6 साल की उम्र मे हुआ Polio, और आज है International Wheel Chair बास्केटबॉल खिलाड़ी, राष्ट्रीय Tennis खिलाड़ी और Marathon Runner

6 साल की उम्र मे हुआ Polio, और आज है International Wheel Chair बास्केटबॉल खिलाड़ी, राष्ट्रीय Tennis खिलाड़ी और Marathon Runner

जब इंसान के जीवन में हालात बिगड़ जाते हैं, तो कुछ लोग बहुत टूट जाते हैं, और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ते हैं |
गीता चौहान ने भी जीवन के हर कठोर वक्त को पार कर उसे सुलभ बनाया है | उनका अब तक का पूरा जीवन ही प्ररेणा का स्त्रोत हैं जिससे आप सभी पाठको को उर्जा का अद्भुत संग्रह प्राप्त होगा | गीता चौहान अंतर्राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर हैं और थाईलैंड जैसे कई देशों में जाकर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इसी के साथ व्हीलचेयर वें राष्ट्रिय स्तर पर महाराष्ट्र की तरफ से टेनिस खेलती हैं | साथ ही व्हीलचेयर मैराथन रनर भी हैं |
सिर्फ़ 6 साल की उम्र मे पोलियो से प्रभावित होने के कारण गीता चौहान के पैरो ने काम करना बन्द कर दिया | उनकी इस अपंगता को उनके पिता ने स्वीकारा नहीं | हौसला बढाने के नाम पर सिर्फ़ उनके पास उनकी मॉ थी | अपने जुनून और आत्मविश्वास को शक्ति बना अपना हौसला बढाया | शिक्षा से ही अपने जीवन को रोशनी देने के लिये शिक्षा प्राप्त करने का फैसला किया | उनके पिता को उनका बाहर जाना और पढना पसंद नही आया परंतु उनकी मॉ ने उनका साथ दिया | जब दाखिला लेने के लिये स्कूल गई तब 10 स्कूलों ने उन्हे दाखिला दिया ही नहीं | मुश्किल से एक स्कूल मे उन्हे दाखिला मिला | परंतु स्कूल मे उनसे कोई बच्चा बात नही करता था और न ही उनका कोई दोस्त बना | नकारात्मक परिस्थितिओं का सामना करते हुए उन्होंने अपनी स्कूल शिक्षा प्राप्त की | आगे उन्हे स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण करनी थी | जिससे उनके पिता बिलकुल खुश न थे | गीता चौहान ने खुद को सक्षम बनाने के लिए अपनी शिक्षा के साथ नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू भी दिए। लेकिन उनकी शारीरिक अक्षमता के कारण कोई कंपनी नौकरी देने को तैयार न हुई | उन्हे 28 कंपनियों से नकारात्मकता का सामना करना पडा | फिर एक कंपनी में  टेलीकॉलर की जॉब मिली |
धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं |
अपने पिता की कटुता के कारण उन्होंने अपना घर छोड दिया | ओर वें अपनी एक दोस्त के साथ उसके घर पर रहने लगी | वहॉ कुछ महीने रहने के बाद उन्होने लिए  किराये का घर ले लिया |
कॉलेज में उनकी दोस्ती सुजीत से हुई जो बाद मे प्यार मे बदल गई | सुजीत के कहने पर ही गीता ने सीए की शिक्षा लेने का निर्णय किया | सुजीत ने हमेशा उनके मनोबल को बढाया | परन्तु सुजीत को काम के कारण मुम्बई से बैंगलोर जाना | वहॉ सडक दुर्घटना के कारण 2012 सुजीत की मृत्यु हो गई |
वें मन ही मन अंदर से टूटने लगी। अपनी हालातों से तंग आकर एक दिन गीता ने खुद की यह दुख भरी जिंदगी खत्म करने का फैसला लिया और नींद की गोलिया खा लीं | तब उनके दोस्तो ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया | मौत के मुंह से बाहर आने के बाद गीता ने खुद के जीवन की अहमियत समझी और अपने जीवन का अहम फैसला लेते हुए नौकरी से इस्तीफा दे दिया |
अपने जीवन की दुसरी शुरुआत करते हुए गीता चौहान ने अपने खुद के गारमेंट्स के बिजनेस की शुरुआत की जिसके फलस्वरुप उनकी मुम्बई में एक दुकान है |
लगातार संघर्ष से आगे बढ़ने के दौरान गीता ने जाना कि शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए भी खेलजगत खुला हैं और गीता को अपने लिए यहीं से एक उम्मीद की किरण नज़र आई | गीता ने मुंबई की वीमेन व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम को जॉइन करने का निर्णय लिया |
उन्होनें पहली बार 2017 में चौथे नेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल में हिस्सा लिया | 2018 में दूसरी बार पांचवे नेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल में तमिलनाडु के खिलाफ फाइनल मैच में 12 पॉइंट्स के साथ वो उस प्रतियोगिता की टॉप स्कोरर थी, और जीत के लिए उन्हें स्वर्ण पदक भी मिला था | इसके बाद 2019 के छठे नेशनल व्हीलचेयर बास्केटबॉल में भी उन्होने स्वर्ण पदक जीता है | गीता साल 2019 में थाईलैंड में पैराओलंपिक क्वालिफायर खेलने गई टीम की सदस्य थीं | इसी के साथ उन्होने टेनिस और मैराथन में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया है |
प्रेरणास्त्रोत गीता चौहान आपको नतमस्तक हैं |
ज़िन्दगी में कुछ फैसले बहुत सख्त होते है और यही फैसले ज़िन्दगी का रुख बदल देते हैं |
 
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