chandrakala-rao
विकार हेतो सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः ।
अर्थात् वास्तव में वे ही मनुष्य धीर हैं जिनका मन विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में भी विकृत नहीं होता |
33 वर्षीया चंद्रकला के प्रेरक उनके दिवंगत भाई है | जब वें दसवीं कक्षा में थीं तब उनके पिता का देहांत हो गया और बाद में उनके भाई की भी आकस्मिक निधन हो गया | 2012 मे घर लौटते हुए उनके भाई, संदीप की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई | वह फुटबॉल क्षेत्र मे एक उभरते खिलाडी थें, जिन्होंने राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता में अपने राज्य राजस्थान का गौरव बढ़ाया और उच्च स्तर तक पहुँचने की राह पर आगे बढना चाहते थे | उनके आकस्मिक निधन से चंद्रकला स्तब्ध रह गई क्योंकि वह उनके गुरु थे और फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरणा थे। उनके माता- पिता फुटबॉल खेलने के खिलाफ थे परन्तु अपने भाई के समर्थन और दृढ संकल्प से फुटबॉल को अपनी आजीविका बनाने के लिए समर्थन प्राप्त किया |

उनकी मां, बड़ी बहन और छोटे भाई को इन हादसों से उबरने में कुछ वर्षो का समय लगा | भाई-बहनों ने अपनी माँ की देखभाल करने के लिए इस मुश्किल समय में हौसला रखा | उनके भाई की मौत ने चंद्रकला को फुटबॉल के प्रति उनके हौसले को अधिक दृढ़ता दी |

उन्होंने देश के कई जिलो, राज्यों और राष्ट्रीय प्रतियोगितायो मे भाग लिया | उनका लक्ष्य था भारतीय टीम की खिलाडी के रुप मे खेलना । साथ ही अपने परिवार का सहारा बनने के लिए, उन्होंने शिक्षण देना आरम्भ किया | तथापि वें फुटबॉल से दूर नही होना चाहती थी। इसलिए, उन्होंने उस स्कूल की ओर रुख किया जहॉ से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी “कृष्णा पब्लिक स्कूल” और वहाँ के छात्रों को प्रशिक्षित करना शुरू किया।” उन्होंने कुछ प्राथमिक स्कूलो के बच्चों को भी पढ़ाना शुरू कर दिया | 5वर्षो तक, उनकी जीवन रुपी गाडी ऐसे ही चली | 
फुटबॉल शिक्षण आजीविका की ओर अग्रसर होते हुए चन्द्रकला ने एआईएफएफ (ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन) से कोचिंग लाइसेंस के लिए आवेदन किया और उदयपुर के ज़ावर में लाइसेंस परीक्षा उत्तीर्ण की। जावर उदयपुर से 40 किमी की दूरी पर स्थित है | 2018 में, परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, उन्हें जिंक  फुटबॉल अकादमी द्वारा भर्ती किया गया था, जो हिंदुस्तान जिंक के सीएसआर विभाग द्वारा स्थापित एक पहल थी |
दो वर्षों से ज़ावर माइंस में जिंक फुटबॉल अकादमी द्वारा स्थापित सामुदायिक केंद्रों , जिंक फुटबॉल स्कूलों में फुटबॉल सिखा रही हैं | वह नियमित रूप से पहाड़ी आबादी में 50 से अधिक छात्र – छात्रा को प्रशिक्षित कर रही है | हालाँकि उनके परिवार ने उनका समर्थन किया, लेकिन सुदूर गाँवों में कई लड़कियों के लिए खेल अभी भी वर्जित है | माता-पिता अभी भी अपनी लड़कियों को अपने घरों के बाहर खेलने के लिए भेजने में बहुत संदेह करते हैं और फुटबॉल को कई लोगों द्वारा आदमियों का खेल माना जाता है। अक्सर, वह और अन्य कोच लड़कियों के परिवारों का दौरा करते हैं। इसमें खेल के लाभों के बारे में परिवारों को शिक्षित किया जाता है और समझाया जाता है यह खेल व्यक्तित्व विकास में कैसे भूमिका निभाता है |
चंद्रकला मैदान पर न केवल फुटबॉल खेल के गुर सीखा रही है बल्कि मौज-मस्ती करते हुए समानता और जीवन के नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी बच्चो को भलीभांति तरह सीखा रही हैं |
फुटबॉल और महिला फुटबॉल खिलाडिओं को मान्यता देने के लिए जमीनी स्तर पर आंदोलनों से लड़कियों की एक प्रभावशाली संख्या को बढ़ावा मिल रहा है | उनका मानना है कि आगामी महिला अंडर-17 विश्व कप, जिसे अगले साल भारत में आयोजित किया जाना है, यह महिला फुटबॉल के इतिहास में एक और मील का पत्थर साबित होगा |
चन्द्रकला राव आपके हौसले और महिला फुटबॉल खेल स्तर को बढावा देने के साथ – साथ समानता के शिक्षण को सलाम |
जिन्दगी काँटों का सफ़र हैं, हौसला इसकी पहचान हैं,
रास्ते पर तो सभी चलते हैं, जो रास्ते बनाये वही इंसान हैं |
 
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