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेना, हॉकी किट खरीदना, जूते खरीदना आदि, ये सब उनके पिता नहीं उठा सकते थे | साथ ही, उनके माता-पिता को समाज का भी डर था |
इस कठिन समय में, उनका साथ उनके कोच, सरदार बलदेव सिंह ने बखूबी दिया | सरदार बलदेव सिंह गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित है | रानी ने इनकी देख-रेख में ही शाहाबाद हॉकी अकादमी में अपनी ट्रेनिंग की शुरुआत की थी |
कोच, सरदार बलदेव सिंह ने हॉकी किट देने से लेकर, जूते खरीदने तक; हर तरह से उनकी मदद की |
एक मैच में बहुत मुश्किल गोल करने पर उनके कोच ने उन्हें 10 रूपये का नोट दिया और उस पर लिखा, ‘तुम देश का भविष्य हो।’ वें उस नोट को बचा कर रखना चाहती थी, पर उस वक़्त उनकी माली-हालत ऐसी थी, कि उन्हें उस नोट को खर्च करना पड़ा | जब वे चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ले रही थी, तब उनके कोच सरदार बलदेव सिंह ने उनके रहने की व्यवस्था अपने ही घर पर करवाई | साथ ही, अपनी पत्नी के साथ मिलकर, रानी के अच्छे खान-पान की ज़िम्मेदारी भी ली |
भारतीय हॉकी टीम मे चयन आसान नहीं था :
किसी भी क्षेत्र का पहला नियम होता है अनुशासन | हॉकी खेल का भी यही नियम है | घंटो खेल के गुर सिखना और एक दिन भी अभ्यास नहीं छोड़ना | पर समय की पाबन्दी भी प्राथमिकता होती है |
रानी रामपाल का भारतीय हॉकी टीम मे चयन होने का सफर चुनौती पूर्ण था | हर मौसम में ट्रेनिंग मुश्किल हो जाती थी | अगर कभी देर हो जाती, तो कोच द्वारा सज़ा दी जाती थी | उस समय अकादमी के लगभग नौ खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम में खेल रहे थे | उनकी कहानियों ने उन्हें कड़ी मेहनत करने और अपनी योग्यता साबित करने के लिए प्रेरित किया |
उनकी कड़ी मेहनत विफल कैसे हो सकती थी और वें 14 साल की उम्र मे भारतीय हॉकी टीम में शामिल होने वाली सबसे युवा खिलाड़ी बन गई | जून 2009 में, रूस में आयोजित हुए चैंपियन चैलेंज टूर्नामेंट में रानी ने फाइनल मैच में चार गोल किये और ‘द टॉप गोल स्कोरर’ और ‘यंग प्लेयर ऑफ़ टूर्नामेंट’ का ख़िताब जीता | उन्होंने साल 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया, जहाँ वे एफ़आईएच के ‘यंग वुमन प्लेयर ऑफ़ द इयर’ अवॉर्ड के लिए भी नामांकित हुई |
ग्वांगझोउ में हुए 2010 के एशियाई खेलो में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के चलते, उन्हें ‘एशियाई हॉकी महासंघ’ की ‘ऑल स्टार टीम’ का हिस्सा बनाया गया | अर्जेंटीना में आयोजित महिला हॉकी विश्व कप में, उन्होंने सात गोल किये और भारत को विश्व महिला हॉकी रैंकिंग में सांतवे पायदान पर ला खड़ा किया |साल 1978 के बाद, ये भारत की हॉकी टीम का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जाता है और इस शानदार प्रदर्शन के लिए रानी ने ‘बेस्ट यंग प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ जीता |
साल 2013 के जूनियर विश्व कप में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और पहली बार, भारत कांस्य पदक जीता | यहाँ भी उन्हें ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट’ का खिताब मिला |वर्ष 2014 में, उन्हें फिक्की कमबैक ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया | साल 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया |
2018 में एशियन गेम्स के पहले रानी टीम की कप्तान बनी थीं | उनकी कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में एशियाई खेलों में सिल्वर पदक जीता और इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा है |
पर आज जब भी उनसे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछा जाता है, तो वे बड़ी ही सादगी से बताती हैं, “महिला हॉकी टीम का नेतृत्व करना सबसे बड़ा सम्मान है।”
आयरलैंड के खिलाफ़ इनका पहला फ्रेंडली मैच 1-1 से ड्रा हो गया था, पर दूसरे और अंतिम मैच में उनकी टीम ने विश्व कप के रजत पदक विजेता को 3-0 से हरा कर जीत हासिल की |2018 एशियाई खेलो में भारतीय हॉकी टीम को जापान से हार मिली, टीम को रजत पदक से ही संतोष करना पडा |2018 मे भारत ने एफआईएच सीरीज फाइनल्स जीता था और रानी को टूर्नामेंट की बेस्ट खिलाड़ी चुना गया था | रानी की अगुवाई में ही भारत ने तीसरी बार ओलंपिक खेलों के लिए क्वॉलिफाई किया |
199,477 मतों की प्रभावशाली संख्या के साथ जनवरी 2020 में महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने वर्ल्ड ‘गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर’ पुरस्कार भी जीता है | इस दौरान कुल 705,610 मत पड़े | यह पुरस्कार शानदार प्रदर्शन, सामाजिक सरोकार और अच्छे व्यवहार के लिए दिया जाता है |
उन्हें पद्म श्री अवार्ड से भी भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जाएगा | 25 जनवरी, 2020 को पद्म अवॉर्ड्स का ऐलान हुआ था |
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 29 अगस्त 2020 (शनिवार) को खेल दिवस के मौके पर रानी रामपाल को देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया |
टीम को टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कराने में अहम भूमिका निभाने वाली 25 वर्षीय रानी देश का सर्वोच्च पुरस्कार पाने वाली पहली महिला और कुल तीसरी हॉकी खिलाड़ी हैं | रानी ने 241 मैचों में 134 गोल दागे हैं |
जब हौसला बना लिया ऊँची उड़ान का,
फिर देखना फ़िजूल हैं कद आसमान का |
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